गुरुवार, 26 मार्च 2020

त्रेता और द्वापर में वरदान और श्राप का तड़का..
आज के दिनों का तो पता नहीं, हमने अपने बचपन में जितनी सतयुगीन कथाएं पढ़ीं, उनमें सारा कथ्य वरदानों और श्रापों के इर्दगिर्द नाचता है...वरदान देने में शंकर शम्भू की कोई सानी नहीं..कृष्ण इस मामले में कृपण थे क्योंकि वो कर्मयोगी जो ठहरे..लेकिन बाकि देवी देवता इस मामले में उदार थे..यहाँ तक कि कई बार वादी और प्रतिवादी दोनों को ही एक ही देवता जब सोमरस की पिनक में --सदा सुखी रहो और विजयी भव--वाला वरदान दे देता तो बहुत ही कन्फ्यूज़न छा जाता..
हालात तब और शोचनीय हो जाती जब श्राप देने का एकाधिकार रखने वाले ऋषि मुनि अहिल्या जैसियों को क्रोधित हो कर निपूती, विधवा या पत्थर हो जाने का श्राप दे देते तो उनका उद्धार करने को मानव या अन्य जीव जंतु का सवरूप धारण कर धरती पर नामुदार होना पड़ता..
दुर्वासा जैसे ऋषि तो अपने क्रोध की आंच में देवी देवताओं तक को नहीं बख्शते थे..दुर्वासीय श्राप ने तो श्री कृष्ण का परिवार ही नहीं, पूरा वंश ही ज़मीन्दोज़ कर दिया..यह मान के चलिए कि अगर इस धरती पर श्राप न होते तो न तो रामायण होती न गीता और न महाभारत, न पुराण..सोचिये तब आर्यवर्त सहारा रेगिस्तान होता..
एक देवता हुए हैं -हाय रज्जा टाइप- इंद्रदेव..आज के शक्ति कपूर या रंजीत से बड़े बलात्कारी..चूँकि वो देवताओं के मुखिया थे तो उनकी छिछोराना हरकतों के चलते उनका सिंहासन हमेशा डोलता रहता तो ऐसे समय स्वर्ग के पोर्न प्रकोष्ठ से उन्हें विशेष सहायता दी जाती और उनकी कुर्सी बच जाती..मेनका और रंभा ने उनकी कुर्सी कई बार बचायी अपना बदन दिखा दिखा कर..कैसे-उस बारे में विस्तार से फिर कभी..
अब आगे इस मुद्दे पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया है मुलाहिजा फरमाएं--
सतयुग और त्रेता में चापलूसी का बाजार खूब गर्म रहता था..जिसको देखो वो पद्मासन लगा कर बैठ जाता किसी देवता या देवी की वंदना में..और हज़ार दो हज़ार साल निकल जाने के बाद किसी सुबह.. रात की मनभावनी खुमारी में अलसाये अंदाज़ में सुहावना मौसम देख वरदान थमा दिया जाता उसे..
शिव का तो एकमात्र काम ही यही रह गया था इसलिए कई बार उनकी इस हरक़त से पार्वती भन्ना जातीं..लेकिन विष्णु शातिर थे..सोच समझ के और शार्ट टर्म के वरदान पकड़ाते थे..या शिव के दिये वरदानों की काट तलाशते थे..
देवताओं के वरदानों की एक खास बात यह थी कि वे जिस दैत्य, दानव या राक्षस को दिए, उसका अंत बड़ा बुरा हुआ..कुछ वरदान बड़े अजब गजब होते थे..खास कर शिव फैमिली में तो यह आम था कि पति-पत्नी-बेटा.. तीनों अपने अपने भक्तों को वरदान दे देते ये जाने बगैर कि जिनको वरदान दिए, उन सबने एक दूसरे की ऐसी की तैसी करने को ये वरदान हासिल किए..और तीनों के वरदान एक दूसरे का रामनाम सत्त करने वाले होते..इसका सबसे बुरा अनुभव रावण और उसके बेटे मेघनाद को हुआ..

सबसे बुरा हाल तो विभीषण का हुआ और आज तक हो रहा है..न राम का साथ देता न घर का भेदी लंका ढाए टाइप जूते खाता..
1/7/19