मैला आँचल और राजकमल चौधरी..
फणीश्वरनाथ रेणु लिखते हैं--मैला आँचल का प्रकाशन हो चुका था..चर्चित भी हो चला था..उन दिनों भँवरपोखर, सब्जीबाग में अपना डेरा..वहीँ एक दिन एक युवक नागार्जुन जी का कोई संवाद और एक निमंत्रणपत्र साथ साथ लाया था..नाम बताया मणिकांत..
कई महीने बाद मछुआटोली में रिक्शा रुकवा कर बतियाया...और यह भी कि उसने मैला आँचल पूरा का पूरा छपाई के दौरान ही पढ़ डाला था..कैसे..तो सुनिए..यूनियन प्रेस में उस युवक का कोई रिश्तेदार कम्पोज़िटर था, जिसने उसे रात को वहां उसी टेबल पर सोने की अनुमति दे दी थी, जहाँ मेला आँचल के प्रूफ रीडिंग किये पन्ने पड़े होते..तो वो रात भर वही पढता..
रेणु--उस युवक से दूसरी मुलाकात कई साल बाद, परती-परिकथा के प्रकाशन के उपरान्त पटना आकाशवाणी के दफ़्तर में..लेकिन तब उसने अपना नाम बताया राजकमल चौधरी..मुझे असमंजस में देख मुहं में पान भरे वो मुस्कुराया और बोला--पुराने नाम को भूल जाइये..
डेढ़ साल बाद फिर उसी जगह..तब तक उसकी कोलकाता से प्रकाशित कई रचनाएँ पढ़ चुका था मैं..अबकी बार उसे प्रिंस होटल ले गया और पूछा कितने रसगुल्ले खा सकते हो..तो उसने मैथिलों वाला ठहाका लगाया और बोला- 30 से ज़्यादा नहीं..लेकिन आप 40 तक खा लेते हैं सुना है..हरिमोहन झा 150 तक और अमरनाथ झा तो बाप रे बाप..
भारत मेल ज्वाइन किये राजकमल को एक साल हो रहा था और उसके साथ हो चुकी 12-13 मुलाकातों में वो इतनी ही बार मेरे डेरे पर आने की इच्छा जता चुका था..एक दिन वो आया..उसकी निगाह पड़ी हंग्री जेनेरेशन के लिटरेचर पर..चाय पीते में उसने बताया कि कोलकतिया हंग्री लिटरेचर में उसके कई मित्र हैं..
38 साल की उम्र में दुनिया छोड़ चुके इन्हीं राजकमल चौधरी को अपन ने 15 साल की उमर में बीस रानियों के बाइस्कोप और मुक्ति प्रसंग से जाना था..उनके जाने के दो ही साल बाद.. बीस रानियों के बाइस्कोप शायद सम्भावना प्रकाशन की पहली कृति थी, जो मुझे छपते ही पढ़ने को मिली...
2/21/19