शनिवार, 28 मार्च 2020

सम्राट अकबर ने दीपावली में पटाखे छोड़ने का रिवाज प्रारंभ किया. औरंगज़ेब तक ने उस परम्परा को निभाया. दीपावली के बारे में ब्राह्मणों ने भ्रम फैला रखा है. इससे रामायण जैसे मिथक का कुछ लेना देना नही है. अयोध्या कोई देश नहीं था, बल्कि कोशल महाजनपद का एक टाउन था. चक्रवर्ती बनने के लिए राजा राम ने शेष किन किन राज्यों पर विजय प्राप्त की, आज तक इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता. 

अगर देश की सीमा के लिहाज़ से देखें तो जिस समय राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया उसने अंग, मगध के राजाओं सहित कोशल महाजनपद के सम्राट को भी आमंत्रित किया था. मतलब कोशल एक राज्य था और अयोध्या उसका अंग तो राजा दशरथ कोई सामंत टाइप ही रहे होंगे. ऐसे भी किसी छोटे से इलाके के सामंत में इतनी ताकत नहीं होती कि पूरे देश में अपना विजयोत्सव मनवा ले. अतः यह मानने का कोई  ऐतिहासिक  कारण नहीं है कि राजा राम के अयोध्या लौटने पर पूरे देश में  दीपावली मनाई गई थी. अगर ऐसा होता तो खुद ब्राह्मण अपने धार्मिक ग्रंथों में दीपावली का वर्णन करते. अंग्रेजों से लेकर मुसलमान शासकों तक ने इसका वर्णन किया होता. हाँ, दीपावली सदियों से  मनाई जाती थी, इसमें कोई दो राय नहीं.

सवाल यह है कि लोकोत्सव को इन मिथकों से कब जोड़ा गया और क्यों ? यही वह सवाल है, जिसका उत्तर जानने की जरूरत है.

अब तो हद ही गई है. इन मिथकों को मेटरलाइज किया जा रहा है, स्थापित किया जा रहा है. कांग्रेस ने तथाकथित ब्राह्मणवादी इतिहासकारों की मदद से भारत के असली इतिहास की कब्र खोदा, बीजेपी उस पर मिट्टी डाल रही है. मिथक इतिहास बन रहे हैं. बहुजन समाज की आने वाली पीढ़ी अगर मिथक को इतिहास समझने लगे तो समझ लीजिए गुलामी की आयु सनातन हो जायेगी. ब्राह्मणवाद रूपी सामंतवाद रोज प्रपंच गढ़ रहा है. इसके विरुद्ध सारे बुद्धिजीवियों को एकजुट होना पड़ेगा.

कमाल की बात है कि इस प्रपंच को गढ़ने में मुगल वंश का बड़ा हाथ रहा है. ब्राह्मणों के संरक्षण में सरकारी होली, सरकारी दीवाली इन्होंने ही शुरू किया. इसे सरकारी आयोजन स्थापित किया. लोक के ऊपर ब्राह्मण की सर्वोच्च सत्ता स्थापित की. यह कोई संयोग नहीं कि अवधी, भोजपुरी में रामचरितमानस अकबर के सहयोग और अकबर काल में लिखा गया. क्योंकि निर्गुण राम के भक्ति आंदोलन से मुगलिया सल्तनत डर गया था, इसलिए उसने सामंत राम को स्थापित करने के लिए लोकभाषा में रामचरित मानस लिखवाया. लोक के निर्गुण राम को सामंत राजा राम में सबमर्ज किया गया. कालांतर में उसको अक्षुण बनाए रखने के लिए उपाय गढ़े गए... रामलीला मंडली तैयार की गई... सरकारी छुट्टी तय की गई... गांव-गांव में रामलीला दिखाया गया. टेक्नॉलाजी जब उनके हाथ लगी तो रामायण सीरियल बनाकर पूरे देश को भक्त बनाया गया. उनमें उन्माद फैलाया गया. बाद में बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया. उल्लेखनीय है कि जिस बाबर के खानदानों ने ब्राह्मणवाद को संरक्षण दिया, ब्राह्मणवादी सबसे ज्यादा उन्हीं को गाली देते हैं. 

लेकिन इस देश की नस में ब्राह्मणवाद विरोधी रक्त सदियों से प्रवाहमान रहा है. भले ही कुछ समय के लिए लोगों की आंखों में धूल झोंक दिया गया हो, लेकिन रामायण और रामलीला कल भी आम जनता के लिए आस्था नहीं बल्कि मनोरंजन का विषय था, आज भी है. उसका मंचन करनेवाले लोगों को कल भी जनता कलाकार , भांड समझती थी, आज भी समझती है. इसी तरह दीप जलाकर विश्व रिकॉर्ड बनाना आस्था का विषय नहीं बल्कि उत्सव में मनोरंजन का विषय है. यह देश का हर नागरिक जानता है.

---मनीष चांद 
प्रखर चिंतक एवं विश्लेषक

सौजन्य Manoj Abhigyan
11/7/18