यारी अनिल जनविजय की
इत्ते साल बाद भी सब कुछ आँखों के सामने हो जैसे ....... हापुड़ में जाड़ों की एक सुबह ..... चचा प्रभात मित्तल के पास एक नवयुवक बैठा बड़े अनौपचारिक आंदाज में बतिया रहा ... जबकि अपन काफी स्नेह पाने के बावजूद उनके सामने सहमे सहमे रहते ........ यह अनिल .... तुम इसी के साथ दिल्ली निकल जाओ....दिल्ली तो जाना ही था साथ में कोई भी जाए वाला भाव लिए हम बस में सवार....प्रभात जी 'नयी कविता' के प्रकाशन में व्यस्त ....अनिल उनकी मदद में दिन रात एक किये हुए .... किताब में उसकी भी कवितायें .....
लगता है अबकी पड़ा किसी कवि से पाला ..... मैं उससे थोड़ा बड़ा .... रास्ते भर वो कविता पर बोलता रहा.... मैं पैदायशी बेहतरीन श्रोता.... दिल्ली पहुँच चांदनीचौक के पास सरकारी पुस्तकालय में कुछ देखा भाला .... चाय पीने की तलब हुई तो अनिल ने थैले से परांठे निकाले वहां से शायद नयी दिल्ली स्टेशन, जहां वो अपनी बुआ के साथ रह रहा......
अब वो अक्सर आई आई टी गेट के पास अरविन्द आश्रम में मेरे पास आने लगा ..... वो मुझे खूब घुमाता ...... एक इतवार उदय प्रकाश से मिलाने जेएनयू हॉस्टल ले गया .... उस दिन उनके बेटे की पहली सालगिरह थी .... कुछ बढ़िया खाने को मिल गया .....एक दिन अपने साथ गगन गिल को भी लेकर आया .....
एक दिन वो भी मेरे साथ रहने अरविन्द आश्रम आ गया .... हालांकि हम दोनों के काम और कमरा अलग अलग था .... पर ज़्यादातर समय साथ गुज़ारते .....कई बार सर्वोदय एन्क्लेव में रह रहे प्रणव बंद्योपाध्याय से भी मिल आते ....
कुछ दिन बाद मैं लखनऊ वापस ..... जून में पिता के साथ उनके बिज़नेस टूर पे साथ में अनिल भी...... काफी लंबा साथ रहा लेकिन वो मुझे साहित्य की दीक्षा अब तक नहीं दे पाया था ....उसकी साहित्यिक दोस्तियों के चलते मद्रास में हमारे कई दिन बहुत आराम से गुज़रे....वहां हम सरस जी ने मारवाड़ी पुस्तकालय में ठहराया ....