बीआईटीवी पर vaampanthee असर....काम में इसका फायदा भी मिला....खुलापन...मास्टराना माहौल बिल्कुल ही नहीं...कुछ भी नया करने के लिये किसी औपचारिकता में पड़ने की जरूरत नहीं.....लेकिन उतना ही अराजक.....सब कुछ कंट्रोल से बाहर..........कुछ ही लोगों की वजह से चल रहा था पूरा चैनल.... अनिल चमड़िया पता नहीं कौन सी धारा के वामपंथी थे.....लेकिन उसे फैशन शो में जरूर तब्दील कर दिया करते थे.....उनकी मजदूर एकता नामक सोच से हमेशा सतर्क रहना पड़ता था....जिसका प्रदर्शन करने का उन्हें मौका भी मिल गया......जब तन्ख्वाह मिलनी पूरी तरह बंद हो गयी तो कामगार यूनियन बना कर उसके तोता-मैना बन गये चमड़िया जी.....शांति का काल हो या अंशाति का.... क्रांति लेकिन गुटरगूं तक सीमित रही.....कई बार क्रांति उड़ती भी दिखती....लेकिन किसी ढाबे पर जा कर पंख बटोर लेती....
तूफां उठा है दिल में
राजीव मित्तल
....मरने भी न देंगे मुझे दुश्मन मेरी जां के....जैसों के साथ कई शामें गुजारने के बाद......एक शाम अपने घर में पार्टी का आयोजन कर डाला.....और ऐसी पार्टी दर-ओ-दीवार से पूछ कर तो की नहीं जाती....पूछना जिससे था....वो मुम्बई में थी.....राजीव शर्मा के सौजन्य से लालकिले के पीछे आर्मी कैंटीन से कई सारे ब्रांड.....प्रदीप अग्रवाल दुपहरिया ढलते ही सलाद काटने में लग गए...अंधेरा छाते ही तांता लगना शुरू। चित्रिता सान्याल को कदम धरते ही मछली बनाने की सूझी.......या रब्बा.......पंडिताइन की रसोई को ये दिन भी देखने थे....खुद जा कर ले आओ...कह कर बला टालनी चाही... वो ले भी आयी....रात दो बजे तक तो पड़ौसियों की नींद हराम.....
जून की बेहद उमस •ारी अगली शाम....नंदन ने रात नौ बजे सीरी फोर्ट पब चलने का फरमान सुनाया.....पांच मिनट में आठ जन पब में....रात के ग्यारह बज गए...खड़ा होने पर ढहने की हालत.....किसी तरह स्कूटर स्टार्ट किया....राजीव शर्मा को दिल्ली छह छोड़ना था...तभी राव वीरेन्द्र सिंह ने गुजारिश की आॅफिस छोड़ने की....वो भी लद गया। हवा का झौंका लगते ही मन मयूर......सड़क पार कर गली में जाना था.....पर सड़क कहां से पार होती......सामने से कार आ रही थी....दोनों चिल्लाए स्कूटर रोको....रोको..... रो..... को.....स्कूटर रुकने के बजाए उस तरफ मुड़ गया जिधर से कार आ रही थी....उसके ठीक सामने.....कार वाले ने ब्रेक मारा पूरे दम से.....लेकिन मामला इतना करीब आ चुका था कि स्कूटर को ठोक ही दिया उसने... स्कूटक गिरा.. तीनों लुढ़के...चारों सडक. पर....दो तो हाय मैया कहते उठ खड़े हुए.....तीसरा नहीं उठा...कई आवाजें मारीं....अब इसे क्या हो गया...बेहोश.....कई जगह से खून बह रहा......उठा कर किनारे किया गया....
रात को बारह बजे कहां ले जाएं.....जिस कार से टक्कर लगी थी....उसी में लादा गया.....सबसे पहले सबसे पास वाली जगह एम्स .....तुरंत बाहर कर दिया गया....रात गहराती जा रही..... सब परेशान......त•ाी राजीव शर्मा को यूएनआई वाला नजर आ गया.....उसी के कहने पर सफदरजंग हॉस्पिटल में इस लदान को उतारा गया..अब सबको संदेश... पेजर पर.....कुछ देर में नंदन....अशोक सिंह और आॅफिस में वक्त गुजार रही चित्रिता और उसके साथ बिहार की अभिलाषा... ....अगले दिन होश आया तो सबसे पहले ध्यान आया कि पिता लखनऊ से दिल्ली आ रहे हैं....कई महीनों से छाती पर मूंग दलते हुए नीचे ही रह रहे इसरार अहमद को बोला....सामने वालों से चाभी ले कर घर साफ करा देना और पिता को बताना कि मैं चंड़ीगढ़ गया हुआ हूं।
दो दिन बाद अस्पताल से छुट््टी मिल गयी। आॅफिस की वैन तीन दिन से वहीं खड़ी रही थी। नयी सैंडिल किसी ने मार दी थीं....नंगे पैर बैठ गया...साथ में परवेज अहमद...हाथ और गर्दन पर चोट के निशान.....इन्जेक्शन और दवाइयों की मार से दिमाग घूम रहा....दरवाजा पिता ने खोला..... चंडीगढ़ से यह क्या हाल बना कर आ रहे हो....मैं...मैं.....मैं ....एं...एं...एं. बस इतना ही निकला मुंह से और जा कर लेट गया...परवेज ने ही झेला पिता को...दस दिन बाद आॅफिस में......काम बंद पड़ा था.....देवाशीष बोले आप कम्प्यूटर के पास अ•ाी न बैठें.....हादसे का असर है आप पर......
एक दिन चित्रिता ने बताया सब....सबके बीच बैठा कर.....उस रात •ार्ती होने के बाद डॉक्टरों ने तुम्हारी मरहम पट्टी की और इंजेक्शन लगाए.....उसके बाद तुमने जो हंगामा मचाया कि हम सब बौरा गए....नंदन और अशोक सिंह को तुमने इतनी गालियां दी कि दोनों हमारी ड्यूटी लगा कर भींग गए....फिर तुम हम पर सवार.......खूब सेवा करायी हम दोनों से.....और जब नींद का झौंका आता...तुम जोर से चिल्लाने लगते....नर्स तुमको सोने का इंजेक्शन देने आयी तो तुमने घुमा के दिया उसको...स्टाफ तुमको बाहर निकाल देने पर आमादा...हमने हाथ-पांव जोड़े...फिर तुमको पलंग से बांध दिया गया..वहीं खड़े सुन रहे नंदन और अशोक छोंका भी लगाते जा रहे.....मालूम है अभिलाषा तो उस दिन से दहशत में है...आॅफिस ही नहीं आ रही........ मैं कहां जा कर डूब मरूं...सबसे पहले उसी को फोन कर माफी मांगी तो वो अगले दिन आॅफिस में दिखी.....
इस बार केवल चार दिन का समय रनडाउन के लिये...लेकिन हमने बुलेटिन निकाला और हम फिर एयर पे...और अब हमारा चैनल सबको दिखने लगा......
कुछ ही समय शिव जोशी भी छोड़ गया.....बहुत खला उसका जाना...... जुगनू शारदेय और रमेश मोहंती का हिंदी मे और अमिता मलिक का इंग्लिश में आगमन.....गायन में साथ देने वाली तो मिली...•ााषवती घोष पहले ही आ चुकी थी...खामोश तबियत....मंद-मंद मुस्कान हमेशा...
जून में बहुत बड़ा आघात...अनुपम कुमार का रात में एक्सीडेंट हो गया....अपोलो में भर्ती...हालत बहुत गंभीर...तब आजतक वाले एसपीसिंह भी वहीं भर्ती थे..कोमा में...रात-दिन दस-बारह लोग वहीं रहते....दो दिन बाद अनुपम गुजर गया....अगले दिन एस पी भी.......लाजवाब साथी था अनुपम.........काफी तनाव में बीता वो साल..... नये साल में जुगनू शारदेय और रमेश परिदा का हिंदी मे और अमिता मलिक का इंग्लिश में आगमन.....•ााषवती घोष पहले ही आ चुकी थी...खामोश तबियत....मंद-मंद मुस्कान...
नये साल में हम लोगों को मिला तीसरा फ्लोर....बहुत शानदार औरआरामदेह.....हर क्यूबिकल के साथ एक कमरा...जिसमें खूब बड़ी मेज....जो सोने का काम देती.......लेकिन सब बिखरता जा रहा.....तन्खवाह समय पर मिलनी बंद हो गयी......पूरी तो कभी भी नहीं मिली थी.....अब उतने के भी रोने पड़ने लगे........अशोक आडवाणी को विदेशी कम्पनियों से कर्ज मिलना बंद हो गया.......अब साफ दिखायी दे रहा था कि एक सफल पब्लिशर कहां गच्चा खा गया.......उन्होंने सौंप दिया था चैनल मालविका सिंह को....मालविका सिंह ने सौंप दिया नंदन एंड पार्टी को...काम से किसी को मतलब नहीं.......ऊंट के विवाह में गर्द•ा राग.....अहा रूपम अहा गायन....फिर भी चैनल अच्छा निकल रहा था......सब जगह तारीफ हो रही.....
आधी-अधूरी तनख्वाह दो महीने बाद मिल रही....जाने वालों का सिलसिला जारी ........लेकिन बीआईटीवी (जो अब टीवीआई हो चुका था) का नशा अपनी जगह.......मई आया.....घर के सब लोग लखनऊ चले गये.......मां आने वाली थीं.......उन्हीं के साथ ही लखनऊ जाता......
एक शाम.....चाय पीने नीचे उतरा.....चाय खत्म कर सीढ़ी पर पैर रखा ही था कि राहुल तेजी से उतरता दिखा...साथ में दो-तीन और......जल्दी चलो ऊपर...लखनऊ से फोन था...अशोक सिंह के चैम्बर में फिर आएगा......फिर..... फोन पर पूर्णिमा .....राजीव....मम्मी .....मैं स्तब्ध...पूरे आॅफिस को सन्नाटा मार गया.....पंद्रह मिनट तक यही स्थिति रही....बुलेटिन की तैयारी करनी थी.....सभी घर जाने का आग्रह करने लगे....लेकिन घर जा कर करता क्या....वहां तो कोई था नहीं.....प्रदीप जी के घर जाकर बैठता तो दुख और बढ़ता....नहीं...बुलेटिन निकाल कर जाऊंगा.....तब तक नॉरिस ने सबह की फलाइट में सीट बुक करा दी.....एचआर का काम देख रहे विष्णु दस हजार रुपये दे गये.....बुलेटिन निकालने के बाद भयानक खालीपन.....राहुल ने घर छोड़ा....कपड़े रखे और प्रदीप जी के यहां चला गया....अम्मा ने जबरदस्ती खिलाया.....लौट कर वैन का इंतजार करने लगा....आॅफिस ही जाऊंगा....वहीं से पालम......कई लोग आए लेने...आॅफिस जा कर कहीं लेट गया..सुबह पांच बजे पालम.....पहली हवाई यात्रा और ऐसे मौके पर...दिल डूब रहा...........लखनऊ में था क्या करने को......श्मशानघाट....शव पर लकड़ियां लादना....अपने हाथों सुलगाना....और फिर जलते देखना उस शरीर को.....जिसने कभी डायरी में लिखा था....आज मुन्ना को कंघा करते वक्त मेरे बालों में एक बाल सफेद दिख गया... दहाड़े मार कर रोया कि अब तुम मर जाओगी.....बड़ी मुश्किल से चुप कराया...दिन भर मुझसे अलग नहीं हुआ........... अब..हमेशा के लिये चली गयीं.....भूल से भी कभी नहीं दिखेंगी......और आंसू... पिछले 20 घंटे से धोखा दिये पड़े हैं.....
तूफां उठा है दिल में
राजीव मित्तल
....मरने भी न देंगे मुझे दुश्मन मेरी जां के....जैसों के साथ कई शामें गुजारने के बाद......एक शाम अपने घर में पार्टी का आयोजन कर डाला.....और ऐसी पार्टी दर-ओ-दीवार से पूछ कर तो की नहीं जाती....पूछना जिससे था....वो मुम्बई में थी.....राजीव शर्मा के सौजन्य से लालकिले के पीछे आर्मी कैंटीन से कई सारे ब्रांड.....प्रदीप अग्रवाल दुपहरिया ढलते ही सलाद काटने में लग गए...अंधेरा छाते ही तांता लगना शुरू। चित्रिता सान्याल को कदम धरते ही मछली बनाने की सूझी.......या रब्बा.......पंडिताइन की रसोई को ये दिन भी देखने थे....खुद जा कर ले आओ...कह कर बला टालनी चाही... वो ले भी आयी....रात दो बजे तक तो पड़ौसियों की नींद हराम.....
जून की बेहद उमस •ारी अगली शाम....नंदन ने रात नौ बजे सीरी फोर्ट पब चलने का फरमान सुनाया.....पांच मिनट में आठ जन पब में....रात के ग्यारह बज गए...खड़ा होने पर ढहने की हालत.....किसी तरह स्कूटर स्टार्ट किया....राजीव शर्मा को दिल्ली छह छोड़ना था...तभी राव वीरेन्द्र सिंह ने गुजारिश की आॅफिस छोड़ने की....वो भी लद गया। हवा का झौंका लगते ही मन मयूर......सड़क पार कर गली में जाना था.....पर सड़क कहां से पार होती......सामने से कार आ रही थी....दोनों चिल्लाए स्कूटर रोको....रोको..... रो..... को.....स्कूटर रुकने के बजाए उस तरफ मुड़ गया जिधर से कार आ रही थी....उसके ठीक सामने.....कार वाले ने ब्रेक मारा पूरे दम से.....लेकिन मामला इतना करीब आ चुका था कि स्कूटर को ठोक ही दिया उसने... स्कूटक गिरा.. तीनों लुढ़के...चारों सडक. पर....दो तो हाय मैया कहते उठ खड़े हुए.....तीसरा नहीं उठा...कई आवाजें मारीं....अब इसे क्या हो गया...बेहोश.....कई जगह से खून बह रहा......उठा कर किनारे किया गया....
रात को बारह बजे कहां ले जाएं.....जिस कार से टक्कर लगी थी....उसी में लादा गया.....सबसे पहले सबसे पास वाली जगह एम्स .....तुरंत बाहर कर दिया गया....रात गहराती जा रही..... सब परेशान......त•ाी राजीव शर्मा को यूएनआई वाला नजर आ गया.....उसी के कहने पर सफदरजंग हॉस्पिटल में इस लदान को उतारा गया..अब सबको संदेश... पेजर पर.....कुछ देर में नंदन....अशोक सिंह और आॅफिस में वक्त गुजार रही चित्रिता और उसके साथ बिहार की अभिलाषा... ....अगले दिन होश आया तो सबसे पहले ध्यान आया कि पिता लखनऊ से दिल्ली आ रहे हैं....कई महीनों से छाती पर मूंग दलते हुए नीचे ही रह रहे इसरार अहमद को बोला....सामने वालों से चाभी ले कर घर साफ करा देना और पिता को बताना कि मैं चंड़ीगढ़ गया हुआ हूं।
दो दिन बाद अस्पताल से छुट््टी मिल गयी। आॅफिस की वैन तीन दिन से वहीं खड़ी रही थी। नयी सैंडिल किसी ने मार दी थीं....नंगे पैर बैठ गया...साथ में परवेज अहमद...हाथ और गर्दन पर चोट के निशान.....इन्जेक्शन और दवाइयों की मार से दिमाग घूम रहा....दरवाजा पिता ने खोला..... चंडीगढ़ से यह क्या हाल बना कर आ रहे हो....मैं...मैं.....मैं ....एं...एं...एं. बस इतना ही निकला मुंह से और जा कर लेट गया...परवेज ने ही झेला पिता को...दस दिन बाद आॅफिस में......काम बंद पड़ा था.....देवाशीष बोले आप कम्प्यूटर के पास अ•ाी न बैठें.....हादसे का असर है आप पर......
एक दिन चित्रिता ने बताया सब....सबके बीच बैठा कर.....उस रात •ार्ती होने के बाद डॉक्टरों ने तुम्हारी मरहम पट्टी की और इंजेक्शन लगाए.....उसके बाद तुमने जो हंगामा मचाया कि हम सब बौरा गए....नंदन और अशोक सिंह को तुमने इतनी गालियां दी कि दोनों हमारी ड्यूटी लगा कर भींग गए....फिर तुम हम पर सवार.......खूब सेवा करायी हम दोनों से.....और जब नींद का झौंका आता...तुम जोर से चिल्लाने लगते....नर्स तुमको सोने का इंजेक्शन देने आयी तो तुमने घुमा के दिया उसको...स्टाफ तुमको बाहर निकाल देने पर आमादा...हमने हाथ-पांव जोड़े...फिर तुमको पलंग से बांध दिया गया..वहीं खड़े सुन रहे नंदन और अशोक छोंका भी लगाते जा रहे.....मालूम है अभिलाषा तो उस दिन से दहशत में है...आॅफिस ही नहीं आ रही........ मैं कहां जा कर डूब मरूं...सबसे पहले उसी को फोन कर माफी मांगी तो वो अगले दिन आॅफिस में दिखी.....
इस बार केवल चार दिन का समय रनडाउन के लिये...लेकिन हमने बुलेटिन निकाला और हम फिर एयर पे...और अब हमारा चैनल सबको दिखने लगा......
कुछ ही समय शिव जोशी भी छोड़ गया.....बहुत खला उसका जाना...... जुगनू शारदेय और रमेश मोहंती का हिंदी मे और अमिता मलिक का इंग्लिश में आगमन.....गायन में साथ देने वाली तो मिली...•ााषवती घोष पहले ही आ चुकी थी...खामोश तबियत....मंद-मंद मुस्कान हमेशा...
जून में बहुत बड़ा आघात...अनुपम कुमार का रात में एक्सीडेंट हो गया....अपोलो में भर्ती...हालत बहुत गंभीर...तब आजतक वाले एसपीसिंह भी वहीं भर्ती थे..कोमा में...रात-दिन दस-बारह लोग वहीं रहते....दो दिन बाद अनुपम गुजर गया....अगले दिन एस पी भी.......लाजवाब साथी था अनुपम.........काफी तनाव में बीता वो साल..... नये साल में जुगनू शारदेय और रमेश परिदा का हिंदी मे और अमिता मलिक का इंग्लिश में आगमन.....•ााषवती घोष पहले ही आ चुकी थी...खामोश तबियत....मंद-मंद मुस्कान...
नये साल में हम लोगों को मिला तीसरा फ्लोर....बहुत शानदार औरआरामदेह.....हर क्यूबिकल के साथ एक कमरा...जिसमें खूब बड़ी मेज....जो सोने का काम देती.......लेकिन सब बिखरता जा रहा.....तन्खवाह समय पर मिलनी बंद हो गयी......पूरी तो कभी भी नहीं मिली थी.....अब उतने के भी रोने पड़ने लगे........अशोक आडवाणी को विदेशी कम्पनियों से कर्ज मिलना बंद हो गया.......अब साफ दिखायी दे रहा था कि एक सफल पब्लिशर कहां गच्चा खा गया.......उन्होंने सौंप दिया था चैनल मालविका सिंह को....मालविका सिंह ने सौंप दिया नंदन एंड पार्टी को...काम से किसी को मतलब नहीं.......ऊंट के विवाह में गर्द•ा राग.....अहा रूपम अहा गायन....फिर भी चैनल अच्छा निकल रहा था......सब जगह तारीफ हो रही.....
आधी-अधूरी तनख्वाह दो महीने बाद मिल रही....जाने वालों का सिलसिला जारी ........लेकिन बीआईटीवी (जो अब टीवीआई हो चुका था) का नशा अपनी जगह.......मई आया.....घर के सब लोग लखनऊ चले गये.......मां आने वाली थीं.......उन्हीं के साथ ही लखनऊ जाता......
एक शाम.....चाय पीने नीचे उतरा.....चाय खत्म कर सीढ़ी पर पैर रखा ही था कि राहुल तेजी से उतरता दिखा...साथ में दो-तीन और......जल्दी चलो ऊपर...लखनऊ से फोन था...अशोक सिंह के चैम्बर में फिर आएगा......फिर..... फोन पर पूर्णिमा .....राजीव....मम्मी .....मैं स्तब्ध...पूरे आॅफिस को सन्नाटा मार गया.....पंद्रह मिनट तक यही स्थिति रही....बुलेटिन की तैयारी करनी थी.....सभी घर जाने का आग्रह करने लगे....लेकिन घर जा कर करता क्या....वहां तो कोई था नहीं.....प्रदीप जी के घर जाकर बैठता तो दुख और बढ़ता....नहीं...बुलेटिन निकाल कर जाऊंगा.....तब तक नॉरिस ने सबह की फलाइट में सीट बुक करा दी.....एचआर का काम देख रहे विष्णु दस हजार रुपये दे गये.....बुलेटिन निकालने के बाद भयानक खालीपन.....राहुल ने घर छोड़ा....कपड़े रखे और प्रदीप जी के यहां चला गया....अम्मा ने जबरदस्ती खिलाया.....लौट कर वैन का इंतजार करने लगा....आॅफिस ही जाऊंगा....वहीं से पालम......कई लोग आए लेने...आॅफिस जा कर कहीं लेट गया..सुबह पांच बजे पालम.....पहली हवाई यात्रा और ऐसे मौके पर...दिल डूब रहा...........लखनऊ में था क्या करने को......श्मशानघाट....शव पर लकड़ियां लादना....अपने हाथों सुलगाना....और फिर जलते देखना उस शरीर को.....जिसने कभी डायरी में लिखा था....आज मुन्ना को कंघा करते वक्त मेरे बालों में एक बाल सफेद दिख गया... दहाड़े मार कर रोया कि अब तुम मर जाओगी.....बड़ी मुश्किल से चुप कराया...दिन भर मुझसे अलग नहीं हुआ........... अब..हमेशा के लिये चली गयीं.....भूल से भी कभी नहीं दिखेंगी......और आंसू... पिछले 20 घंटे से धोखा दिये पड़े हैं.....