मंगलवार, 24 मार्च 2020

31 दिसम्बर की वो रात...
रात नौ बजे नोएडा के सेक्टर-6 के उस गैस चैम्बर और बदबू मारते चेहरों से पीछा छुड़ा कर किसी यार के यहाँ नए साल का जश्न मना कर जब निकला तो
आधी रात कब की बीत चुकी थी..नोएडा से वैशाली की तरफ जाते हुए गाजीपुर कब्रिस्तान के सामने स्कूटर रोक दिया.....उस सुनसान सड़क पर .. कड़कड़ाती ठंड में कुछ सोचता रहा..फिर यहां-वहां आंखें घुमायीं ..भूले-भटके कोई रूह दिख जाए...कंपकंपी बढ़ने लगी तो भन्ना कर मुंह से निकला..हे नामाकूलो..... सुन रहे हो ना....... इस नौकरी से पीछा छुड़ाओ..कुछ देर खड़ा आहट लेता रहा कि तभी श्वानों ने अलाप लेना शुरू कर दिया... नशा सत्यानाश होता देख स्कूटर स्टार्ट किया और चल दिया...
ठीक बीस दिन बाद बेरोजगार था....
दैनिक चकरघिन्नी यानी अमर उजाला के नोएडा दफ्तर में पौषी पूर्णिमा यानि 19 जनवरी को राजेश रपरिया ने कहा-या तो मेरठ जाओ अथवा इस्तीफा दे जाओ..मन की मुराद इतनी जल्दी पूरा होते देख फूले नहीं समाया और इस्तीफा दे दिया..अगले ही दिन से माघ लग गया।
पूरे माघ तिनका भी नहीं तोडा..फाल्गुन शुरू होते ही फाई-फाई अर्थात Zee चैनल में ससरेरे यानी संजय पुगलिया को फोन मिला दिया.....वहां से आवाज़ आई मिलो...मिला...भले से बात की....कहा-ठीक है तीन दिन बाद एक और मीटिंग रख लेते हैं..तीन दिन बाद वो फ़ना हो चुके थे..उनकी जगह तिड़िकझाइम टाइप राकेश खर मिले....भरे जिस्म वाली एचआर के साथ....
राकेश खर ने बेतुके अंदाज़ में मुखड़ा गाया--आपको बुलेटिन निकालना आता है....
जी, टीवीआई में तीन सैंकड़ा निकाल चुका हूं--- सहारा TV चैनल में मौका ही नहीं मिला...
भरे जिस्म वाली कूकी.......हमारा बुलेटिन कैसा लगता है......!!
दो कौड़ी का .......
चैत्र में जयपुर भास्कर के कई संपादकों में एक मित्र प्रदीप कुमार का फोन आया कि रेरेसस यानि जगदीश शर्मा से मिल लो करनाल जा कर..एक सुबह टीवीआई के साथी अगस्त अरुणाचलम के साथ तमिलनाडु से आयातित उसकी ओरिजिनल बुलेट पर प्रभात फेरी गाते हुए करनाल जा कर शर्मा जी से भी मुलाकात कर ली...जनानी आवाज़ निकाल कर ढंग से आश्वासन भी नहीं दिया बन्दे ने..
वैशाख में एक नातेदार ने जोर मारा और दिल्ली की प्रधानी कर रही वर्तमान की विदेश मंत्राणी सुषमा स्वराज के पति से मिलने को बोला.. गया उनसे मिलने....बिल्कुल चिरकुटहा निकले..बोले-जितनी तनख्वाह आप मांग रहे हो, उतनी तो हमने देखी तो क्या सुनी भी नहीं....जबकि खुद उनके भाई इन्डियन एक्सप्रेस में पत्रकार थे...
ज्येष्ठ में पता चला कि साप्ताहिक आउटलुक हिंदी में निकलने जा रहा है.. गगमम यानि अलोक मेहता से समय लेकर मिला.. सज्जन पुरुष थे, सो सज्जनता से ही पेश आए...नवभारत टाइम्स के दिनों के पुराने गीत गाये गये। बायोडाटा की एक प्रति ले....हम तुम युग युग से गाते हुए विदा कर दिया भाई ने.........
वैशाख-ज्येष्ठ में मीडिया माफिया रमेश चंद्रा से मिला और लखनऊ से निकल रहे  जनसत्ता के लिये सिफारिश करने को कहा..उनसे लिखाया पत्र ज्ञानपीठ के थोड़ा आगे एक सरकारी बंगले में विराजमान अखिलेश दास को थमाने पहुंच गया.....जिसे कुत्ते के साथ बाहर निकल उनके चाकर ने थामा....जनाब कब के ऊपर चले गए, पर जवाब आज तक नहीं दिया..
ज्येष्ठ में कम्पटीशन मास्टर टाइप पत्रिका के सम्पादक पद के लिये साक्षात्कार..मालिक+प्रधानसम्पादक ने बगल में बैठी मोहतरमा के थ्रू अपना हाल चाल लिया और खुद ने औलादों की संख्या और उनके नाम पूछे..
फिर बोले--ठीक है हमारी ये आपको जल्द ही बता देंगी..
ज्येष्ठ में ही Zee चैनल के मालिक के तिडिकझाइम टाइप भाई का फोन नम्बर हासिल कर उसे टटोला, तो बुला लिया गया.. उनके कैबिन में भी वही एचआर मौजूद....गदबदे बदन वाली.....गालों में गड्ढे डाल मुस्कुरा रही कमबख्त..गोयल साहब खुद भी नहीं जानते थे कि क्या बात करें .. किसी तरह उनके कान में टर्राया कि मैं क्यों आया हूं.. उन्होंने बैठा लिया ...बात की फिर टुनटुनाये .......बाद में बताएंगे..
आजतक में ट्राई इसलिये नहीं किया कि दो साल पहले जनाब क़मर वहीद नक़वी ने लखनऊ नवभारत टाइम्स के यादगार दिनों को याद करते हुए इंटरव्यू तक तो पहुंचा दिया..लेकिन इंटरव्यू लिया उदयशंकर ने लक्कड़बग्घा स्टाइल में मुस्कुराते हुए.. वर्तमान समय में एक चैनल के इस महानतम सीईओ को सहारा चैनल में इन कमजोर हाथों से बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी थी.. मन ही मन धधनीनी यानि नक़वी को जी भर कर कोसा..क्योंकि नौकरी मिलने की उम्मीद तो कब की तेल लेने जा ही चुकी थी..
बचा NDTV चैनल, तो वहां का किस्सा यह कि वो पैदा हुआ ही था कि टीवीआई में रहते उसे गोद में उठाने का आवेदन दिया था...हरकारे के हाथों एक दिन बुलवा भी लिया गया.. इंटरव्यू करने वाले सज्जन खांटी चोंचों टाइप थे और कोई रिटायर्ड सेनाध्यक्ष की संतान थे..उन्हें देख दिमाग में सरसो फूलने लगी..जनाब को पहली आपत्ति यह थी कि मैंने आवेदन में काऊ को गऊ क्यों लिखा....दूसरी कि मैं उन्हें.... नुक्ता चीं ए गम-ए-दिल.....एंग्लो सेक्सन में क्यों नहीं सुना रहा हूं.. खैर.......
बेली रोड वाले सरकारी बंगले में इसलिये नहीं घुसा क्योंकि देवी नलिनी सिंह ने चार हजार, तो उनके पतिदेव सुरसिंगार ने चालीस रुपये का चूना पिछली बार लगा दिया था..
रुमाल से धोती भये 24 घंटे वाले चैनल में अजित अंजुम को पुराने दिनों की याद दिलाने को बाकायदा उनके घर में घुस गया, भाई ने मीठी सैंवई खिला कर टरका दिया..
श्रावण में श्रीमती मित्तल ने बेरोजगारी दूर भगाने के उपाय करने को स्यापा मचाना शुरू कर दिया.. उन उपायों में हर बृहस्पतिवार को हाथी और मगरमच्छ में चली हाथापाई की ठांव-ठांव, किसी और वार को एक राजा की दो रानियों सुमति और कुमति की चांव-चांव..मोदीनगर वाले ज्योतिषि के उपाय तो और भी अद्भुत..मसलन रांगा नाले में बहाना.. सरसों के तेल की शीशी बहते पानी में गाड़ना.. सब कर डाले.....उससे भी अद्भुत कि नौकरी मिल गयी..

एक रात किसी चैनल की स्क्रौलिंग पर देखा कि नवीन जोशी हिन्दुस्तान पटना के सम्पादक हो गये हैं.. तुरंत उन्हें फोन लगाया कि इस नाचीज को बारोजगार कर दे भाई......अबे नालायक....तुम कब सुधरोगे की अजान के साथ उन्होंने तुरंत जीवनवृत्त भेजने को कहा....भाद्रपद शुरू होने के कुछ ही दिन बाद फोन आया दिल्ली में हूं फौरन कस्तूरबा गांधी मार्ग पहुंचो.. उन्होंने मृणाल पांडे से मिलवाया..मृणाल जी ने मुजफ्फरपुर जाने का आॅर्डर दे दिया.....और
इस तरह आठ माह की बेरोजगारी का राम नाम सत्त हुआ..