शनिवार, 28 मार्च 2020

ऐसी पत्रकारिता के बड़े बड़े गुण...

दस साल पहले की गर्मियों में नईदुनिया का कोई आयोजन था भोपाल में..वहां एक होटल में मैं और ग्वालियर संस्करण के संपादक राकेश पाठक पटंती के चलते एक साथ ठहरे..राकेश ने खूब घुमाया भोपाल..अगले दिन नईदुनिया के समूह संपादक के यहां अपन दोनों का भोजन..

नईदुनिया पर अपना पूरा ही जीवन वार देने के लिए ख्यात उमेश त्रिवेदी बहुत ही भले इंसान..
भोज से पहले उनसे हल्की चखचख हुई  क्योंकि उनके बहुत ही प्रिय व्यक्ति को मैंने हटा दिया था..लेकिन फिर उन्होंने सब कुछ भुला कर सफेद रसगुल्ले भी खिलाये..

अब आया जाए असली बात पर कि उमेश त्रिवेदी के जिस आवास पर हमारा भोजन था..वो एक शानदार बंगला था..सरकारी..

1980 के आसपास अर्जुन सिंह ने मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहला काम पत्रकारों को खरीदने का किया था..और जो पत्रकार पहली ही बोली में नीलाम हो गए, उन सबको भोपाल के बेहद शानदार इलाके में बड़े बड़े बंगले दिए गए.. जिसमें मेजिकल फाउंटेन भी लगे थे..तो पत्रकार फ्रेंडली अर्जुन सिंह ने अपने मुख्यमंत्री काल में पत्रकारों को उनकी लज़ीज़ लेखनी के लिए जम कर अनुकंपा बांटी.. 

उस एक साल के जबलपुरिया अख़बारी जीवन में मध्यप्रदेश की पत्रकारिता इसलिए भी   नितांत 'शासकीय" लगी, क्योंकि पांच साल बिहार में बिता कर सीधे वहां गया था..जो कई मायने में क्वॉलिटी को लेकर दिल्ली-लखनऊ को भी मात करती है.. 

उत्तर प्रदेश या लखनऊ के पत्रकारों को खरीदने के पुण्य कार्य में मुलायम सिंह यादव का जवाब नहीं..और बाकी तो इस देश की पत्रकारिता को दलाली का स्वरूप दिया है प्रेस क्लबों ने..जो बाकायदा अड्डे का काम करते हैं..

और हर तरह के धंधेबाज को पत्रकार का तमगा दिया भारतीय पत्रकारिता की लेफ्ट झुकाव वाली यूनियन IFWJ के महान CEO और मशहूर पत्रबाज के. विक्रमराव ने..जो उसी सोशलिस्ट इंटर नेशनल से जुड़े हैं, जिसमें दसियों साल गुजार कर समाजवादी बने जॉर्ज फ़र्नान्डिस अटलबिहारी सरकार में संकट मोचक की भूमिका निभाने पर उतर आए..और हाँ यह वही संस्था है, जिसने एडोल्फ को हिटलर बनाया..

पत्रकारिता के नंगे सच कई हैं, "क्या लेकर आया है क्या लेकर जाएगा" जैसी बक़वास में न पड़ा तो पेश करता रहूंगा....




11/17/18