शनिवार, 28 मार्च 2020

औरंगज़ेब...असगर मेहदी

शासक की आलोचना या मूल्याँकन उसकी नीतियों और काल के आधार पर करना चाहिए. 
औरंगज़ेब की प्रशंसा या आलोचना केवल उसकी धार्मिक नीतियों के दृष्टिगत करना इतिहास बोध की कमी को दर्शाता है. 
औरंगज़ेब का काल बहुत ही महत्वपूर्ण है, हिंदुस्तान मध्य काल से आधुनिक काल में प्रवेश कर रहा था, उसके समकालीन पश्चिमी देश संक्रमण के दौर से गुज़रते हुए अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी से पूरी तरह भिज्ञ थे और तमाम तक़ाज़ों पर खरे उतरने की कोशिश के रहे थे. विज्ञान, समाजशास्त्र और दर्शन पर नए नए विचार सामने आ रहे थे. धर्म को तर्क के दौरे लाने की कोशिश हो रही थी, लेकिन धार्मिक तनाव मौजूद थे. हेल्थ और शिक्षा पर ख़ास ज़ोर था,, 
इसके विपरीत हिंदुस्तान में किसान आंदोलन को जाट या सिख समस्या समझा गया. अकबर की सुलह कुल नीति को तुष्टिकरण की नीति समझा गया. 
इतिहास ने औरंगज़ेब को वक़्त दिया लेकिन औरंगज़ेब ने इस कसौटी पर खरा नहीं उतरा. डेक्कन नीति सबसे ख़राब सिद्ध हुई, जिसकी वजह से मराठा राष्ट्रवाद का उदय हुआ, जिसने कालांतर में अनेकों समस्याएँ उत्पन्न कीं. 
सबसे उपेक्षित विदेश नीति थी-समुद्र उपेक्षित रहा जबकि पूरी दुनिया नौसेना के महत्व को समझ रही थी, और इसी ताक़त के बल पर ग़ुलाम और आक़ा बन रहे थे, औरंगज़ेब का हिंदुस्तान इस ओर से निद्रा में था. 
बाक़ी यह कि जब दुनिया नये इल्म की खोज में थी, अलामगीर फ़तवों का संकलन कराने के प्रोजेक्ट पे काम करा रहे थे,, 
Ottoman ख़िलाफ़त को कभी भी नहीं माना गया, मक्का का शरीफ़ औरंगज़ेब की अपने परिवार के प्रति नीतियों के कारण नाराज़ रहता था और उसके तोहफ़े वापस कर दिए थे,,

11/13/18