एक नयी बयार...
यह सरकार रहे न रहे लेकिन यह बात ध्यान में रखिये कि इस विशाल सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवार के पास ओडिसा में एक पादरी को बच्चों समेत जलाने की पुरानी विधि तो है ही...अब तक डेढ़ दो सौ की मॉब लिंचिंग का अनुभव इन्हें भलीभांति हो चूका है..दस पांच बुद्धजीवियों को एक बार में टपकाने का लुभावना अंदाज़ ये हासिल कर ही चुके हैं..
घरों में घुस कर फ्रिज खोल कर गौ मांस तलाशने की काबिलियत ये हासिल कर ही चुके हैं..बाबरी मस्ज़िद को जिस तरह सारी सुरक्षा के बावजूद ध्वंस किया तो बाकी मुगलई इमारतें अब यह तो कतई भूल ही जाएँ कि उनमें कोई पुरातत्व गुण बचा है और अगर बचा भी है तो कलश और कलिसा वाला..
सबसे बड़ी बात यह कि पिछले कुछ समय में इनका सांस्कृतिक पक्ष काफी मजबूत साबित हुआ है इसलिए इस विशाल परिवार के अन्य सदस्य अब हिंसा का रास्ता छोड़ भारतीय संस्कृति में लोट पोट होने की कोशिश जुटे हैं..उसी कोशिश में कभी कभार प्रियंका या सोनिया के बारे में मस्तराम से प्रभावित हो जाते हैं...
बस एक मनोदशा के विचलन से यह विशाल परिवार अब तक जूझ रहा है कि गांधी का क्या किया जाये...मार दिया जाये कि छोड़ दिया जाये (लक्ष्मी छाया की अदा में)..
2/3/19