महाशिवरात्रि पर सिनेमाहॉल में...
उस बार इंटर बोर्ड की परीक्षाएं सिर पर थीं..चारबाग सब्जीमंडी के बीचोबीच सड़क के किनारे उस घर में शीतल मुखर्जी नाम का बेहद नामाकूल इंसान रहता था..पिता विद्यांत कॉलेज से रिटार्यड हो कर फालिज का शिकार..चार बहनों के बाद की पैदाइश थी तो माँ बाप दोनों काफी बुढ़ा चुके थे..अपने बाद एक बहन और ले आये तो हुईं कुल पांच..यही वो कुंवारी बहन थी, जिसके चलते अपन बांग्ला सीखने में जुट गए..
मैं और शीतल दोनों इंटर फेल..दोबारा इम्तिहान की तैयारी कर रहे उसी घर की ऊपरी मंज़िल वाले कमरे में रात को जाग जाग कर..पढाई तो पता नहीं कितनी होती..हाँ बगल के मोहन मार्केट में चाय और सिगरेट के दो दौर ज़रूर हो जाते..चाय के बाद शीतल घनघोर तम्बाकू का पान दबाता..इस नशे की गिरफ्त में आने में अपन को अभी दस साल और लगने थे..
तो साहब इस फगुनाहट में आ गयी महाशिवरात्रि..उन दिनों लखनऊ के कई सिनेमाघर इस मौके पर रात को एक टिकट पर दो शो दिखाते थे..शीतल की एक बड़ी बहन अपने नौनिहालों को उनकी ननिहाल में ही पाल रही थीं..और कुल मिला कर वही सर्वेसर्वा थीं..अपन से थोड़ा मुरव्वत से पेश आतीं तो सिरचढ़े हो गए थे..तो शीतल के परिवार के साथ अपन भी लद लिए एक टिकट पर 9 से 12 और 12 से 3 के रात्रि शो देखने.. एक फ़िल्म थी जिस देश में गंगा बहती है..वो तो पसंद आनी ही आनी थी..दूसरी फ़िल्म बंगाली..
3/4/19