मंगलवार, 24 मार्च 2020

रेणु जी..और उनका संवदिया
फणीश्वरनाथ रेणु को पढ़वाने के लिए भारत यायावर का दिल से आभारी हूँ....मुज़फ्फरपुर प्रवास में उनसे परिचय कराया था नवीन जोशी और रश्मि रेखा ने..बाद में जबलपुर में रहते राजेश कुमार दुबे ने और मिलवाया..और कुछ समय बाद वहीं यूनिवर्सल बुक डिपो में कई साल के इंतज़ार के बाद मिली रेणु रचनावली..आठ साल पहले पांच खण्डों की रेणु रचनावली को जब तब कहीं से भी खोल पढ़ना शुरू कर देता हूँ और खो जाता हूँ भाषा के लोक संगीत में..
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बड़े और ऊँचे परिवार की बड़ी बहुरिया सब कुछ खो कर टूटी फूटी बड़ी हवेली में किसी तरह जीवन काट रही है..सुबह को खाने का जुगाड़ हुआ तो रात का ठिकाना नहीं..एक दिन सब तरफ से निराश हो कर वो संवदिया को बुलवाती है अपने मायके भेजने को..संवदिया.. इंसान के रूप में ख़त, तार, रजिस्ट्री..जो मानिये..
संवदिया बड़ी बहुरिया से सारे निर्देश और आदेश ले कर तीन स्टेशन दूर मालकिन के मायके रवाना होता है..पास में पांच रुपये का पुराना नोट....
किसी तरह बहुरिया के मायके पहुँचता है..बहुरिया की माई, भाइयों और भौजाइयों से मिलता मिलाता है..उसकी खूब आवभगत होती है कि बिटिया की ससुराल से संदेसा ले कर आया है..जब शरीर और दिमाग स्थिर होता है तो मन में बहुत कुछ उमड़ता घुमड़ता है कि बड़ी बहुरिया के मायके में उनकी शोचनीय दशा के बारे में बताये कि न बताये..बताने से ससुराल और गाँव दोनों की बदनामी होगी..खुद बड़ी बहुरिया गांव और हवेली छोड़ मायके आ जायेगी..
अंत में वो कुछ भी न बताने का फैसला करता है..सब उससे उसकी मालकिन का हाल पूछते हैं लेकिन वो सच बता के नहीं देता..आवभगत इसलिए नहीं कराता कि उसकी मालकिन भूखी प्यासी होगी..बहुत रोकने पर भी नहीं रुकता कि बड़ी बहु उसके इंतज़ार में आँखे बिछाए होगी..यहाँ तक कि पैसा लत्ता भी नहीं लेता..
एक जगह ऐसी आती है कि उसके पास एक पैसा नहीं बचता और अभी भी बड़ी बहुरिया की हवेली 20 कोस है..भूखा प्यासा पैदल चलता हुआ गाँव पहुँचता है और बहुत बुरे हाल में हवेली लाया जाता है..बड़ी बहुरिया उसे किसी तरह होश में लाती है..
और अंत में..
होश में आते ही संवदिया ने बड़ी बहुरिया के पैर पकड़ लिए, " बड़ी बहुरिया मुझे माफ़ करो.. मैं तुम्हारा संवाद नहीं कह सका..तुम गाँव छोड़ कर अपने मायके मत जाओ..तुमको कोई कष्ट नहीं होने दूँगा..मैं तुम्हारा बेटा..बड़ी बहुरिया, तुम मेरी माँ, सारे गाँव की माँ हो..बड़ी माँ, अब मैं निठल्ला नहीं बैठूंगा..तुम्हारा सब काम करूंगा..

बड़ी बहुरिया गरम दूध में एक मुट्ठी बासमती चूड़ा दाल कर मसकने लगी..संवाद भेजने के बाद से ही वह अपनी गलती पर पछता रही थी...



3/4/19