नमस्ते !
वेद पुराणों में कहा जाता है कि ईश्वर एक है और वसुधैव कुटुम्बकम भी सुना हुआ लगता हैं।
नमस्ते की परिभाषा करते समय बताया जाता हैं कि यह नम अस्ते शब्द है।
प्राचीन ईरान ( एलाम ) में अवेस्ता नामक ग्रन्थ लिखा गया जिसका अर्थ होता है गाया जाने वाला इसी ग्रन्थ का लिप्यन्तरण अर्थववेद है।
अवेस्ता के समय की फ़ारसी में नमह शब्द का उपयोग होता था जो पहलवी काल की फ़ारसी में नमाहस हो गया और क़ुरान पाक के अवतरण के बाद इस क्षेत्र में नमाज़ बन गया।
( अरब देशों में इसे सलात बोला जाता हैं)
( अरब देशों में इसे सलात बोला जाता हैं)
इसी नमास शब्द को वैदिक संस्कृत के बाद नमस्ते बोला गया जो नमह अस्त ( फ़ारसी ) का अपभ्रंश कहा जा सकता है।
वेदों में साष्टांग प्रणाम का भी उपयोग होता हैं जिसका अर्थ शरीर के आठ अंगों द्वारा भूमि को छूते हुए आराध्य के प्रति समर्पण भाव व्यक्त करना होता हैं।
नमाज़ के लिए भी सज़दा किया जाता हैं जिसमे शरीर के आठ अंग भूमि को छूते हैं।
कुलमिलाकर कहने का अर्थ यही है कि हनुमानजी या हनुनाथ जी की जाति धर्म कुछ भी हो लेकिन अंततः हम केवल ढाई जातियो में ही बंटे हुए हैं।
पुरुष, नारी तथा आधी जाति उनकी जिन्हें कभी सैयद ब्रदर्स ने लालकिले के तख्त ए ताउस पर बैठा दिया था।
जो मुसलमान ( ईमान के सहित ) नही है वो बे ईमान है ( ईमान के बिना )
12/24/19