गुरुवार, 26 मार्च 2020

कई सारे मेलों के साथ पुस्तक मेला 2017...
प्रगति मैदान वाले पुस्तक मेले से अपनी उन्सियत बड़ी पुरानी है..तबसे जब हापुड़ से लेखकों और कवियों की पलटन ट्रेन में बैठ दिल्ली पहुँच प्रगति मैदान में किल्लोल करती..तब यह आयोजन 2-4 साल में होता था सालाना नहीं..
और जब दिल्ली प्रवासी हुआ तो एक बार bitv वाले जहांगीर खान के स्कूटर को बिना हेलमेट के चला कर पहुंचा तो भाव सिकंदर महान वाला था..वहां ज्ञानरंजन जी दिख गए, जिनसे कुछ साल बाद गहरा जुड़ाव हुआ...लखनऊ से वीरेंद्र यादव वाली प्लाटून दिखी तो जहांगीर खान को धता बता कर उनका साथ पकड़ा और खेल गाँव में विभूतिनारायण राय के यहाँ जा पहुंचे..फिर इक्का दुक्का यादों के बाद 2004 पर आया जाये...
एक तिपहर जा पहुंचा..जाते ही यंग गार्ड्स के दोनों हिस्से खरीद निकलने ही वाला था कि एक चेला टाइप पत्रकार टकरा गया..उस दिन ज्ञान प्राप्त हुआ कि मासूम से गणेश जी और हनुमान जी भक्तों को कैसे झेलते होंगे.. वो भी एकाध नहीं, लाखोलाख..और इस खड़ूस को तो एक ने ही झिला मारा..
उस भक्त से निजात दिलवाई कभी के लखनऊ नवभारत टाइम्स वाली तृप्ति ने..उनको जो लेना था लिया..फिर कॉफी की सुगंध में तय हुआ कि अगर मैं उन्हें अपनी बाइक पर पटपड़गंज में उनके निवास पर छोड़ूँ तो वो मुझे कड़ाही से ताजा ताजा निकली जलेबी खिलाएंगी और उसके बाद दरवाजे से ही विदा कर देंगी..उस 12 किलोमीटर की दूरी में उन्हें 12 किस्से सुना कर जब बाइक रोकी तो जलेबी कढ़ाव में तैरती मिली..जलेबी कुतरते हुए दो और किस्सों के बाद तू अपनी गली मैं अपनी गली..
2006 की हलकी सी याद के बाद अब 2017 पर..
यह पता चलते ही कि इस बार अपन की किताबें भी पुस्तक मेले की शोभा बढ़ाएंगी..दिल मचल गया और धधकती सरदी की एक रात हापुड़ पहुंच संभावना प्रकाशक और पुरातन मित्र अशोक अग्रवाल के निवास पर तशरीफ का टोकरा धर दिया...अगले दिन दिल्ली पहुंच पुस्तक मेले में...
चलने से पहले ही कई से मुलाकात तय थीं..पर कई नामुराद साबित हुए..पराने दोस्त अनिल जनविजय और कुमार नरेन्द्र सिंह और अनिल चमड़िया की गरमजोशी बरकरार थी..सुख मिला मोहनीश से मिल कर..और हां..मुज़फ़्फरपुर से आए वीरेन नंदा भी तो मिले उस दिन..और नभाटा के पुराने मित्र राजीव तिवारी ने भी खूब समय दिया..
उस दिन एक शानदार मुलाकात हुई 2010 के नवम्बर में फेसबुक पर मित्र बनीं मधुमिता ( नैयर और भट्टाचार्य वाली) से ..2011 में मित्रता गाढ़ी हुई लेकिन कई आमंत्रणों के बावजूद मिलना न हो पाया..फिर कई साल तक सुख दुःख में फोन या जन्मदिन-जन्मदिन पे फोन..साथ में पतिदेव संजीव ..
दस को पुस्तक मेले में नन्हीं मुन्नी दोस्त शालू को मेरठ से आना था.. और ग्यारह को हाथरस से अनुपम को..अनुपम का संदेश मिला कि नहीं आ पाएगी..
शालू ने जबलपुर और मेरठ के कुछ समय के साथ की गरमाहट पूरी आन..बान..शान से निभायी..
मेरठ से दिल्ली सीधे न जा कर मुझे लेने हापुड़ आयी..पुस्तक मेले में लगाव के साथ मेरी किताबें अपनाना..लौटते में फिर हापुड़ की तरफ कार मोड़ कर जहां उतारा मेरठ से लायी कई सौगातें हाथ में पकड़ाना..उसके साथ गुजारे कई आत्मीय पल याद आ गए..
मेरठ पहुंच उसने फोन किया..सर .. आपने दिन भर मुझे भूखा रखा..महाराष्ट्र सदन में लंच का प्रोग्राम था..वहां भी नहीं ले गए..सुन कर.दिल से मनाया कि धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं..पर न धरती फटी..न मैं उसमें समाया..ज़रूर पूरा करूंगा अपना वादा..शालू..पक्का..
दस तारीख को पुस्तक मेले में अति शानदार मुलाकात रही वंदना राग से..दो दिन पहले का संदेश कि मिलना है..फिर मेले में कदम धरते ही कि वाणी प्रकाशन में पहुंचू..वाणी में गोष्ठी का सा माहौल..कई महिलाएं..उनमें दस साल से न मिली वंदना की तलाश..जोगिया अंदाज़ में बाल बिखराये वंदना सी..दाएं से..बाएं से..पीछे से..फिर सामने से..बिल्कुल वंदना..आवाज़ मारी..नज़र उठाते ही किलक उठीं..हाथ में हाथ डाल दस साल पुरानी दोस्ती का लुत्फ लिया गया..
गीताश्री की किसी रचना पर गोष्ठी में कुछ समय गुजारने के बाद मिलने का वादा..
कुछ समय बाद चायपान को हॉल से बाहर की तरफ..अचानक वंदना का एक सवाल..सवाल कानों में पड़ते ही जैसे सब ठहर गया हो..दो-चार शब्दों का जवाब..
सवाल करने वाली वंदना और जवाब देने वाला मैं .. दोनों के दोनों एक मिनट के लिये बिल्कुल खामोश..फिर वंदना के चेहरे पर छायी वेदना ने सारे ऊहापोह को जड़ से उखाड़ उस हादसे से जुड़े एक एक क्षण को बाहर निकालने को आतुर कर दिया..
एक घंटा साथ रहे..बस दो चार मिनट का औपचारिक वार्तालाप..पंकज जी कैसे हैं..भोपाल से दिल्ली कब  शिफ्ट किया..इंडियागेट के पास घर..अगली बार वहीं आना है..बाकी समय .. गुजरे छह महीने की आपबीती..
ठीक है वंदना..फिर मिलेंगे..
सोचा था इस बार पुस्तक मेले में कई वर्षों से नहीं मिले जहान भर के मित्रों और फेसबुक के जरिये हुई दोस्तियों से मुलाकात हो जाएगी..पर अनिल जनविजय, वंदना राग और शालू से मिल कर ही बाकी कई सारों से न मिलने की कमी पूरी हो गयी...
कल हापुड़ से दिल्ली जाते हुए हरिद्वारवासिन शेली को न आने के लिये कहना पड़ा..पैदायशी कन्फ़्यूज़्ड बिहारन शेली न तो मेरा प्रोग्राम समझ पायी न मैं समझा पाया..फिर मिलते हैं शेली..
लखनऊ से चलते समय दिल्ली की फ्लाइट पकड़ने जा रही पारुल को उड़ान भरने से पहले ही उतरवा दिया..मुम्बई की गुज्जू बाला दिल्ली की ठंड में टें बोल जाती तो अंतिम संस्कार के लिये लोग जुटाने मुश्किल पड़ जाते..
लेकिन दिल्लीवालों ने बहुत निराश किया..जैसे ही शालू की कार के पहिये हापुड़ की ओर घूमे..राजीव शर्मा फोन पर टर्राए..कहां हो भाई..मैं गेट न. सात तक पह़ुच गया हूं........वहीं तेल बेचो ससुरे तुम....
पंखुड़ी को फोन किया..कोई जवाब नहीं..हापुड़ में फ़रमान आया ..कहां हैं आप..भाड़ झोंक रहा हूं..कोई शक..
पुष्पेन्द्र लापता हैं..शोभा पांडे को फोन किया तो क्नाटप्लेस बुला रही है..
और तीसरे दिन जैसे पूरा BITV मिलने आ गया..बेला स्वरूप बिलकुल 1995 जैसी..राजीव शर्मा और मुकेश कुमार सिंह का वही अंदाज़..प्रभात शुंगलू की छत फोड़ हंसी..तीनों के साथ खूब समय गुजारा..विदेश जा बसे गौरव करीर से न मिल पाने का बेहद अफ़सोस रहा..रस्ते में ही फोन आने शुरू हो गए थे कि कब पहुँच रहे हो.. पुनीत से भो दो मिनट की मुलाकात..
अनिल जनविजय भी यहाँ वहां मंडराता मिल गया..मिल कर अच्छा लगता है इस नामाकूल से ..काफी देर का साथ रहा..उसे शाहदरा छोड़ने गए..
और मिली पंखुरी..सहारा टीवी से लेकर मुज़फ्फरपुर तक का लंबा और खूबसूरत साथ..

अगस्त्य अरुणाचलम को मान गया.. तबियत खराब ... पर यार ने अपनी बिजली रानी को मिलने भेजा..यही नहीं.वहीं फोन पर कनफर्म कराया कि वो मिलने आयीं कि नहीं..पुरानी फेसबुकिया मित्र अंजू शर्मा कवियत्री बन गयी हैं..ख्यातिप्राप्त..... ठीक है यारां..जो मिला बहुत अच्छा..जो नहीं मिला और भी अच्छा...
1/17/19