चिरको चने के ही खेत में...
"स्वच्छ भारत अभियान की पोल अब खुलने लगी" गिरीश मालवीय की इस रिपोर्ट को पढ़ने बाद हाल के दिनों का एक सच्चा किस्सा याद आ गया..बहुत दिनों से इस पर लिखने को था..आज लिख मारा..
किस्सा है सुल्तानपुर के पास तिलोई तहसील के एक गाँव का...मोदी शौचालयों की दुर्गति और कई सारे खिलवाड़ों को किनारे कर उस गाँव में शौचालय बनवाने के लिये जब पहल की तो मोदी जी की मार्केटिंग का लोहा मान गया..एक बात और बताना भूल गया कि शौचालय बनवाने को गाँव के ही किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति को 12-15 हज़ार रूपए दिए जाते हैं मुखिया की मार्फ़त..अपना उद्देश्य वो ही रूपए निकलवाना था..
तो इस काम के लिए पहले तो राजीव मित्तल नामक निवर्तमान पत्रकार ने एक वर्तमान पत्रकार को फोन लगाया..उन्होंने गौरीगंज में एक और पत्रकार से मिलवाने का आश्वासन दिया..गौरीगंज में मिले पत्रकार ने पूछा कि आप कहो तो राहुल गांधी से मिलवा दूँ..हमने मना कर दिया और एसडीएम से मिलवाने को बोला..लेकिन वो जिससे मिलवाए वो दरोगा निकला..उस पत्रकार के साथ तलोइ तहसील का एक और पत्रकार था..जिसने बाइक में पट्रोल भराई को 200 रूपए हमसे ले लिए..
उस एसडीएम रूपी दरोगा ने एक हफ्ते में काम करा देने का वादा बड़ी गरमजोशी से किया..इस बीच फच्चर फंसा दिया तिलोई वाले पत्रकार ने यह कर कि पहले 800 रुपए मुखिया को देने होंगे..
अब मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि मैं किससे मिलूँ..ग़ालिब के एक शेर को इस अंदाज़ में गुनगुनाने के आलावा कोई चारा नहीं कि--
हुए न हम राजीव शुक्ला कि बनते आईपीएल का सीईओ..तो होते कदम कदम पर दस दस शौचालय
1/16/19