शनिवार, 28 मार्च 2020

आज पता नहीं क्यों रह रह कर दरभंगा की वो ठिठुरती शाम याद आ रही है...

मुज़फ्फरपुर हिंदुस्तान में या यूं कहिये बिहार में कदम धरे दो माह ही हुए थे कि संपादक सुकान्त नागार्जुन ने अपन को दरभंगा के छुटके से दौरे पर भेज दिया..दिसम्बर का महीना..साथ में थे तरुण कुमार कंचन..मय साज ओ सामान..

दरभंगा ब्यूरो के ऑफिस में घुसते ही ब्यूरोचीफ अशोक कुमार को ललकारा कि चलो किसी मिठाई की दुकान पर..भला आदमी हकबकाया पहले तो कि मेरा किया क्या जाए जो दुआ सलाम, या अपनी पहचान बताये बिना ही हुक्म दाग रहा है..कंचन ने स्थिति संभाली और फौरन उनके कान में कुछ गुनगुनाया..

अशोक ने एक बार फिर इस छह फुटे पर नजर डाली और फिर मारा ठहाका..उसके बाद चाय का भी इंतज़ार नहीं किया.. और हम तीनों मिठाई की दुकान पर..फिर तो पूछिये मत..ऐसा मिठाई मिलन हुआ कि दुकानदार भी मस्ता गया.. चलते समय अशोक कुमार ने बोरा भर मखाना भी लदवा दिया...




और मखाने ने भी बिहारी अंदाज़ में अगले पांच साल पूरा साथ निभाया..
11/25/18