क्रिसमस चल, वैलेंटाइन्स आया
राजीव कुमार मनोचा *
किसी भी चीज़, किसी भी वाद-विचार या किसी भी सोच का सत्यानास करना हो तो भारतीयों के हाथ पकड़ा दो। भट्ठा बिठा डालेंगे उसका ! समाजवाद, नारीवाद, गे'वाद, सेक्युलरवाद सब को सड़कछाप बना के रख दिया। पश्चिम से उठाया, फिर देसी कुंठाओं के मसाले जम के घोंट डाले इनमें।
कुछ ऐसा ही हाल इन्होंने त्यौहारों का भी किया है। बैठे बिठाए क्रिसमस में घुस गए। इसलिए नहीं कि जीसस या उनके सदविचारों में आस्था थी, बल्कि सिर्फ़ इसलिए कि क्रिसमस की पार्टी रुपहली और रंगारंग होती है। और अक्सर इन पार्टियों में शराब और नाच गाना मिलता है, लड़कियों की दिलकश कम्पनी के साथ ! और पार्टी की पिछली रात सैंताक्लॉज़ इन्हें ख़्वाब में यह ख़ुशफ़हमी भी करवा जाता है कि ईसाई लड़कियां फ्रैंक होती हैं, जल्दी राह पर आ जाती हैं।
वैसे दूसरों का ही नहीं अपना संक्रमण- Transit भी इनके बस का नहीं। क्रिसमस जैसी ही गत इन्होंने यहाँ से वहाँ ले जा कर अपनी दीवाली की बनाई है। जी मेरा मतलब विदेशी दीवाली से है, विशेषकर हमारे देसी स्टूडेंट्स मनाते हैं जिसे। यदि यक़ीन न हो तो इनकी दीवाली देख लीजे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में। हमें टीचर और माता-पिता सब समझाते थे कि कम से कम त्यौहार वाले दिन अपना आचरण सात्विक रखो, वरना कोई मक़सद नहीं बचता इन्हें मनाने का। और वहां देखिए... न दिया न दीपक, न कोई आस्था का रंग। न देश की याद, न उसके संस्कारों की स्मृति। शाम को चिकन टिक्का या बटर चिकन की पार्टी, साथ में जम के शराबबाज़ी और उत्तेजक डांस। मेरे जैसे अधार्मिक आदमी को भी कराहत महसूस होने लगे, ऐसी वाहियात क़िस्म की दीवाली पार्टी !
अब ज़रा धर्म से हट कर अपने प्रेम की उड़ान देखें। बड़ी लम्बी उड़ान भरी है हमने वैश्वीकरण और MNC कल्चर के साथ। उसी परवाज़ का हिस्सा है यह कथित प्रेम दिवस, वैलेंटाइन्स डे। एक निजी सर्वे कर के देखिए, आप ख़ुद मान जाएंगे। सबसे ज़्यादा ब्रेक-अप करने वाले सबसे बढ़ चढ़ कर मनाते हैं इसे, अपने नये हुक-अप के साथ। खोखली इश्किया ड्रामेबाज़ी, देसी सोच पे अंग्रेज़ी आशिक़ी का आवरण, मन के भीतर प्रेम का गहन एहसास बिल्कुल ग़ायब ! लेकिन ऊपर की सतह पर इतना जोश कि जैसे जन्म जन्मांतर का मीत आख़िर मिल ही गया हो जनाब को। वैसे यह भी अगर छूट जाए तो अगली बार जो अवेलेबल हो, नया वैलेंटाइन्स उसी के नाम पर सही। जो प्यार की लम्बी लम्बी बच गई, उस पर छोड़ देंगे। जो सेलिब्रेशन होना है उसके संग हो जाएगा। मतलब तो मौजमेला करने से है। प्रेम के स्तर से हमें क्या सरोकार ! इनके चलते वे जोड़े भी दिखावटी लवर जान पड़ते हैं जिनके दम पर यह दिन प्रेम दिवस के तौर पर स्थापित हुआ।
प्रेम से बढ़ कर सात्विकता किसी चीज़ में नहीं, धर्म में भी नहीं। अगर हो सके तो वैलेंटाइन्स डे में प्रेम का वह गहन संस्कार पैदा करो जो इस तरह के दिनों से अपेक्षित है। पश्चिम से मिले क्रिसमस को तो अपनी विलास वृत्ति से बदरंग कर चुके, अब इस कथित प्रेम दिवस को बख़्श दो। यों भी तुम जैसे सांस्कृतिक बन्दरों का इतिहास गवाह है कि तुमने या तो पश्चिम से विचारों का कचरा उठाया और या फिर उसके अच्छे ख़ासे विचारों का कचरा कर दिया।
अब वैलेंटाइन्स डे का तुमने कैसे और कितना कचरा किया, यह अपने या अपनी किसी 'एक्स' से पूछ लो। शायद इस दिन तक भी उस कचरे का बोझ उसके दिल पर बाक़ी हो, तुम्हारे नुमाइशी प्रेम की फ़िज़ूल यादों के साथ।