धर्म की लदान ही भारत-पाकिस्तान को जन्म देती है..
"क्यों बाटी गई यह सरहदें, क्यों बांटे गए यह देश, ये शहर, ये मोहल्ले, इसीलिए न की इंसान सुकून से रह सके ? लेकिन कोई किसी की सरहद पर आ भी जाए तो इंसान फौरन मरने मारने पर उतर आता है !
हमारे गैर मुस्लिमीन भाई जो भारत को हिंदू देश बनाने का सपना देख रहे हैं, जब भारत पूर्ण रूप से हिंदू देश बन जाएगा तो क्या भारत में कोई लड़ाई झगड़ा नहीं होगा ? कोई किसी को नहीं मारेगा ? उसके बाद भी होगा, ऊंच-नीच को लेकर, जातियों को लेकर, अमीर गरीब को लेकर, क्योंकि असल झगड़ा ना धर्म का है ना सरहदों का है ना जातियों का है असल झगड़ा इंसान का इंसान से है कि दूसरा इंसान हमसे आगे कैसे, हमसे बेहतर केसे है, हम दावत देते हैं उन भाइयों को जो सुकून चाहते है, प्यार मुहब्बत भाई चारा चाहते है, की इस्लाम की तरफ आओ, यहां पर इंसानियत सिखाई जाती है, मोहब्बत सिखाई जाती है, एक दूसरे की मदद करना सिखाया जाता है, एक दूसरे के लिए हमदर्दी और एक दूसरे की फिक्र सिखाई जाती है, हम ऐसे ऐसे नबी के मानने वाले हैं जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी सिर्फ दूसरों के लिए गुजारी है,
हम सब इंसान तो आदम से हुए हैं, और हम आपस में भाई-भाई हैं एक दूसरे की फिक्र करो, एक दूसरे के लिए भला चाहो, खून खून होता है चाहे सरहद के इस पार के इंसान का हो, या सरहद के उस पार के इंसान का ,सरहद कि इस पार के इंसान के घर वाले भी बेघर होंगे, और सरहद के उस पार वाले इंसान के भी घर वाले भी बेघर होंगे , नुकसान सिर्फ इंसानियत का होगा।मैंने अपने टूटे फूटे अंदाज़ में एक बात कहने की कोशिश की है, अल्लाह हम सब को सही समझ दे !"
हमारे गैर मुस्लिमीन भाई जो भारत को हिंदू देश बनाने का सपना देख रहे हैं, जब भारत पूर्ण रूप से हिंदू देश बन जाएगा तो क्या भारत में कोई लड़ाई झगड़ा नहीं होगा ? कोई किसी को नहीं मारेगा ? उसके बाद भी होगा, ऊंच-नीच को लेकर, जातियों को लेकर, अमीर गरीब को लेकर, क्योंकि असल झगड़ा ना धर्म का है ना सरहदों का है ना जातियों का है असल झगड़ा इंसान का इंसान से है कि दूसरा इंसान हमसे आगे कैसे, हमसे बेहतर केसे है, हम दावत देते हैं उन भाइयों को जो सुकून चाहते है, प्यार मुहब्बत भाई चारा चाहते है, की इस्लाम की तरफ आओ, यहां पर इंसानियत सिखाई जाती है, मोहब्बत सिखाई जाती है, एक दूसरे की मदद करना सिखाया जाता है, एक दूसरे के लिए हमदर्दी और एक दूसरे की फिक्र सिखाई जाती है, हम ऐसे ऐसे नबी के मानने वाले हैं जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी सिर्फ दूसरों के लिए गुजारी है,
हम सब इंसान तो आदम से हुए हैं, और हम आपस में भाई-भाई हैं एक दूसरे की फिक्र करो, एक दूसरे के लिए भला चाहो, खून खून होता है चाहे सरहद के इस पार के इंसान का हो, या सरहद के उस पार के इंसान का ,सरहद कि इस पार के इंसान के घर वाले भी बेघर होंगे, और सरहद के उस पार वाले इंसान के भी घर वाले भी बेघर होंगे , नुकसान सिर्फ इंसानियत का होगा।मैंने अपने टूटे फूटे अंदाज़ में एक बात कहने की कोशिश की है, अल्लाह हम सब को सही समझ दे !"
..अपनी फेसबुक मित्र अनीसा मुंशी की रिपोर्ट जस की तस यहाँ दे कर अपनी बात कह रहा हूँ..
**ज़बरदस्त आशावाद से भरी पोस्ट है अनीसा आपकी..जबकि इंसान का मनोविज्ञान बताता है कि जैसे वह अपने मित्र तलाशता है वैसे ही अपने दुश्मन भी तलाशता है..और कई बार तो इसके चलते खुद अपना दुश्मन बन जाता है..
सही है कि अगर यह देश केवल हिंदुओं का होता तो इस देश में जातिगत आधार पर खून खच्चर हो रहा होता लेकिन यह केवल भारत की ही बात नहीं है करीब करीब पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की स्थिति है कि हमें प्यार के लिए भी कोई दुश्मन चाहिए..
एशिया के कई सारे देश खास कर भारतीय उपमहाद्वीप के देश अभी विकास और परिपक्वता की उस रेखा को छू भी नहीं पाये हैं जहाँ औरत मर्द नहीं, इंसान बसते हैं..
जहाँ एक बिन ब्याही माँ राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर बैठते समय बच्चे के बाप का नाम बताने की जहालत से दो चार नहीं होती..जहाँ बच्चे को किसी भी जगह कैसी भी स्थिति में बेख़ौफ़ बेबाक हो कर दूध पिलाया जा सकता है..
विकास और समझ की उच्चकोटि वो है जहाँ बच्चे का जन्म लेना केवल औरत की मर्जी पर होता है..बच्चे का बाप कौन है यह कोई मतलब ही नहीं रखता..जहाँ धर्म दिल के किसी कोने को रोशन करता है न कि दिल और दिमाग को जकड़े रहता है...जहाँ आस्था से जुड़ने के लिए गंगा, गाय, मंदिर, मस्जिद, पंडित,मुल्ला मौलवी की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ती...जहाँ धर्म न तो इंसान के आचार, विचार को पारिभाषित करता है न ही उसकी पारवारिक और सामाजिक स्थिति को प्रभावित करता है..जहाँ केवल जीना मकसद होता है..ज़न्नत या स्वर्ग या मोक्ष की लालसा पालना नहीं..**