मंगलवार, 24 मार्च 2020

अगर हाशिमपुरा में मुसलमानों के हत्यारे पुलिस वालों को सज़ा दे दी जाती
अगर लक्ष्मनपुर बाथे और शंकर बीघा में दलितों के हत्यारे सवर्णों को सज़ा दे दी जाती
अगर छत्तीसगढ़ में सिंगारम ,सारकेगुडा ,गोम्पाड ,गाँव के आदिवासियों के हत्यारे पुलिस वालों को सज़ा दे दी जाती
अगर सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर भरने वाले को भारत का राष्ट्रपति इनाम ना देता
अगर शोपियान के बलात्कारी फौजियों ,मणिपुर की मनोरमा के बलात्कारी फौजियों , उड़ीसा की आरती मांझी के बलात्कारी सैन्य बलों के सिपाहियों को सज़ा दे दी जाती ,
अगर बलात्कार के अट्ठारह साल बाद भी भंवरी बाई को कोर्ट आज भी इंतज़ार ना करवाता
तो क्या लोकतंत्र मर जाता ?
क्या मजलूम को इन्साफ देने से जम्हूरियत मर जाती है
क्या सत्ता बस बड़ी जात वालों की
बहुसंख्यकों की
अमीरों की
पुरुषों की
सेविका बनी रहेगी ?
क्या कानून और
संविधान
कभी नहीं जीतेंगे
क्या भारत की जनता इस तरह का लोकतंत्र चाहती है ?

अगर जनता इस तरह का लोकतंत्र नहीं चाहती तो इस तरह लोकतंत्र को कौन चला रहा है ?