मंगलवार, 24 मार्च 2020

मथुरामोहन नौटंकी कंपनी की लैला...
गाड़ी ने सीटी दी..हिरामन को लगा..उसके अंदर से कोई आवाज़ निकल कर सीटी के साथ ऊपर चली गयी हो...
गाड़ी हिली..हिरामन ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे को बाएं पैर की एड़ी से कुचल दिया..कलेजे की धड़कन ठीक हो गयी..हीराबाई हाथ के बैंगनी साफी से चेहरा पोंछती है..साफी हिला कर इशारा करती है..अब जाओ..आखिरी डब्बा गुजरा..प्लेटफार्म खाली..सब खाली..खोखले..मालगाड़ी के डब्बे..दुनिया ही खाली हो गयी मानो..हिरामन अपनी गाड़ी के पास लौट आया..
हीराबाई चली गयी..अब मेले में क्या धरा है..खोखला मेला..हिरामन ने अपनी गाड़ी गाँव की ओर जाने वाली सड़क की ओर मोड़ दी..
उलटकर अपने खाली टप्पर की ओर देखने की हिम्मत नहीं होती है..पीठ में आज भी गुदगुदी लगती है..आज भी रह रह कर चम्पा का फूल खिल उठता है उसकी गाड़ी में..
उसने उलट कर देखा..बोरे भी नहीं बांस भी नहीं बाघ भी नहीं..परी..देवी..मीता..हीरादेवी..महुआ घटवारिन कोई नहीं..मरे हुए मुहूर्तों की गूंगी आवाज़ें मुखर होना चाहती हैं..

हिरामन ने बेमन से चल रहे अपने दोनों बेलों को झिड़की दी..रेलवे लाइन को उलट उलट कर क्या देखते हो..
3/13/19