गुरुवार, 26 मार्च 2020

इतिहास का छल..... 8
इतिहासकारों का मत है कि अगर प्लासी की लड़ाई में अंग्रेज़ो की हार हो जाती तो भारत पर अंग्रेजों के शासन की बुनियाद नहीं पड़ती।  इस युद की चर्चा पर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की हार पर कुछ इतिहासकार मीरजाफर की गद्दारी को सारा श्रेय देते हैं। इस युध्द में नवाब के सेनापति ने यकीनन गद्दारी की थी,  लेकिन सारा दोष अकेले उसी को नही दिया जा सकता। उस समय गद्दारों की एक टीम थी, जिनके नाम तो हैं लेकिन इतिहास की किताबो में उन पर विस्तार से कभी नही लिखा गया, इसलिए अकेले मीर जाफर ही गद्दारी का जिम्मेदार माना गया।
दरअसल मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने अंग्रेज़ो को बिना चुंगी के माल को विक्रय के लिए ले जाने की परमिट दे रखा था। जिसे दस्तक कहा जाता था। उस दस्तक के नाम पर  बंगाल के देसी महाजन भी अपना माल अंग्रेजों की मार्फत देश में इधर उधर भेज देते थे। बदले में अंग्रेजों को अपने बचे टैक्स का कुछ हिस्सा देते थे। इससे बंगाल के नवाब को राजस्व घाटा होता था। धीरे धीरे राजस्व घाटा बढ़ने लगा।  इनमें सबसे अधिक माल बंगाल के नगर सेठ का दर्जा प्राप्त सेठ जगत बंधु मेबताब राय, स्वरूप  चंद सहित जानकी राम, राय दुर्लभ और राजा राम नारायण के होते थे। ये सभी तत्कालीन नवाब के करीबी भी थे।
1756 में जब सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना तो उसने इन हालात को समझा और अंग्रेज़ो को ऐसा न करने की चेतावनी दी। उनके नही मानने पर सिराज ने कलकत्ता में बनी अंग्रेजों की कोठी ( किले) पर अधिकार कर 20 जून को उसकी देखरेख माणिक चंद को सौंप दिया।
नतीजा यह हुआ कि बंगाल के देसी बनियों और अंग्रेजों के बीच एक दुरभिसंधि हुई बंगाल में तख्ता पलट का समझौता हुआ।  ब्रिटेन उस समय फ्रांस से युद्ध मे उलझा था, वो आर्थिक संकट से गुज़र रहा था, इसलिये तय ये हुआ कि ये देशी सेठ धन देंगे और सत्ता पलट के बाद व्यपार में बड़ी हिस्सेदारी पाएंगे।
तत्पश्चात जगत सेठ महताब राय, अमीरचंद, राय दुर्लभ यहां तक कि मानिकचंद ने गुट बना कर मीरजाफर से वार्ता की और उसे बंगाल का नवाब बनाने का वादा कर बगावत कर लिए राजी किया। अंततः 1757 के जून महीने में देसी बनियो और अंग्रेज़ो की गठजोड़ वाली छोटी सी सेना ने नवाब से युद्ध किया। हालांकि नवाब की सेना बड़ी थी, लेकिन जंग के समय सेनापति मीरजाफर की अगुआई में सैनिकों का बड़ा दल पलासी के मैदान में तटस्थ रहा, नतीजे में सिराज की हार हुई और युद्ध चंद घण्टे में समाप्त हो गया।  सिराज की हत्या कर दी गई।

इस पूरी घटना को इतिहास की सामान्य किताबों में पढ़ें तो  तो लगेगा कि सारा दोष मीरजाफर का ही था, पूरी कहानी से नगरसेठ और देसी महाजनों की भूमिका गायब मिलती है। हाँ, गम्भीर पुस्तकों में इनका हवाला विस्तार से देखने को मिलता है। जिससे पता चलता है कि इन देसी महाजनों की भूमिका कितनी घृणित थी और किस प्रकार इन सबने साज़िश कर देश मे अंग्रेज़ी शासन की बुनियाद खड़ी करने में मदद की।
#इतिहास_का_छल
2/1/19