मंगलवार, 24 मार्च 2020

हिंदी मीडिया को कितना गिराओगे
राफेल रिपोर्ट पर हिंदी अख़बारों और चैनलों ने अगर कुछ थोड़ा बहुत बका भी तो मोदी को साफ़ सुथरा बताने को..लेकिन आज तलक हिंदी में शायद ही एक भी विस्तृत रिपोर्ट इस बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे पे आई हो..यह हिंदी वालों के लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि अब उन्हें हिंदी के अख़बार ढंग की ख़बरें भी नहीं दे पा रहे...सिवाय सत्ताधारी नेताओं की चमचागिरी के..उनके पास न न्यूज़ है न व्यूज़..
जबकि बोफर्स या खाड़ी युद्ध पर या ऑपेरशन ब्लू स्टार या बाबरी मस्जिद के ढहाये जाने जैसे महत्वपूर्ण मौकों पर हिंदी मीडिया कहीं बढ़ चढ़ कर अपने पाठकों को संतुष्ट कर रहा था..
मुझे याद है कि 1987 से लेकर 1990 तक बोफर्स हो या खाड़ी युद्ध या राजीव गांधी का अवसान..ऐसे न जाने कितने मुद्दों पर हम पत्रकारों ने युद्ध स्तर पर काम किया..हज़ारों शब्द वाली ख़बरों का अनुवाद किया..उस समय हर हिंदी अख़बार अपने संस्थान के अंग्रेजीं अख़बारों की विशेष संवाददाताओं की हर महत्वपूर्ण ख़बर का अनुवाद करता था..क्योंकि विदेशों में ब्यूरो अंग्रेजी अख़बारों के ही होते थे..
पंजाब के आतंकवाद पर जनसत्ता जैसे अख़बार न्यूज़ और व्यूज़ दोनों में एक्सप्रेस को टक्कर दे रहा था..बल्कि चंडीगढ़ में ऐसे कई मौके आये जब चंडीगढ़ एक्प्रेस ने हमारे रिपोर्टर की अति महत्वपूर्ण खबर का अनुवाद किया..

लेकिन अब अब सारा ध्यान अख़बार को साड़ी और गहने पहनाने की ओर है..और पाठक को मूर्ख बनाने की ओर है...
2/8/19