एक पल
बिजली की चमक
और कुछ बूंदें
सभी कुछ सहज
पर..
मौसम के लिये
कुछ उतना ही सहज
उसके लिये
अंधेरी सी गली पार करना
फिसलती काई पर
लड़खड़ाते कदमों के साथ
दरवाजा खोलना
अपने हाथों से
खटखटाने से कोई
फायदा नहीं
क्योंकि अंदर
हांफती खामोशी है
बस
उसे परिचय देकर
धंसी आंखों से
कुछ खोजना
उस बीते हुए को
जिसमें वह अकेला नहीं था
दीवारें खामोश नहीं थीं
खटखटाने पर
कुछ हाथ थे
दरवाज़ा खोलने को
और थीं परिचित सांसें
एक और बिजली की चमक
बादलों का गर्जन
धकेलता है
उसे वापस
अपरिचित
खामोशी में
वर्तमान को थोड़ा सा
खिसकाने को
एक मोमबत्ती टूटी हुई सी
और
चीथड़ा हो चुकी माचिस की डिबिया
-राजीव मित्तल
3-7-11
बिजली की चमक
और कुछ बूंदें
सभी कुछ सहज
पर..
मौसम के लिये
कुछ उतना ही सहज
उसके लिये
अंधेरी सी गली पार करना
फिसलती काई पर
लड़खड़ाते कदमों के साथ
दरवाजा खोलना
अपने हाथों से
खटखटाने से कोई
फायदा नहीं
क्योंकि अंदर
हांफती खामोशी है
बस
उसे परिचय देकर
धंसी आंखों से
कुछ खोजना
उस बीते हुए को
जिसमें वह अकेला नहीं था
दीवारें खामोश नहीं थीं
खटखटाने पर
कुछ हाथ थे
दरवाज़ा खोलने को
और थीं परिचित सांसें
एक और बिजली की चमक
बादलों का गर्जन
धकेलता है
उसे वापस
अपरिचित
खामोशी में
वर्तमान को थोड़ा सा
खिसकाने को
एक मोमबत्ती टूटी हुई सी
और
चीथड़ा हो चुकी माचिस की डिबिया
-राजीव मित्तल
3-7-11