मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

उनका आना उनका जाना

राजीव मित्तल
बाढ़, नेपाल से ढेरों पानी, जहां-तहां लटक कर दिन काटना, ऊपर से हेलीकॉप्टर की घर्र-घर्र, बगल में बैठ फन काढ़े सांप, सरकार, प्रशासन और नेताओं की नौटंकी टाइप जद्दोजहद, पानी के बीचो-बीच हुई औलाद का सुख, गीली लकड़ियों की चिता पर पिता का शव और तटबंध से वापस लौटने पर झोंपड़ी की जगह पानी में टांग उठाए पड़ा छप्पर -इहलोक की इतनी सारी लीलाओं से कदमताल मिला पाता कि वो भी आ गए।
मोटरकार में रंगीन चश्मे के साथ मुंह में लगी सिगरेट हाथ में ले पूछा कहां है बाढ़? चीथड़ों में लिपटी काया ने कहा-सर जी पानी उतर गया। हम तो बाढ़ देखने आए थे, जब पानी ही नहीं तो बाढ़ कैसी और कैसा नुकसान। आप लोग इसी तरह हर साल परेशान करते हैं हमें। तभी उनके कान में जिले का आला अफसर फुसफुसाया। उन्होंने सिगरेट का जोरदार कश लगाया। पहले मुंह से और फिर नाक से धुआं निकालने के बाद उसी काया के साये से पूछा-क्या क्या नुकसान किया उस बाढ़ ने? सर जी, घर ढह गया। कब की बात है? यही कुल जमा सात दिन पहले की। साहब ने चारों तरफ सिर घुमा के देखा तो तो समझ गए कि नया छप्पर डालने की चाह में अपना पुराना छप्पर खुद ही 12 मीटर दूर पसरे पानी में फेंक दिया होगा।
दलदल को बाढ़ कहता है मरदूद। अच्छा यह कंधे पर क्या टांगे हो, बदबू मार रहा है, खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा? बापू की लाश है सर जी, काया डगमगाई। तो अब तक फूंका क्यों नहीं? सूखी लकड़ी नहीं मिल रही है सर जी। तो मिट्टी का तेल छिड़क देते। वो जब राहत आएगी तब मिलेगा। अब तक इसको राहत क्यों नहीं मिली डीएम? सावंत जी, इस आदमी की डिमांड जरूरत से ज्यादा है-मसलन हमने छप्पर डालने को 75 पैसे दिये, पर यह डेढ़ रुपये मांगता है। हमने इसे 20 मिली लीटर मिट्टी का तेल दिया, यह एक लीटर मांगता है, हवन कुंड में लकड़ी दी, तो श्मशान के लट्ठे मांगता है, 50 ग्राम आटा, 15 ग्राम शक्कर, दो मोमबत्ती, ढाई सौ ग्राम चूड़ा दिया, पर यह सब डबल में चाहता है। डीएम ने बगल में दबी फाइल में से एक कागज निकाला- सावंत जी, देखिये कागज पे आंकड़ेवार सब दिया हुआ है, जापान से दवाइयां आ जाएं तो सब एकसाथ इन्हें पहुंचा दिया जाएगा।
यह सुन संतोष के भाव से उनका सिर हिला और बोले-भई, ऐसे तो नहीं चलेगा। हमें औरों का भी तो ख्याल करना है। काया, जो अब तक जमीन पर बिछ चुकी थी, थोड़ा लहराई- सर जी, परिवार में 32 लोग हैं, घोंघे और मरे जानवरों पर गुजारा कर रहे हैं, लेकिन अब वे भी नहीं रहे। अब आप ही कुछ कीजिये। बस-बस मुझे पता चल गया कि तुम्हें क्या चाहिये, डीएम इसे ड्यूरेक्स के दो पैकेट तुरंत दो। साथ लाए हो न! एक ही परिवार के 32-32 लोगों को राहत पहुंचाई तो हो चुका देश का विकास।

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