मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

कटोरे में कटोरा बेटा बाप से भी गोरा

राजीव मित्तल
कहने को तो यह चलताऊ मुहावरा है, पर बिहार के घोटालों पर इससे सटीक उपमा नहीं सूझ रही कि एक के बाद एक घोटाला, और हरएक पहले से ज्यादा घर भराऊ। और इसी के साथ याद आ रही है बर्मा की किसी कालकोठरी में बिताए भारत के अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की अंतिम दिनों की यह पंक्ति, कि ‘दो गज जमीं भी न मिली कुए यार में’। इस पंक्ति में उनका अपनी मौत के बाद अपनी लाश को दफनाने के लिए भारत की सरजमीं के न होने का दर्द झलकता है। लेकिन बिहार के घोटालेबाजों को पूरा विश्वास है कि उनके मरने पर उनका ‘कमाया’ सारा तामझाम उनकी टिकटी के साथ ही लदेगा और वहां उनकी आत्मा परमात्मा को ठेंगा दिखाते हुए जम कर अय्याशी करेगी।
बाकी, सात क्या सतरह पुश्तों के लिए तो नीचे छोड़े ही जा रहे हैं और अपनी औलादों को अपना सा बना ही दिया है। बहरहाल, आजादी के बाद से ही यह देश घोटालेबाजों का ही है, पर बिहार में घोटाला दिनोदिन सतरंगा होता जा रहा है। अब हालत यह हो गयी है कि दुनिया का कोई भी अर्थशास्μाी यह बता पाने में असमर्थ है कि बिहार में ऐसी कौन सी वस्तु बची है, जिसको लेकर घोटाला न हुआ हो। अब जैसे पटना के गांधी सेतु को ही ले लीजिए-अगर यह पुल सौ या अस्सी साल तक के लिए टिकाऊ होता तो दुनिया में कितनी फजीहत होती बिहार की और बिहार के घोटालेबाजों की! लेकिन नहीं, उन्होंने इज्जत रख ली इस राज्य की।
यह दो दशक बाद ही अंतिम सांसे लेने लगा है, आईसीयू में जाने की नौबत आ गयी है और अब होगा किनारे बैठ लहरों को गिनते हुए जेब भरने का काम। पुराने लोग बताते हैं कि गांधी सेतु बनाए जाते वक्त एक धंधेबाज तबका काफी नाखुश था क्योंकि इससे उसका धंधा चौपट हो रहा था। इस पुल के 1982 में चालू होने से पहले उत्तर बिहार के जिला वासियों को पटना जाने का प्रोग्राम बनाने से पहले ज्योतिष से साइत निकलवानी पड़ती थी और इस बात का पूरा ध्यान रखना पड़ता था कि बिल्ली रास्ता न काट जाए। हाजीपुर तक सड़क मार्ग उसके बाद गंगा के किसी घाट पर खड़ा किसी स्टीमर कम्पनी का धुआं उगलता स्टीमर और उसके बाद जय गंगे।
स्टीमर कम्पनी का चोखा धंधा था, लेकिन इस नामुराद एशिया के सबसे लम्बे पुल ने उसे कोई और धंधा अपनाने को मजबूर कर दिया। अगली-पिछली जो भी सरकार इस पुल के रखरखाव को दिये पैसे भी हजम कर जाए अब उसकी अगली जेनरेशन से इस बात की उम्मीद करना कि वह पुल को दुरुस्त करने के लिये 60-70 करोड़ खर्च करेगी-यह कुछ हजम नहीं होता। हां उस कम्पनी के स्टीमरों की मरम्मत जरूर शुरू हो सकती है ताकि पटना याμाा फिर पिकनिक का मजा देने लगे।

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