मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

जिंदा रहने की कोई शर्त तो पूरी करो


राजीव मित्तल
काक जी, ऐसा तो पहली बार देखने में आ रहा है कि मतदाता अपनी दुश्वारियों की टोकरी वोट मांगने वाले पर उडेल कर कह रहा है-पहले इसे साफ करो तब वोट की बात करना। काक भुशुण्डि ने चोंच ऊपर उठायी और बोले-हां गरुड, इसके लिये हमें लालू जी का शुक्रगुजार होना पड़ेगा। उन्हीं के दिखाये सतरंगी इंद्रधनुष को अब तक सब ताक रहे थे, सातों रंग जब मैले पड़ गए तोे आंखें पथराने लगीं इसलिये इस बार मतदाता किसी एक से नहीं हर दल से पांच साल का नहीं पंद्रह साल का हिसाब मांग रहा है।
काक जी, कल बेगूसराय में एक प्रत्याशी परेशान घूम रहा था, पूछा कि बगैर फौज के सेनापति बने कैसे टहल रहे हो प्यारे, वोट वगैरह मांगे, आपकी गाड़ी-जीप-कार्यकर्ता वगैरह सब कहां है? भाई ने पहले तो चाय की गुमटी से लेकर पांच-दस गिलास पानी पिया तब जाकर गले से आवाज निकली-इस चुनाव ने तो मिट्टी खराब कर दी। पहले तो ‘हम विद्या-तुम विद्या’ के नाम पर आसानी से वोट मिल जाते थे लेकिन इस बार जिस वोटर के दरवाजे पर जाओ, वह एक परचा लेकर आ जाता है, न बैठने को कहता है, न पानी पिलाता है। शुरू हो जाता है-वोट पड़वाना है तो पहले यह सब डिमांड पूरी कर दो।
एक के यहां तो अंदर से किसी जनानी की आवाज आयी- अरे परचा बाद में दिखाइयेगा, पहले दो बाल्टी पानी मंगवा लो, एक बूंद नहीं है खाना कब बनेगा? उसने जो परचा पढ़ कर सुनाया उससे दिमाग का मलीदा ही निकल गया है। पूरे गांव के चापाकल चला कर पानी निकालना, सड़क पर 80 किलोमीटर की रफ्तार से मोटरसाइकिल चलाना, बच्चों के स्कूल में उसके भवन की छत पर चढ़ कर पतंग उड़ाना, फिर स्कूल में ही लघुशंका का स्थान तलाशना, उसके बाद बाजार में कोई खाली स्थान तलाश कर अपनी गाड़ी खड़ी करना, रात को बगैर लालटेन जलाए रामचरितमानस की चौपायी गाना, हर एक के घर से पोलिंग बूथ की तरफ चलते हुए कदम नापना, कोई भी घर सौ गज से ज्यादा दूर न हो और फिर धान के खेत में खड़े हो कर गाना-ओ...ओ...मेरे देश की धरती सोना उगले। आप ही बताओ जी मैं कैसे इतने काम कर सकता हूं।
सब कहते हैं कि अब तक तो विधायकी आपने की है इसलिये ये सब काम भी आप ही करोगे, तभी वोट पड़ेगा। गरुड, कुछ समझा तू-इसके होश इसलिये फाख्ता हैं-क्योंकि सब चापाकल सूं.....की आवाज निकाल रहे हैं, किसी स्कूल में भवन ही नहीं है तो छत कहां से होगी, सड़क पर बैलगाड़ी नहीं चल सकती तो मोटरसाइकिल कहां से दौड़ेगी, बिजली का खम्भा बरसों से नहीं है तो लाइट कहां से जलेगी, बाजार में सबकी दुकानें सड़क तक आ गयी हैं, तो गाड़ी कहां से खड़ी करेगा, खेत में बाढ़ का पानी पसरा हुआ है तो धान क्या खाक उगेगा। मतदाताओं की एक शर्त तो इनका पायजामा ढीला किये है। कौन सी काक जी? रात को सोएं तो सुबह का सूरज दिखे और दिन को बाहर निकलें तो शाम को सकुशल घर वापसी। औरत की अस्मत और बच्चों की किस्मत भी इन्हीं के जिम्मे। यह कैसे होगा काक जी, फिर इन्हें चुनाव लड़ने के लिये पैसा और बूथ लुटवाने को गुंडों की फौज कहां से मिलेगी?

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