मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

लीची के गाछ पर जिलाबदरी

राजीव मित्तल
आमतौर पर उन रास्तों पर जाने से पहले कई टोटकों की जरूरत पड़ती है, लेकिन सारी आशंकाओं को दरकिनार कर पंचायत चुनाव के दसवें और आखिरी चरण में एक प्रखंड में जाना हुआ तो लगा कि दुनिया कितनी बदल गयी है। ऐसे मौकों पर जहां बम धमाकों से वातावरण गुंजायेमान रहा करता था, लोगों खेतों में लाठी-डंडे लिये दौड़ते नजर आते थे, बंदूक की नली शिकार तलाशने में बिजी रहती थी, आज वहां के रास्ते सुनसान पड़े थे। हवा भी चलने से सहम रही थी। ऊपर चील थी और नीचे हम। एकाध किलोमीटर पर बिहार की स्पेशल ऑग्जिल्यरि पुलिस के जवान ऊपर से नीचे तक बुर्कानुमा खोल में ढंके, दिखने में आकर्षक आग्नेयास्μा धारण किये नजर आ जाते या चार-पांच के समूह में वोट डालने जातीं महिलाएं। एक मकान के आगे वाहन रोक कर सहयोगी ने बाहर खड़े युवक से पूछा भैय्या कहां है? जी, वो तो जिला बदर कर दिये गये। तब तो जिले से बाहर होंगे? नहीं। वह फुसफुसाया-भैय्या लीची के बाग में खटिया डाले पड़े हैं। मतदान खत्म होने के बाद लौट आएंगे।
चुनाव के हर चरण में 40 से 50 बाहुबली जिला बदर किये जाते रहे। और हर प्रखंड के सौ-सवा सौ व्यक्तियों को लाल चिट्ठी जिला प्रशासन की ओर से भेजी गयी, जिसमें पाने वाले को कई सारी चेतावनियां। यह भी कि अगर बूथ के रास्ते में सिगरेट-बीड़ी का जलता टुर्रा भी दिखा तो खैर नहीं। चिट्ठी पाने वाले हर समझदार ने चुनाव वाली सुबह जलपान करने के बाद थाने का रास्ता पकड़ा कि सबसे सुरक्षित जगह वही है। आंख के सामने रहो तो कोई इल्जाम नहीं आएगा।
मतदाताओं को डराने-धमकाने की आशंका के मद्देनजर एक साहब-बीबी तक को संदेश पहुंचा दिया गया कि बुधवार दोपहर बारह बजे से शुक्रवार दोपहर तक जिले में नजर नहीं आना। साहेब विधान पार्षद तो बीबी जिला परिषद अध्यक्ष। पूर्व राμिा में साहेब का फोन आया- आऊं-आऊं कर रहे थे बेचारे। इतने साल की राजनीति मय इज्जत के मिट्टी में मिल गयी। पीछे से बीबी की सिसकियां कि आधी आबादी के साथ हाय यह कैसा अन्याय!
जहां बड़े भाई के लीची के बाग में होने की गुप्त सूचना मिली थी, वहां पता चला कि पहले कैसा भी चुनाव रहा हो, सारे वोट थोक के भाव में बारह बजते-बजते पड़ जाया करते थे। और असली वोटधारी घर से बाहर निकलता ही नहीं था। इस बार बारह बजे तक सिर्फ 25 फीसदी मतदान हुआ था। एक बजे के बाद महिलाएं घर का कामकाज निपटा कर जत्थों में निकल पड़ी। कुल मिला कर यह चुनाव ऐसा था जैसे डॉक्टर लड़की और इंजीनियर लड़के ने कोर्ट में एक-दूसरे को वरमाला डाल दी हो। न बाजा-गाजा, न लड़के मां की झिकझिक, न पिता का ललचाया हुआ खीसें निपोरता चेहरा, न ननद के झुमके, न देवर के ठुमके और न ननदोई की बकैती।

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