बुधवार, 8 दिसंबर 2010

बकरी सी मासूम इवीएम

राजीव मित्तल
जिस किसी सज्जन ने इस चुनाव में वोट डालने के लिये मतदान केंद्रों पर इवीएम रखवायी, उसको शत्-शत् प्रणाम और जिसने उसकी मानी उसको एक सौ एक बार। ऐसा लगा, जैसे हर बूथ पर बकरी बैठा दी गयी हो। बस हाथ आगे बढ़ाया और पें-पें,पीं-पीं की आवाज करते हुए गोद में दुबक जाना। पर भले आदमी को यह तो सोचना चाहिये था कि जब देश का मतदाता नेताओं की मेहरबानी से आल्हा-ऊदल बना हुआ हो, जगह-जगह खुले राजनीति के जिम्नेजियमों में पट्ठे तैयार किये जा रहे हों तब बकरीनुमा इवीएम नहीं बल्कि परे हट जैसी डीटीएम यानी दे थप्पड़ मशीन की दरकार थी, जो मिमियाती नहीं, बल्कि दहाड़ती और प्यार से गोद में लेने वाले के गाल पर काट लेती, कान या नाक उखाड़ लेती। तब इसे गोद में उठाने का जोखिम बड़े-बड़े सूरमा न उठाते। दूर खड़े हु-तू-तू करते रहते। बर्बरीक से इस बार के अतिशांतिपूर्ण मतदान की चर्चा कर रहे उस कठफोड़वे को यही नाराजगी थी कि अब तक किसी प्रत्याशी या दल ने उसे अपना चुनाव चिन्ह क्यों नहीं बनाया। इस बारे में बर्बरीक उसे समझा भी चुका था कि चुनाव चिन्ह बनने से तो अच्छा है कि वह चुनाव ही लड़ ले। बहरहाल इसकी चर्चा बाद में।कठफोड़वे के मुताबिक जैसे देश की आजादी के बाद विद्यार्थियों को सैन्य प्रशिक्षण देने के लिये नेशनल कैडेट कोर की स्थापना हुई, इसी तरह 1952 को हुए पहले चुनाव में एक छोटा सा ग्रुप बना था, नाम रखा गया बीएलजी ग्रुप (बूथ लूट गैंग), जो आज राष्ट्रीय फलक पर छा चुका है। बीएलजी सभी दलों को समान रूप से अपनी सेवाएं देता है। कुछ पुराने धनी-मानी लोग निजी ग्रुप यानी पीबीएलजी बनाते हैं, जो मेम साहब के लिये अचार बनाने को गर्मियों में पेड़ों से कच्चे आम तोड़ते हैं, शर्बत के लिये पके बेल, सब्जी के लिये कटहल और बालों में लगाने के लिये किस्म-किस्म के फूल। किसी गमी के समय गेंदे के फूलों की माला भी यही तैयार करते हैं। लाम पर जाते समय ये दल सुईं से लेकर एके 47 तक से लैस रहते हैं। पिछली बार तक वोट कागजी होता था, पेट पालने वाले के चुनाव चिन्ह, जो चुकंदर से लेकर ऊदबिलाव कुछ भी हो सकता है, के आगे ठप्पा लगाना होता था। यह बड़ा मशक्कत का काम था। कागज को मोड़ कर लोहे की बकुचिया में डालना भी होता था। इस बार थोड़ी सहूलियत रही। एक बटन इधर से दबा तो पें, तो उधर से पीं की आवाज। इवीएम से पें-पीं कराने के लिये माμा दो आदमी चाहिये। ज्यादा ममता झरने लगे तो उसे गोद में लेकर किसी तालाब के किनारे भी बैठा जा सकता है। लेकिन इस बार सरकारी और गैर सरकारी तौर पर साइंसदांओं की संख्या कम थी। इसलिये बकरीनुमा इवीएम ने दूध कम दिया गंदगी ज्यादा फैलायी। इसलिये कहीं-कहीं लोगों ने भन्ना कर गले पर छुरी ही फेर दी। गोद में उठाने वाले नासमझों ने भी कुछ ऐसा ही किया। इवीएम की इस बार हुई मिट्टी पलीद नेमतदान का कोई और तरीका, ताकि बीएलजी से बचा जा सके, तलाशने पर मजबूर कर दिया है। प्रधानमंμाी के एसएमएस प्रचार पर भी विशेषज्ञों का ध्यान गया है। हो सकता है कि अगले चुनाव में जनता एसएमएस के जरिये वोट डाले। इसमें मतदाता का कोड वगैरह पूछा जायेगा और पहचान ठीक निकलने पर फिर एक आवाज आयेगी कि किस चुनाव चिन्ह को लॉक करना है। मतदाता ने अपनी पसंद बता दी तो आवाज आयेगी-फूट ले, पड़ गया तेरा वोट। बर्बरीक ने क्वेरी की-तो बीएलजी का क्या होगा? जवाब था-कुछ नहीं, चुनाव चिन्ह आवंटित होते ही घर-घर की दीवारों पर एक खोपड़ी का निशान, उसके ऊपर पीबीएलजी के मालिक का चुनाव चिन्ह और दोनों के बीच में लाल रंग से लिखा होगा वरना। इस सिस्टम से सरकार का मोटा-मोटा नौ हजार और प्राइवेट सेक्टर का साढ़े नौ हजार करोड़ शर्तिया बचेगा।

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