मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

आह, आया बाढ़ का मौसम

राजीव मित्तल
पटाने से आवाज उठी- रेड अलर्ट, मुजफ्फरपुर गुर्राया- रेड अलर्ट, दरभंगा में थर्राया- रेड अलर्ट, बेतिया कांखा- रेड अलर्ट, पानी के नीचे से सीतामढ़ी की आवाज आयी-रेड अलर्ट। इतने सारे रेड अलर्ट सुन घर में घुस आया पानी उलीचते गोपाल मिश्र ने बगल वाले से पूछा- भैया ई रेड अलर्ट कि होइछै? जवाब मिला इसे सुन बाढ़ घटने लगती है। बहरहाल, पराधीनता के बाद आजाद भारत में भी इस सालाना प्राकृतिक उत्सव को सरकारी तौर पर परम्परागत तराके से मनाया जा रहा है। मजबूर जनता की भागीदारी बढ़ती जा रही है। पहले μाास्दी झेलो और फिर बरबादी-उसकी इस नियती पर सरकार ने भी मुहर लगा दी है।
आम पर बौर लगते ही शासन और प्रशासन स्तर पर खेला शुरू हो जाता है कि इस बार कैसा होगी बाढ़। क्या रंग-रूप होगा गंडक, कोसी, बागमती और उनकी संग-सहेलियों का। कितने मरेंगे, कितने बचाये जाएंंगे, इन टुटही नावों का क्या किया जाएगा। विभागों में बाढ़ की विनाशलीला के पुराने रजिस्टर बांचने शुरू कर दिये जाएंगे। पटना से जिलाधीशों के पास आदेश आएगा-जोर से पढ़वाओ अपने कारिंदों से ताकि हमें भी सुनायी दे। सबसे पहले चर्चा इस बात पर होगी कि बाढ़ ग्रस्त इलाकों का दौरा कैसे किया जाए। ठोस सुझाव तो यही होगा कि हवाई सर्वेक्षण किया जाये, क्योंकि पानी दूर तक फैला दिखायी देता है और आसमान की तरफ ताकते नंग-धंड़ंग बेबस, दहशत से भरे भूखे-प्यासे लोगों का झंुड μाासदी को ज्यादा बेहतर ढंग से दर्शाता है। कार से जाओ तो ये बेवकूफ भीड़ लगा कर घेर लेते हैं। उनका रोना-गाना सुन रात को भूख नहीं लगती। वैसे तो भैंस पर भी जाया जा सकता है, पर सत्ता पक्ष वाले कार से नीचे तैयार नहीं, सो भैंस विपक्ष वालों के लिये ही ठीक है।
खैर, इस बार यह बहुत अच्छा हुआ कि बाढ़ मंμाी और उनके सुप्रीम बॅास दोनों ने मान लिया कि हम बाढ़ नहीं रोक सकते, हां राहत दे सकते हैं पर वो भी यह देख कर कि बाढ़ का कोप कहां-कहां कितना फूटा और फिर यह भी तो देखना है कि केन्द्र ने कितनी मदद दी। इस नेपाल ने और नाक में दम कर रखा है। ससुर जब-तब पानी छोड़ देता है। यह नहीं देखता कि वो हमसे ऊपर है पानी छोड़ेगा तो हमारे ऊपर ही तो आएगा न। ऊपर से ये हमारी नदियां, बरसात आते ही इनके दिमाग खराब हो जाते हैं। यह नहीं देखतीं कि हमारी पगडंडीनुमा नाजुक सड़कें इनके लेवल से नीचे हैं, पुल जर्जर हो चुके हैं, लोग गरीब हैं। अब सरकार ही यह सब भी देखेगी तो राजकाज खाक चला पाएगी। अब इसके बाद भुखमरी फैलेगी, महामारी छाएगी, लोग मरेंगे, मीडिया हाय-तौबा मचाएगा। सिर पर कितना टंटा है यह कोई नहीं देखता। विपक्ष भी कांय-कांय मचाए है, यह नहीं कि आगे आकर कुछ करे। यह बाढ़ ठीकठाक निपट जाए तो बाब भोलेनाथ एक मन लड्डू पक्के।

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