राजीव मित्तल
बिहार में कैसा भी प्रशासन विधवा विलाप की स्थिति में पहुंच गया है। उसकी दुकान एक छोटे से खोके में चल रही है जहां उसकी हालत इन शब्दों में ही बयां की जा सकती है कि तेरी सुबह कह रही है तेरी रात का फसाना। रंगदारों ने उसकी वह धमक भी छीन ली है, जो मसूरी के अफसर पैदा करने वाले संस्थान में ट्रेनिंग के दौरान रग-रग में उछालें भरने लगती है। राज्य का इंजीनियर कबाड़ में बैठा अपने कान उमेठ रहा है कि उसने बेवजह बाप की गाढ़ी कमाई और पांच साल क्यों बरबाद किए और सालों घोटा लगाने के बाद आईएएस बनी दो हाथ दो पांव वाली काया चौपाया बनने को मजबूर है। डीआईजी रैंक के अफसर बजाय अपराधियों को पकड़ने के रात में रिक्शेवाले की सीट पर बैठ शोहदों और उनकी इस कला पे कुर्बान सैक्स वर्करों को दौड़ा-दौड़ा कर पकड़ते हैं, मुर्गा बनवाते हैं और फिर अपनी पीठ ठोकते हैं कि चलो एक बड़े काम को इतनी खूबसूरती से अंजाम दिया। अब कुछ तो हौव्वा बैठेगा कातिलोें, लुटेरोें, रंगदारों और तस्करों के दिलों में। थाने के इंस्पेक्टर बड़े साहब के लिए कोई रिक्शा तलाशने में मशगूल रहते हैं, जिसको चलाते हुए वे 'मैं रिक्शा वाला' लगें। जब केंद्र सरकार के वो हनकदार मंμाी, जिनके दल का बिहार में 15 साल से एकछμा राज है, माननीय रघुवंश प्रसाद सिंह की सांसद कोष की कई योजनाएं रंगदारी के घोड़ों के खुरों से उड़ती मिट्टी से सन गयी हैं, जिस वजह से वह बिसूर रहे हैं। उनसे यही पूछने को मन करता है कि मान्यवर, इस शेर की सवारी तो आपका दल काफी समय से बिना नकेल डाले कर रहा है। बस, खासियत यही है कि जब तक यह दौड़ रहा है, तभी तक ही आप खैरियत से हंै, रुकेगा तो नीचे उतरने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा। गिनीज बुक में चस्पा हो जाएं या टाइम मैगजीन में टंक जाएं, पर नागपुर, पुणे या सूरत का उद्धार कर देने वाला जैसा कोई अफसर इस राज्य में है जो मंμिायों और बाहुबलियों की सिफारिशों या धमकियों को ताक पे रख कर अपना काम पूरे जोश और ईमानदारी से कर सके! जरा गुजरात के भुज शहर हो आइये, जो तीन साल पहले भूकंप से बिल्कुल तबाह हो गया था और आज उसकी नयी काया कैसी चमक रही है। प्रशासन को बड़ा बाबू बना देने से बिहार जैसा ही हाल होता है। पंचतंμा की कहानियों में भी यही है साहेबान। और बड़ा बाबू तो सड़क को बगल में बह रही नदी के लेवल से नीचे ही बनवाएगा और रंगदारों की हड़काहट पर तुतलाना शुरू कर देगा क्योंकि उसे मालूम है कि उसका सरपरस्त शासन शेर की सवारी कर रहा है, चिड़ियाघर या सर्कस में नहीं बिल्कुल खुले में।
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