सोमवार, 6 दिसंबर 2010

ऐसे भी क्या हल्ले मचाना

राजीव मित्तल
जैसे नयी-नयी बहु घर के किसी भी मर्द के सामने पड़ जाने पर बिदक कर भागती है, उसी तरह उन्होंने पता नहीं ऐसा क्या कह दिया कि बहुएं पुरानी होते हुए भी बिदक ही नहीं रहीं, रार भी मचा रही हैं। काक भुशुंण्डि ने गरुड के डैनों पर अपनी चोंच फेरते हुए कहा कि वैसे तो चुनाव के समय कोई क्या बोलता है उसकी शुद्धता की जांच किसी भी लेबोरेटरी में नहीं हो सकती लेकिन पासवान ने तालाब में जो कंकड़ फेंका है उससे माहौल बड़ा रोमानी हो गया है। हमने यह किया-वो किया, यह करेंगे-वो करेंगे की चखचख से जरा हट कर पासवान के बोल देश की ऐतिहासिक और भौगोलिक सच्चाइयों की कड़वाहट से रुबरु कराते हंै। पंजाब में आतंकवाद के दिनों में पता नहीं कितने साल राष्ट्रपति शासन चला, क्योंकि उस समय उसकी ही जरूरत थी, बीच में बरनाला को आजमाया गया, लेकिन हालत और बदतर हो गये, लेकिन बेअंतसिंह की सरकार बनते ही आतंकवाद बेमौत मर गया। क्या बिहार की हालत उन दिनों के हालात से कम बुरी नहीं है! पंजाब का आतंकवाद तो बाहर से पोसा जा रहा था। हालांकि उसके लिये जैलसिंह-दरबारा सिंह का कई राउंड में चला दंगल भी काफी हद तक जिम्मेदार था, लेकिन बिहार तो अपने ही कारणों से आतंकवाद, उग्रवाद, रंगदारीवाद, ठेकेदारीवाद, दरिद्रतावाद, नेतावाद, जातिवाद और सरकारवाद का बरसों से मारा हुआ है। आठ सौ करोड़ रुपये फूंकने के बाद उसे मिर्गी का रोगी मान अगर चमड़ा सुंघाने की याद अब आ रही है तो ऐसी अक्कल दाढ़ के क्या कहने। वैसे μिाशंकू का कोई इलाज है भी नहीं। विश्वामिμा लाख कोशिश करने के बाद पल्ला झाड़ गये थे। लालू जी, नितीश जी, जेटली जी जब रोग बेकाबू हो रहा हो तो क्या किया जा सकता है? μिाशंकू की स्थिति में विधायकों की या तो नीलामी लगेगी, या पूरा दल ही नीलाम हो जाएगा, उस हालत में भी रोगी तो बिस्तर से उठ खड़ा होने से रहा, जब स्पेशलिस्ट कुछ नहीं कर पाया, तो अब जो फौज जुटेगी वो क्या कर लेगी। रोगी को ठीक करने के बजाये हर कोई रोग बढ़ने का दोष एक-दूसरे पर थोपता नजर आएगा, रोगी कराह नहीं चिंघाड़ रहा होगा और डाक्टरों में जूतम-पैजार चल रही होगी। राजा राम मोहन राय के वक्त जैसे बंगाल में कोई विधवा सिर्फ सती ही होती थी, तो अब तो जमाना कहां से कहां पहुंच गया है, अब सती होने की जरूरत नहीं, रंगीन साड़ी भी चलेगी, तो कुछ दिन घर की खिड़की खोल उससे बाहर का नजारा देखने में क्या हर्ज है। हो सकता बिहार कोमा से बाहर आ जाए और आप सबको फिर उसे कोमा में पहुंचाने का मौका हाथ लग जाए। श्री कृष्ण भी मौका पड़ने पर रणछोड़ कर भाग लिये थे और गोमांतक की पहाड़ियों पर अगले युद्ध की तैयारी में लगे रहे थे। कुछ तो सबक जिन्हें भगवान मानते हो उनसे भी लो, क्यों मैं कुछ गलत तो नहीं कह रहा हूं गरुड? पर गरुड इतनी चैन की नींद में था कि जैसे बिहार में राष्ट्रपति शासन लग ही गया हो।

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