मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

ऐसे क्यों हैं वो

राजीव मित्तल
इस समय राष्ट्रीय स्तर पर दो धारदार सुर्खियां साथ-साथ चमक रही हैं। एक में मरहूम जिन्ना ने एक पारिवारिक झगड़ा इस मोड़ पर ला दिया है कि बेटी- बहू नजर आ रही है, जिसे इस देश में पुरातन काल से वेश्या और कुलटा जैसे शब्दों से नवाजते रहने का चलन रहा है तो दूसरी सुर्खी इसलिये चमक मार रही है कि इस साल तीन-तीन राज्यों में राज्यपालों का आचरण विपक्ष की नजर में उस घरेलू गोरखा नौकर जैसा रहा, जो घर के बुजुर्गों या महिलाओं का गला रेत कीमती सामान लेकर चम्पत हो जाता है। सालों से केन्द्र की ताबेदारी कर रहे कारकुनों वाली भूमिका को लेकर ही एक सालाना जलसा भी आजकल में हुआ कि वे ऐसे क्यों बनते जा रहे हैं। 1950 से जबसे इस गरिमामय पद का अविष्कार हुआ है, शुरुआती सालों को छोड़ दें तो कुल मिला कर यह किसी रिटायर्ड व्यक्ति को सल्तनत की तरफ से एक शानदार भवन में पंाच साल तक आराम फरमाने की प्रदान की गयी सहूलियत है। संवैधानिक अर्थों में यह पद मुख्यमंμाी के कामकाज की निगरानी और गाहे-बगाहे सलाह वगैरह देने के लिये बनाया गया था ताकि जनता थोेड़ा और चैन से रह सके। और अगर मुख्यमंμाी अपनी ही चलाए तो उसकी शिकायत ऊपर पहुंचायी जाए। कभी सरोजनी नायडू और केएम मुंशी जैसी शख्सियतों ने इस पद को प्रतिष्ठा पहुंचायी थी, लेकिन बाद में इस पद की ऐसी की तैसी करने में लोकतंμा के नाम पर सारा सत्ता तंμा लग गया। बीसियों साल से राज्यपाल के हाथ-पांव केंद्र की चाभी से चल रहे हैं। केन्द्र को इस पद पर अपनी पूंजी से बनायी कोई शख्सियत नहीं बल्कि एक ऐसा व्यक्ति रास आता है जिसके पीछे स्वामिभक्ति की पूँछ लटक रही हो या जिसकी राजनैतिक विरासत पर अंकुश लगाने की जरूरत आन पड़ी हो, या जिसकी अफसरी सिर्फ जी हजूरी में कटी हो। वैसे तो जबसे नेतागिरी की आयु सीमा 80 को पार करने लगी है, कोई नेता खुद को इस पद पर बिठाया जाना पसंद नहीं करता, पर हालात के वश में हो वह मजबूरी में बैठ भी जाता है तो उसके बाद उसका आचरण सत्ताधारी नेता या विपक्षी नेता जैसा हो जाता है, जिसका काम सत्ता की कुर्सी के नीचे पटाखे दगाने का रह जाता है। तभी तो राष्ट्रपति कलाम को कहना पड़ता है-अब वक्त आ गया है कि राज्यपाल राज्य के प्रथम नागरिक बनना चाहते हैं या राजनैतिक नुमाइंदे। लेकिन अब यह सोचने की भी सख्त जरूरत आन पड़ी है कि ऐसी कई सारी पुरानी रवायतों को कब तक खींचा जाए, जो बास मार रही हैं।

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