राजीव मित्तल
यह एक तरह से अपमान है, गाली है, उनकी खुद्दारी को अंगूठा दिखाना है। जो नहीं करना चाहिये था वो कर डाला तुमने उनके साथ। याद नहीं, दो महीने पहले बाढ़ के समय पेड़ के तने पर टिकी महिला ने बच्चा जना था और उन्होंने उस बच्चे के सिर पे हाथ फेरते हुए सुयोग से एकाकार हुए नभ-जल-थल को साक्षी मानते हुए कसम खायी और खिलायी थी कि भूख से कोई नहीं मरेगा, चाहे भी तो मरने नहीं दिया जाएगा। उस मनहूस दिन जब तुम भूख से मरीं फूलकुमारी, तब तक न जाने कितने टप गए होंगे। कई पानी में डूब मरे, तो कई सांप के काटे मर गए। अब बाढ़ नहीं सुखाड़ है लेकिन उनका काटना जारी है, क्योंकि उनके बिलों में पानी जो घुस गया था। क्या करते बेचारे, तुम्हारी तरह आसमान, आसमान में कहीं छुपे बैठे उस परम पिता परमात्मा या फिर सरकार की ओर टकटकी लगाए तो बैठे नहीं रहते। कुछ किये ही जा रहे हैं तब से। खैर, असल मुद्दा यह है फूलकुमारी कि तुम्हारे मरने के बाद यह अफवाह क्यों फैली कि तुम भूख से मर गयीं? उनके वादे का, उनके हाथ उठा कर लिये गए प्रण का तुम्हें जरा भी ध्यान नहीं रहा कि बाढ़ चाहे जितनों को लील जाए, पर भूख से कोई नहीं मरेगा। सवाल यह है कि तुमने ऐसा कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ा कि तुम भूख से मरी नजर आओ। मरने से एक घंटा पहले या एक दिन पहले तुमने किस मंμाी से, किस नेता से या किस अफसर से कहा कि तुम भूखी हो? तुमने गांव में किसी के दरवाजे पर हाथ फैलाया? किसी मंदिर की चौखट पर नजर आयीं? पटना या दिल्ली कहीं भी प्रेस कांफ्रेंस कर भूखे होने की बात बतायी? किस चैनल में मरने से पहले या मरने के बाद खबर बनीं तुम? एक का भी नाम गिना दो तो सही दिशा में काम शुरू हो। गांव के चार लोगों ने बोल दिया कि तुम भूख से मरीं तो क्या इसे सच मान लिया जाएगा? पता चला कि तुम्हारे घर में एक छंटाक भी अनाज नहीं था। यह जानकारी तुम्हारे मरने के बाद ही क्यों? जीते जी बतलातीं तो शायद किसी ने जुम्बिश तो ले ली होती। तुमने वह मौका भी खो दिया। अब यह क्या ढोल पिटवा रही हो कि कई दिनों की भूखी एक गरीब बेऔलाद विधवा अपनी झोंपड़ी में मरी पायी गयी। गांव का मुखिया तक कह रहा है कि तुम्हें कई दिन से छींक आ रही थीं। बीडीओ ने भी इस बात की पुष्टि की कि तुम बीमार थीं। एसडीओ साहब का फोन आया कि खाने को इतना कुछ होते हुए भूख से मरना नामुमकिन है। विपक्ष के हाथों का खिलौनी बन रही है फूलकुमारी। अब आखिरी बात कि तुम्हारी झोंपड़ी में खूब तो चूहे, ऊपर से चींटियों की लम्बी कतार। और ये दोनों उसी जगह होते हैं जहां खाने को कुछ होता है।
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