मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

औंधे मुंह गिरा दूल्हों का शेयर मार्केट

राजीव मित्तल
पूस के महीने में बिहार में घर-घर ढोलक बजने और ‘चली आज गोरी पिया की नगरिया’ के बोल सुनायी दे रहे हैं। थोड़े ही दिन पहले की तो बात है, जब बाप परेशान हो लड़कों की तलाश में मारा-मारा घूम रहा था, मां उठते-बैठते लम्बी सांस खींच रही थी और बेटी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, बहन दिलासा दे रही थी और भाई फ्रस्ट्रेट हो ओंधा पड़ा हुआ था। लड़के वाले आते भी तो खोये की मिठाई गड़प और नमकीन पर हाथ साफ कर चार पहिये का फच्चर फंसा नौ-दो-ग्यारह हो जाते।
एक पार्टी लौट जाती तो दूसरी का, फिर तीसरी का इंतजार। इस इंतजार ने ही दो साल निकाल दिये थे। बिटिया अब सब पर भार बन चुकी थी। कहीं-कहीं तो उसे विभिन्न विश्लेषणों से सम्बोधित किया जाना शुरू भी हो गया था। लेकिन बलिहारी हो उस सवा लाख शिक्षक नियोजनिया की कारस्तानी की (वैसे सरकारी दस्तावेज में मामला ढाई लाख के करीब है) जिसमें बौर लगते ही वसंत फूट पड़ा। अपनी किस्मत को कोस रही लड़की का किसी पंचायत, किसी नगर या किसी जिले के स्कूल की शिक्षिका बनने का नियुक्ति पμा क्या आया कि पूरा घर लोटन कबूतर हो गया।
नियुक्ति पμा आते ही बेटी को पैदा करने के पाप से बोझिल चेहरों पर से जैसे केंचुली उतर गयी है, चेहरे स्निग्ध हो गये हैं और मुंह से दुलारी, बबुआ, सोनम जैसे कानों में रस घोल रहे सम्बोधन झर रहे हैं। मां-बाप को और शिक्षिका हो जाने वाली बिटिया को पता है कि अब वो दिन नजदीक आ गया है, जिसके इंतजार में न जाने कितने तीज और व्रत रखे गये। इधर लड़के वालों के यहां जिन कई लड़कियों के बायोडाटा मय फोटो के यहां-वहां टंगे हुए थे, उनमें निरन्तर कमी हो रही है। किसी-किसी के यहां तो अकाल सा ही पड़ गया है। यह वही लड़के वाले हैं, जो न जाने कितनी मिल्की व्हाइट, छरहरी, घर के कामकाज में दक्ष या संुदर, सांवली-सलौनी, कम्प्यूटर पर कमांड आदि खासियतों वाली लड़कियों को रिजेक्ट कर चुके थे।
लड़के के घरवालों के हाथों में एकबार फिर रेटलिस्ट और सामान का रजिस्टर है। कई सारे आइटम छोटे किये जा रहे हैं, कुछ की मिकदाद कम की जा रही है और कुछ आइटम सिरे से गायब किये जा रहे हैं। रेटलिस्ट का तो यह हाल है कि विशेष परिस्थतियों में 75 फीसदी तक का डिस्काउंट कर दिया गया है। उन सबके मन इस आशंका से घिरने शुरू हो गये हैं कि अगर पुराने रेट और चार पहियों पर अड़े रहे तो कहीं वंश बढ़ाने के ही लाले न पड़ जाएं। μोता युग के बाद लड़कियों के हाथ आयी इस बाजी के बारे में कई प्रकांड ज्योतिषियों का दावा है कि ऐसा राहू के सिर पर चंद्रमा और केतु की बगल में शनि के बैठ जाने से हुआ है।

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