सोमवार, 20 दिसंबर 2010

गर पेड़ की शाख पर बाप तो बेटा पास

राजीव मित्तल
गम निष्पादन बार के हॉल में बेसिक शिक्षा देवी की अब सिसकियां ही बची थीं। जब वो भी निकलनी बंद हो गयी तो हॅाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इल्वल ने फिर माइक संभाला-अब मैडम संता और मैडम बंता अपनी बात कहेंगी। आप और हम उन्हें माध्यमिक शिक्षा देवी और उच्च शिक्षा कुमारी के नाम से भलिभांति जानते हैं, आइये मैडम संता जी-बंता जी। आप दोनों अपनी आंखों में प्याज का रस टपका कर मंच पर आएं, तब तक मैं आपके रोने-धोने का और बढ़िया इंतजाम करता हूं। तभी वहां बैठा एक फटेहाल युवक छाती पीट-पीट कर रोने लगा।
उसके मुंह से चर्र-चर्र जैसा कुछ निकल रहा था। पता चला कि अपनी बात कहने को बेताब बैठे यह सज्जन कुमार चरवाहा वि. हैं। तभी इल्वल ने सिर दायें से बायें किया और कहा- नहीं, हमारे कार्यक्रम में आप बोलने लायक इसलिये नहीं हैं क्योंकि आपके हालात सुधारने की बात राष्ट्रीय रंगमंच पर एकाएक बड़ी तेजी से उभरी है। यहां तक कि स्वीडन और नार्वे तक ने चरवाहे तलाशने शुरू कर दिये हैं। हां, अगर अगले दो महीने में भी आपकी फटेहाली दूर नहीं हुई तो आपको इस मंच से बोलने का मौका दिया जा सकता है। अब बहनजियां शुरू हों।
आवाज लगते ही सुश्री संता ने पास की दीवार पे सिर दे मारा, तो सुश्री बंता अपना माथे कूटने लगीं। कलपना तो मस्ट था ही। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने तो मुझे चौराहे पर नीलाम कर दिया-संता ने स्वर लगाया। मेरे परीक्षार्थी पहले पुर्चियों से नकल कर पान के साथ चबा जाया करते थे। यह देख मुझे भी मजा आता था, पर अब तो बाप परीक्षा भवन की खिड़की से लगे पेड़ पर चढ़ा होता है तो मां उसके कंधों पर खड़ी हो बेटे को पर्चा हल की हुई कॉपी थमा रही होती है। मेरे तो करम फूट गये। अब तो बात उससे भी आगे बढ़ गयी है। आदेश निकाल दिया गया है कि छाμा जिस विद्यालय में पढ़ते हैं, उसी में वे देंगे बोर्ड के इम्तिहान। यानी मां-बाप को पेड़ पर चढ़ने की भी जरूरत नहीं रह गयी। अपना स्कूल, अपना टीचर, ठेंगा मेरे बाप का।
पर्चे अपने आप हल हो रहे हैं और लफंगा मार्का विद्यालयों का रिजल्ट सौ बटा सौ प्रतिशत। कोर्स की किताबों का यह हाल है कि एक साल पढ़ाया जाता है कि महमूद गजनवी ने सोमनाथ का मंदिर तोड़ा तो अगले साल कोर्स में होता है कि नहीं, मंदिर फफूंद लग जाने से गिरा, जिसे दोबारा बनवाने के लिये बेचारे गजनवी ने सिर पर पत्थर ढोये। संता जी का विलाप नयी दिशाओं की ओर फैलता कि सुश्री बंता अपने बाल खोल जोरों से हिलने लगीं। चिल्लाती भी जा रहीं-सारे फसाद की जड़ तो तू ही है संतो, तेरी वजह से ही देश के नौनिहालों को आगे पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा। जब तेरे यहां से पास होने वालों का रेवड़ का रेवड़ हो तो मेरी कुठरिया तो वैसे ही 10 गुणा 10 की है, क्या टांड़ पे बिठाऊंगी उन्हें। ऊपर से डाक्टर-इंजीनियरों के लफड़े अलग। आये दिन मेरे मुंह पर कालिख पुतवाते हैं उनके कालेजों के नासपीटे मालिक। अचानक सामने बैठे एक बुड्ढे को मुंह छुपाते देख दोनों के मुंह से निकला-यही है सारे कष्टों की जड़। यह अगर आपे में रहता तो बीसियों साल से चल रहे हम दो हमारे दो अभियानों का दिवाला न निकला होता।
खरबों रुपये डकार गया कम्बख्त, पर अब भी वही- एक के दस। दोनों उसकी तरफ लपकीं, उस पर हाथ पड़ते तब तक चप्पलें वहीं छोड़ परिवार नियोजन भागा और बाहर जाकर चिल्लाने लगा- मैं तो कब से गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहा हूं-हम दो-एक हमारी प्यारी सी मुनिया है, यही हमारी बस छोटी सी दुनिया है---। पर जब इसके रीमिक्स में सोनम कबीर थिरकेगी तो उसको सुन पैदा होने वालों का टेंटुआ क्या मैं दबाऊंगा? और अब मुनिया भी कहां रही, उसका गला तो उसके ही मइया-बप्पा ही टीप देते हैं।

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