सोमवार, 20 दिसंबर 2010

इन बलियों को एक बार तो परखें

राजीव मित्तल
देश की संसद में कुछ साल पहले 40 थे अब सौ हो गए। हर दल के कंधे पे लटके अंगोछे से दो-चार तो टपक ही पड़ेंगे, ऐसी निगेटिव खबरें पढ़ इल्वल और वातापि बहुत गमगीन हैं। उनके मन में यह आकांक्षा अब जोर पकड़ रही है कि बाहुबलियों का सकारात्मक पक्ष जनता के सामने आए। जब मिस मित्तल की शादी पर दोनों रक्ष भइये पेरिस में थे, तो जनवासे में फेशन डिजायनरोें में हो रही बातचीत से पता चला कि किसी जमाने में पेरिस का वही हाल था, जो आज यहां के कई शहरों का है। सारा पेरिस रंगदारों के हवाले था। जनता बेहाल। शासन-प्रशासन चिंता में मग्न। तो सत्ता में बैठे किसी ज्ञानी ने जहर को जहर से मारने की तरकीब निकाली और शहर का शेरिफ एक उचक्के को बना दिया। महीने भर में हालात बदल गए और रंगदारों की हवा संट हो गयी। ऐसा ही कुछ रक्ष भाइयों के दिमाग में भी चल रहा है। जब संसद और विधानसभा में पहुंचा जा सकता है तो थोड़ा और आगे क्यों नहीं बढ़ा जा सकता।
खैर, लोकसभा के चुनाव तो काफी दूर हैं, अब तो एकाध जगह विधानसभा चुनाव ही होने हैं तो क्यों न मुख्यमंμाी पद किसी बली को नवाज दिया जाए। कानून-व्यवस्था की सारी समस्या चुटकियों में दूर हो जाएगी। आधी रात को गली-मोहल्लों तो क्या वन-प्रांतर तक से आल्हा गूंजेगा। फैशन परेड चौपालों पर हुआ करेगी। वही भाजपा, जो लालू और उनके कई सांसदों के पीछे हाथ धो के पड़ी है, नागपुर में वर्कशाप आयोजित कर अपने सांसदों को विभिन्न प्रकार के बली बनाने और थानों में उनकी फोटो लटकाने की जुगत भिड़ाया करेगी। अब देखो न, दुनिया भर के विज्ञानी शोध पे शोध किये जा रहे हैं कि सांप का विष कमजोर दिल वालों के लिये बड़ा उपयोगी है या चूहे की खाल से अगर कैंसर कोशिकाएं निकाल दी जाएं तो मानव जाति का आदि और अंत दोनों का भला हो जाए।
मेंढकों ने तो अपना जीवन जन कल्याण के लिये न्योछावर कर दिया है। अगर बलियों की भी एकाध कोशिका से छेड़छाड़ कर ली जाए तो ढेरों क्लोन तैयार किये जा सकते हैं। तब हमारा देश अगले चुनाव तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। इलु, मेरी एक सलाह और है कि हमारे जितने जनप्रतिनिधि बली से ताल्लुक रखते हैं, वे अब तक लिये गए सारे भत्ते और वेतन सरकार को लौटा दें और आगे से कानी कौड़ी न छुएं। बल्कि हर कोई अपने-अपने जिम्मे पांच-पांच सासंद कर ले और उनका पालन-पोषण करे तो संसद ठप होनी हमेशा के लिये बंद हो जाएगी और जनता की गाढ़ी कमाई अच्छे कामों में खर्च होगी। दूसरे, हाल में हमारे एक जनप्रतिनिधि ने डकैतों का मुकाबला करने के लिये अपनी निजी सेना तैयार की है, तो ये बली सांसद क्या कर रहे हैं, सीमा पर अपनी सेनाएं क्यों नहीं तैनात करते, जैसे मौके-बेमौके मराठे सरदार किया करते थे। बहरहाल, अगर हमारे कुछ राजनैतिक दलों के स्वंयभू सुप्रीमो मान जाएं और अभी से सम्भावित सत्ता की पगड़ी अपने हाथों से किसी बली के सिर पे रख दें तो हमारे देश को फिर से सोने की चिड़िया बनते देर नहीं लगेगी।

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