राजीव मित्तल
दरभंगा। शाम साढे¸ छह बजे टीवी पर एक चैनल शहर के अंदर पब्लिक को इकट्ठा कर एक-दूसरे के सामने ताल ठोक रहे दो दलों के नेताओं को आपस में भिड़ाने की परम्परागत फिराक में है। एक नेता हैं वर्तमान के केंद्रीय मंμाी तो दूसरे भूतकाल के। दोनों नेता मिथिलांचल में किये अपने जनहित कार्यो को बखानने में एक दूसरे को उसी तरह मात देने में लगे हैं जैसे सर्कस में आंखों पर पट्टी बांध कर चाकू निशाने पर फेंके जाने की प्रतियोगिता चल रही हो। कुछ ही देर में यह प्रतियोगिता एक फूहड़ प्रदर्शन बन कर रह गयी, दर्शकों की अदालत मारपीट का अखाड़ा बन गयी और देर तक चीखने-चिल्लाने के बाद वे दोनों नेता मिथिलांचल की धरती को जन्नत बनाने के अभियान पर एक बार फिर निकल पड़े। यह तमाशा देखने के बाद, जो दिन भर भटकते हुए देखा तो स्पष्ट हो गया कि मिथिलांचल के दिन बहुरने की कोई आस फिलहाल तो नहीं ही है।कमला नदी, जो इन दिनों नाला बनी हुई है, उसके साथ लगे गांव, वहां तक पहुंचने के रास्ते अब भी बाढ़ से हुई तबाही की दास्तां कह रहे हैं। इस समय नाला बनी यही कमला रानी विभिषिका बन इन गांवों में घुसी थी। और प्रशासन उसी तबाही पर हाथ पे हाथ धरे बैठा है कि 10-11 महीने के लिये पैसा फूंकने से क्या फायदा, बाढ़ तो फिर आनी है। और शासन-प्रशासन की इस मानसिकता को खाद पानी दे रहे हैं इस तरफ के यादव बहुल गांव। यादवों ने अपना लोक-परलोक सब कुछ लालू प्रसाद के हवाले कर दिया है। कबड़िया गांव के सुहाग यादव हों या शिक्षक तनुकलाल यादव, लालू उनके लिये सब कुछ हैं। उनके लिये ही नहीं उनसे बातचीत करते समय जो महिलाएं घास के पूले लेकर जा रही थीं, या घास काट रही थीं उन्होंने भी अपना काम-धाम रोक बस एक ही बात कही कि गांव का सारा वोट राजद को ही गिरेगा। बदहाली उनके लिये जैसे आत्म सम्मान बन गयी है। 15 को मतदान के दिन ड्यूटी पर जाने की तैयारी कर रहे तनुकलाल तो तुनक कर कहते हैं-बताइये क्या नहीं है? पंद्रह साल में लालू ने हमें सड़क दी, फोन दिया, बिजली दी, टीवी देखने के लिये केबिल दिया, और हमें क्या चाहिये। कैसा विकास? भरतलाल यादव पूछते हैं। लालू को काम ही कहां करने दिया गया, हमेशा एक पैर जेल में, गद्दी पर भी नहीं रहने दिया। यही सब कहना है गौंसाघाट के ग्रामीणों का भी। इसी मानसिकता के चलते यादव समुदाय का एकमुश्त वोट लालू के नाम। लेकिन इन्हीं गांवों में दलित सिर पर लोजपा की टोपी पहन कर खुले आम घूम रहे हैं, जाहिर है कि लालू के हाथ से इस समुदाय का वोट एकमुश्त तो नहीं पर काफी कुछ खिसक सकता है। इन गांवों में कुछ वोट कुम्हार और दास जाति के भी हैं लेकिन वे यादवों की दबंगई के आगे खामोश हैं। कई चुनावों से उनका वोट नहीं गिर रहा है। कुल मिला कर मिथिलांचल में आज यादव वही कर रहे हैं, जो कभी ब्राहमण समाज किया करता था कि पूरे गांव के वोट का अधिकार अपनी जेब में रखना। लेकिन इस बार का सबसे महत्वपूर्ण वोटर मुसलिम समुदाय भ्रमित दिख रहा है। लवाम, खड़वा और इस्लामपुर में बातचीत करने से यही अहसास हुआ कि भले ही सामने वाला वोट राजद को देने की बात कर रहा है, लेकिन उसके दिमाग में कोई और नाम भी घूम रहा है। यह स्पष्ट होता है शहर की मसजिद से जुमे की नमाज पढ़ कर बाहर निकलते लोगों से बातचीत करने के बाद। जो काफी सोच कर जवाब देते है- देखिये अभी कोई फैसला नहीं किया है, एक दो दिन में हो जाएगा। इस बार हमारे बीच राम विलास पासवान का नाम भी उठ रहा है। लेकिन ब्राहमण वोटर को तिनके का भी सहारा नहीं है। जबसे कांग्रेस का इस क्षेμा से सफाया हुआ है, वह अपने को लुटा-पिटा पा रहा है। इस बार उसकी निगाह मुसलमान वोट बैंक पर है कि अगर उसका झुकाव लोजपा की तरफ हो जाए तोराजद कमजोर पड़ जाएगा और राजग की पौबारह हो जाएगी। गोविंदपुर गांव की एक झोंपड़ी में कई सारे लोग बैठे हैं, वे सब और बाहर पान बीड़ी बेच रहा दुकानदार बहुत हिचकते हुए जुबान खोलते हैं कि राजग उम्मीदवार को वोट डालने की सोचे हैं। सब झा और चौधरी निकले। शाम को शहर के एक चौराहे पर कुछ स्थानीय पμाकारों से चर्चा होती है तो उनका यही कहना है कि दरभंगा मंडल की 30 में से 21 सीटें 2000 के चुनाव में राजद के हाथ लगी थीं, इस बार अगर मुसलमान और पासवान वोटर का रुझान कमोबेश लालू की तरफ ही रहा तो वही स्थिति रहेगी। दो-चार सीटों का फर्क कोई मायने नहीं रखता। सबसे बड़ी बात है कि बस, मिथिलांचल इसी तरह विकास को भूला रहे।
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