सोमवार, 20 दिसंबर 2010

कब्र से बाहर आ जाओ शेरशाह जी

राजीव मित्तल
थानेदार ने उस दिन अपने अफसरों के सामने ही जिस तरह वापाति को चूना लगाया उस सदमे से वह अभी तक नहीं उबर पाया है और कई बार हिचकियां लेते हुए दंडकारण्य के वो दिन याद कर चुका है, जब मानव जाति के बड़े-बड़े सूरमा उसके नाम से थर्राते थे। खैर, इल्वल खाली हाथ लौटाया है, परिवार नियोजन उसे कहीं नहीं दिखा। पता चला कि किसी स्वास्थ्य केंद्र में डाक्टर ने उसे दबोच रखा है। अब आगे का हाल। गम निष्पादन बार का हॉल आज ठसाठस भरा है क्योंकि विलाप के क्रम में आज रोने-रुलाने का जबरदस्त प्रोग्राम है।
हॉल भर में लाल मिर्च की बुकनी का धुआं फैला हुआ है क्योंकि गोष्ठी का मुख्य आकर्षण सड़क देवी की शर्त है कि उनके साथ श्रोता भी टसुवे बहाएं और कोई भी उनके चेहरे और शरीर को देख कर नाक-भौं न सिकोड़े। वापाति दो-तीन बार हैलो-वन-टू-थ्री का जाप कर माइक टेस्ट कर चुका है। शेरशाह सूरी और हेनरी फोर्ड की प्रतिमाओं पर गेंदे के फूलों का हार चढ़ा मैडम अपनी बात कहने को तैयार खड़ी हैं। पीछे से गाने की आवाज आ रही है- हाय रे वो दिन क्यों न आये।
पहली पंक्ति ही सुन फटेहाल सड़क देवी अपने को रोक न पायीं और फफक पड़ीं। किसी तरह उनके बोल फूटे- शेरू तुम कहां हो, आ के देखो तुम्हारी सपनों की रानी जीटी रोड का आज क्या हाल हुआ पड़ा है। फोर्ड जी क्या आप इस देश में मेरा यह हाल देख अपनी कार गधों से न खिंचवाते! आपने तो अपनी कार के चक्कों को रपटाने के लिये अमेरिका में 103 साल पहले राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट के सामने शर्त रख दी थी कि पहले एक्सप्रेस हाईवे बनवाओ फिर मेरी कार कारखाने से बाहर निकलेगी, जो आनन-फानन में बन भी गयी, मैं किसके पास जाकर स्यापा करूं।
सोचा था कि लालू जी बैकवर्ड क्लास को आगे बढ़ाने में लगे हैं तो मेरा भी कल्याण हो जाएगा, पर उनके ठेकेदारों ने तो मेरा चेहरा, मेरा शरीर बगैर चेचक हुए ही गड़्ढों से भर दिया। उनके राज्य में नेशनल हाईवे पगड़ंडी बन कर रह गये हैं। शेरू, अब तो तुम्हारा घोड़ा भी जीटी रोड पर आगे बढ़ने से पहले सौ बार हिनहिनाएगा। जिस रोहतास से तुम अपनी सेना के साथ घोडे¸ पर सीना तान कर दिल्ली की ओर बढ़े थे, अगर आज होते तो मेरी बदहाली देख राजधानी एक्सप्रेस के बदबू मार रहे एसी कोच में ठुंसे होते और तुम्हारे पट्ठे ट्रेन की छत पर लदे-फंदे होते। पांच सौ साल पहले तुम अपने घोड़े जिन पगडंडियों, नदी-नालों, गड्ढे-खाई को चुटकियों में फांद लेते थे, आज वहां बनी सड़कों पर जाम में ही फंस कर रह जाओगे क्योंकि आगे कहीं कोई ट्रक उल्टा पड़ा होगा। तुम्हारे समय में आज की सी सड़कें होतीं तो तुम जिंदगी भर शेरखां ही बन सासाराम में भोजपुरी सैनिकों की दलाली कर रहे होते। आज तुम्हारी जीटी रोड पर ट्रक अपने आप नहीं चलते, जोर लगादे हंइसा का आह्वान कर खींचे जाते हैं।
बस तुम किसी तरह कब्र खोद के बाहर आ जाओ और हुमायूं को अपना दुश्मन मानना बंद कर इन ठेकेदारों की गर्दनें उड़ाओ, जिन्होंने मेरा यह हाल कर दिया है। यह करुण गाथा सुन हॅाल में सबकी नाक पिनपिनाने लगी और अब कैसेट से आवाज आ रही थी-आ जाओ तरसते हैं अरमां--।

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