राजीव मित्तल
कल्याणकारी राज्य की यही खासियत है कि वह बड़ी से बड़ी विपदा को हंसते-खेलते झेलने की प्रेरणा जगाता है। वह उम्मीद करता है कि कष्ट में पड़ी उसकी दुलारी जनता सारे दुख-दर्दों का सामना होंठ भींच कर करे बाकी राम भली करेगा। यही तो वक्त है अपने नेताओं की कारगुजारियों में विश्वास बनाए रखने का कि मारेंगे भी तो छांव में ही। सब तरफ से आवाज उठ रही है कोई भूख से न मरने पाए, अगर एक भी बगैर खाए उठ गया तो नाप दिये जाओगे। ये पत्तलों के गट्ठर, अनाज की बोरियां, शाक-भाजी के ढेर और फिर चलते समय चार-चार लड्डू सब बेकार जाएंगे क्या। इसलिये बाढ़ पीड़ित जनों थोड़ा सा इंतजार कर लो, बस आने ही वाला है। अब अगर सीताराम मंडल सांप के काटे से मर गया तो ऐसी मौतें तो हादसा होती हैं, इन्हें जुबान पे क्या लाना। शिवमूरत कामत की 12 साल की और अर्जुन कामत की तीन साल की बेटी डूब मरी तो इसमें प्रशासन का कोई दोष नहीं। जब बाढ़ से घिरे हो तो कोई न कोई लहर तो डुबोने को उछलेगी ही। अग्नि, जल और वायु-ये तीनों प्रकृति के कंट्रोल में हैं, इनमें इंसान का क्या दखल! शास्μा भी यही कहते हैं। लेकिन हम फिर कह रहे हैं कि भूख से कोई मरने नहीं पाएगा। चाहे जिसकी सौगंध ले लो।
ठीक है न! सर, मीटिंग का टाइम हो गया है। सब आ गये? उनको छोड़ सब आ गये। अरे, अगर वह आ भी जाते तो कौन सा हल जोत देते, चलो। मीटिंग खत्म होते-होते राजमार्गो पर दो-दो इंच पानी और बढ़ गया था। सांप के काटे से पांच और डूब कर मरने वालों में दस का इजाफा हो गया। पर संतोष की बात तो यह है कि कोई भूख से नहीं मरा। लेकिन साहब जी, अगर नावों का इंतजाम रहता तो परमेश्वर सहनी तो जरूर बच जाता। रहोगे चुगद ही, जीवन-मरण सब ऊपर वाले के हाथ में, हम कौन होते हैं बचाने वाले। तुम बात कर रहे हो नावों की तो देखो जाकर दरभंगा में। वहां एक-एक नाविक हजारों कमा रहा है। सब पे इनकम टैक्स ठुकवाना है।
आज की मीटिंग में तय हुआ है कि एक कमिटी बना कर राहत के लिये भेजे जा रहे सामान की निगरानी की जाएगी। उसमे ये भी होंगे, वो भी होंगे. हम सब होंगे। इस कमिटी के बन जाने के बाद राहत और बचाव कार्यों में चुस्ती आ जाएगी। प्रशासनिक अधिकारियों से जो छीन-झपट चल रही है उसको रोकना बहुत जरूरी है। एक मंμाी जी तो कई बार पिटते-पिटते बचे हैं। अबकी 15 अगस्त पर याद दिलाना-हम लोगों से अपील करेंगे कि वे भारतीय संस्कृति को कलंकित करने वाला कोई काम न करें।
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