राजीव मित्तल
बोंब, महाभारत में महिलाओं की क्या स्थिति थी समाज में, राजनीति में? राजनीति नहीं नीति और उसमें महिलाओं ने जम कर पुरुष समाज का मोर्चा लिया। पुरुषों की सतायी महिलाएं अपना बदला लेने से कतई नहीं चूकती थीं। हरकती देवराज इंद्र को तो कई बार जुतियाया गया। महाराज शान्तनु को मल्लाह की बेटी सत्यवती भा गयी पर, उसे रखैल बन कर रहना मंजूर नहीं था। साफ कह दिया कि खाली-पीली की आशिकी से काम नहीं चलेगा। शरीर चाहते हो तो सात फेरे लो और सारा राजपाट मेरी कोख से जन्मने वाले को सौंपने का वचन दो। कामवासना के हाथों बेबस शान्तनु ऐसी कोई पॉवर ऑफ अटॉर्नी देने से बचना चाहते थे, जिससे राजपाट एक मल्लाह की बेटी के हत्थे लग जाये। सोचते थे कि कुछ दिन मौज-मस्ती करेंगे और फिर किसी दूसरे शिकार की तालाश करेंगे। पर अब तो सामने से परोसी हुई थाली ही खिसकी जा रही थी। देवदास बन शुरू हो गए रेंकने-मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज न दो-बेटे भीष्म ने यह दर्दीला सुर सुना तो समझ गया कि बुड्ढे की आंख लड़ गयी है कहीं। बाप की दास्तां सुन निबाह दिया बेटे का धर्म कि वह राजपाट नहीं संभालेगा और आगे चल कर औलाद बखेड़ा करेगी इसलिये कभी विवाह नहीं करेगा। और यहीं पड़ी कुरु वंश के विनाश की नींव। अच्छा छोड़ो, अब म्हिला अधिकारों पर एक वाकया और सुनो। कर्ण की धनुर्विद्या की शक्ति को सारी दुनिया जानती थी, द्रोपदी भी जानती थी, पर दुर्योधन की मिμाता के चलते उसे चाहती नहीं थी, स्वंयवर में साफ ऐलान कर दिया कि सूतपुμा के गले में माला नहीं डालूंगी। अजुर्न और कृष्ण की बहन सुभद्रा एक दूसरे को चाहते थे। तो कृष्ण ने ही अर्जुन को मौका दिया सुभद्रा को भगा ले जाने का क्योंकि बहना की पसंद दुर्योधन नहीं था। खुद कृष्ण ने रुक्मणि के चाहने पर उसका अपहरण किया। हिडिम्ब राक्षस मेरे दादा भीम को मार कर पेटपूजा करने पर तुला था, पर उसकी बहन हिडिम्बा दादा जी पर ऐसी रीझी कि जान पर खेल कर वरमाला उनके गले में डाल दी। सारे पांडवों की मां कुंती ही थी पर पांडु उनमें से एक के भी जन्मदाता नहीं थे। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जबकि सही मुद्दे पर नारी जात अड़ जाती थी और अपनी बात मनवा के रहती थी। उस समय अगर नारी भोग्या थी तो शक्ति भी थी। पुरुष प्रधान समाज में भी दबंगता से और बराबरी से रहती थी। आज का दोगलापन नहीं था कि गाय और गंगा से लेकर न जाने कौन-कौन सी देवियों की पूजा, पर असलियत में गाय जितनी ही असुरक्षित पूरी नारी जात और गंगा जितनी उसकी दुर्गत। लड़की जन्म न ले ले इसलिये गर्भ में ही टेंटुआ दबाने की तैयारी। कहीं-कहीं तो पैदा होने के बाद पटक-पटक कर आज भी मारा जाता है। दिल और दिमाग में इत कदर क्रूरता और जपेंगे सीताराम-राधेश्याम। मैं जान रहा हूं-अब तुम पूछोगी कि संसद में महिलाओं का आरक्षण क्यों लटका पड़ा है। देखो चैनली, यहां का पुरुष औरत का सहारा लेकर अपनी महत्वाकांक्षाएं तो पूरी कर लेगा, पर अगर नारी जात अपने मन से कुछ करना चाहे तो उसे करवाचौथ की कसम, बेटे की कसम, समाज की दुहाई दे कर बंाध देगा। यहां की राजनीति में भी नारी का वही इस्तेमाल ही होरहा है। औरत जो अपने साथ सात जन्म का बंधन लिखा कर ऊपर से आयी है, उसका कर्ज उसे चुकाना ही है। सो, अगर वह राजनीति में है तो इसलिये क्योंकि पतिदेवता ऐसा चाहते हैं अपने फायदे के लिये, अपने धंधे को फैलाने के लिये, समाज में रुतबा बढ़ाने के लिये। तो महिलाओं का संसद में आरक्षण भूल जाओ। और यह भी भूल जाओ कि शादी के बाद तुम इसी तरह नीले आसमां पर तैरते दूधिया बादलों की तरह फुदकती फिरोगी।