राजीव मित्तल
बॉब, सत्ता देवी को ब्याहने चली वो बारात कहां गयी, जिसकी घुड़चढ़ी 22 अप्रैल को हुई थी और 26 को द्वारचार, फेरों का क्या हुआ? जनवासे में तो शहनाई भी नहीं बज रही। वो देखो चैनली, वहां वो सब एक-एक कोना पकड़े हैं। वाह क्या बात है, चिंतन करते हुए ये सब कितने गम्भीर दिखते हैं न बॉब -पर ये देश या देशवासियों की चिन्ता में लीन नहीं हैं, ये सब तो शतरंज खेल रहे हैं। पर, इनके चेहरे गोभी के बासी फूल की तरह मुरझाये हुए क्यों हैं? अरे घुड़चढ़ी से पहले ही लोटे भर-भर पिया फीलगुड अपच कर गया, इसलिये देख नहीं रही हो चैनली कि हर किसी का दूसरे के पेट पर फेरता हाथ है। पर, बॉब फेरों से पहले की वो ठिठोली भी तो कहीं नजर नहीं आ रही।चैनली, एक तो अपची माहौल ऊपर से इस बार सात फेरे कराने वाले पंडत ने फच्चर डाल दिया है। वो क्यों? इसलिये कि एक ही साइत में कई सारे दूल्हे यहां मजमा लगा बैठे हैं। वो देखो न यहां-वहां कई मोरपंखी नजर आयेंगे तुम्हें। यह तो तुम्हारे द्वापर के समय का स्वंयवर वाला सीन लग रहा है बॅाब। चौपड़ा की महाभारत में देखा था कि द्रोपदी को ब्याहने कैसे-कैसे झाऊमल पहुंचे थे। अब आगे क्या होगा यह तो बताओ। अरे, मैं क्या बताऊं, मंμा पढ़ने वाले पंडत ने कुछ समझाया है कन्या और इन वरों के पक्षों वालों को तभी तो शतरंज की बिसात तो बिछी हुई है। ऐसा कैसे हो गया बॉब? बारात तो एक ही दूल्हे को लेकर चली थी न? असल में घुड़चढ़ी के वक्त लड़की का भाई वहां मौजूद था, उसे दूल्हे की चाल पर थोड़ा शक हुआ। शक तब और गहरा गया जब दूल्हा घोड़े से उतर कर वरमाल के लिये जनवासे की तरफ बड़ा। उसकी एक टांग लचक मार रही थी। वरमाला लिये खड़ी लड़की को तुरंत वापस अंदर किया गया और एक आर्थियोपेडिक को बुलवा लिया। उसने दूल्हे से कहा, जाओ, दौड़ कर लाल बत्ती छू कर आओ, चाल देखते ही उसने कह दिया कि एक टांग छोटी है। तो ये और दूल्हे कहां से आ टपके? चैनली, दुल्हन का बाप नगरनिगम का बड़ा ठेकेदार है और लड़की खूबसूरत है और ये सब भी ठेकेदारी करते हैं सड़क को खड़ंजे में बदलने की, खेतों को बंजर बनाने की, उद्योगों को ईंट का भट्ठा बनाने की, स्कूलों को बिजली का दफ्तर बनाने की, अस्पतालों को रेलवे प्लेटफार्म बनाने की। तो लड़की का बाप इनमें से किसी गबरू को पसंद क्यों नहीं कर लेता? इसके लिये पंडत ने चंद्रग्रहण के अगले दिन सभी दूल्हों के लिये ऊंची कूद और दस तारीख को लम्बी छलांग रखी है। उसके बाद सबको इमला बोल कर लिखायाजायेगा, उसके बाद ही कुछ बजेगा यहां। तो चैनली, बात घुड़चढ़ी, फीलगुड का अपच, दूल्हे की लचक, झाऊमलों के धरने से होते हुए चंद्रग्रहण तक आ पहुंची है, तब तक दुल्हन क्या करेगी? बॉब, वो तो अपने में मस्त है, देखो अपनी पालतू बिल्ली से कैसे खेल रही है। चैनली, तुम्हें एक राज की बात बताऊं, इनमें से कइयों की वह ब्याहता रह चुकी है और इन सभी को गेट तक खदेड़ चुकी है। तो ये नदीदे फिर उसी के दर पर पहुंच गये बॅाब!