मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

बल्ले-बल्ले, अपना बुधिया चंगा हो गया

राजीव मित्तल
कई साल पहले रूसी बंदरगाहों पर बड़े-बड़े जहाज जब आ कर ठहरते थे, तो धुआं छोड़ने वाली चिमनियां कालस से जाम हो जाया करती थीं। जहाज के कप्तान का पहला काम होता था, उन चिमनियों की सफाई कराना। इस काम को कराया जाता था छोटे-छोटे बच्चों से क्योंकि वे आसानी से थोड़े पैसों के लालच में चिमनियों में घुस जाते और अंदर ही अंदर रेंग कर धुएं की कालस साफ कर दिया करते। चिमनी साफ करने जा रहे ऐसे ही एक बच्चे को जहाज के फ्रांसीसी इंजीनियर ने किसी बात पर खुश हो कर बड़े प्यार से चांदी का एक सिक्का दिया। बच्चा चिमनी में घुस गया। यहां-वहां की सफाई करते-करते किसी मोड़ पर वह बच्चा फंस गया।
इधर, कप्तान का सौदा एकाएक पट गया। अब उसे जहाज तुरंत लेकर निकल पड़ना था। पर सफाई करने घुसा लड़का बाहर ही नहीं निकल पा रहा था। उसके रोने की आवाज जरूर आ रही थी। निकाल पाने का कोई उपाय नहीं था। फ्रांसीसी इंजीनियर सबसे ज्यादा परेशान। उसकी मर्जी के बगैर जहाज बंदरगाह छोड़ नहीं सकता था। कप्तान ने एक और लड़के के मुंह पर कालख पोत इंजीनियर के सामने खड़ा कर दिया कि देखिये लड़का बाहर आ गया। जहाज की भट्टियां तुरंत सुलगा दी गयीं और वह रवाना हो गया। कुछ दिनों बाद वही जहाज लौट कर उसी बंदरगाह पर आया। उसकी चिमनियों की सफाई की जाने लगी।
फ्रांसीसी इंजीनियर वहीं खड़ा था। अचानक एक चिमनी से चांदी का टुकड़ा गिरा। इंजीनियर ने उसे उठा कर देखा तो उसके रोंगटे खड़े हो गये। वह समझ गया कि उसने जिस लड़के को चांदी का सिक्का दिया था, वह अंदर ही भुन गया है। इस बकवास का सार यह है कि तब रूस में अत्याचारी जारशाही थी और बुधिया के देश में लोकतंμा है। कल्याणकारी शासन के मुखौटे वाला। अज्जी तो क्या हुआ। साढ़े चार साल के बुधिया ने सत्तर किलोमीटर की दौड़ लगा दी और जान से भी नहीं गया तो फिर चिल्लपों क्यों! ओ बल्ले-बल्ले! ओ हल्ले मचाना छड्डो बादशाहो! लिम्का रिकार्ड बुक में आ गया जी।
ओ हमारे हनुमान जी तो दो सौ मील की छलांग मार कर लंका गये थे और उतनी ही लम्बी छलांग मार कर वापस आये थे। लेकिन! लेकिन क्या? हनुमान जी भक्ति के वशी भूत हो कर छलांग लगाये थे। और फिर वे तो भगवान थे। बुधिया आठ सौ रुपये में बिक कर दौड़ा, सुबह चार बजे केवल दो कौर सत्तू के खा कर दौड़ा। सत्तर किलोमीटर की दौड़ में न जाने कितनी बार उसे अपने अम्मा-बप्पा याद आये होंगे। वह उस गदहे की माफिक दौड़ा, जिसकी आंख पर गाजर-मूली लटका दी गयी हो। दौड़ते-दौड़ते उसकी सांस टूटने लगी थी। और फिर वह गिर ही पड़ा। पानी तक ठीक से नहीं कह पा रहा रहा था।

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