रविवार, 26 दिसंबर 2010
रूपा के दो हजार पांच सौ पचपन दिन और रात
देवघर के प्लेटफार्म पर भटक रही रूपा को जब रेलवे पुलिस ने पकड़ा था तब उसकी उमर आठ साल थी, जब रिहा हुई वो पंद्रह की हो चुकी थी, आज पांच साल छः महीने बाद उसकी फिर याद आयी तो आप सबसे शेयर करने का मन हुआ.............आज रूपा साढ़े बीस साल की होगी .................
राजीव मित्तल
दो हजार पांच की बरसात में प्रभात खबर में चार लाइन की खबर। पहले पेज के लायक तो कतई नहीं। और ऐसी खबर कि किसी टीवी चैनल ने झांका भी नहीं होगा कि असम की रूपा, छोटी सी लड़की, सात साल तक जेल में इसलिए सड़ती रही क्योंकि उसके पास प्लेटफार्म टिकट नहीं था।
उस देश में, जहां बिना अपराध के ही लाखों व्यक्ति जेल की कोठरियों में सालों से सड़ रहे हों, वहां रूपा का अपराध तो किसी की भी नजर में खटकने वाला होता ही, सो मजिस्ट्रेट ने नियमावली देख नौ दिन की सजा सुना दी। लेकिन न जाने किसकी गफलत के चलते उसे नारी निकेतन नाम की सडांध में काटनी पड़ गयीं 2555 रातें और झेलने पड़े 2555 दिन। ( इनमें लीप इयर यानि फरवरी का उनतीसवां दिन शामिल नहीं...हिसाब लगाया तो दो दिन और )।
सात साल बाद हाईकोर्ट के एक जज ने पता नहीं किस तुफैल में जब उस नारी निकेतन का दौरा किया तब जाकर रूपा को छुटकारा मिला, नहीं तो पता नहीं और न जाने कितने दिन और इस देश के कैदखाने में काट कर रूपा मर-खप जाती।
चूंकि यह वाक्या ऐसा था ही नहीं कि इसे ...शहाबुद्दीन को कब होगी जेल ... नामक अरसे से चल रहे ‘धारावाहिक’ के आसपास भी टांका जा सकता, इसलिए उसके सात साल या 2555 दिन-रात का हिसाब कौन देगा-यह सवाल उठाना बिल्कुल बेमानी है। लेकिन हां, रूपा की सात साला कैद की चुनिया सी खबर ने लगभग रोजाना लीड बन रहे शहाबुद्दीन प्रकरण को एक घटिया प्रहसन में जरूर बदल दिया। साथ ही किसी भी दिमाग वाले को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम एक आजाद देश के आजाद नागरिक हैं! लेकिन हैं, इत्तेफाक से हम हैं. लेकिन जहां ऐसे प्रहसन होने ही होने हैं क्योंकि शहाबुद्दीन रूपा नहीं बन सकते।
आठ साल की बच्ची को सजा सुनाने में मजिस्ट्रेट को कितना समय लगा होगा? यही न कोई ढाई मिनट। और, सजा तामील होने में? स्टेशन से नारी निकेतन का जितना फासला जैसे भी कटा हो उतना। यानी रूपा को सजा सुनाने से लेकर नारी निकेतन तक पहुंचाने में पूरा एक दिन मान लीजिये। और शहाबुद्दीन को गिरफ्तार करो का आदेश दिए कितने दिन या कितने माह गुजर गए! और अब तक यही तय नहीं हो पाया कि इन सांसद महोदय को गिरफ्तार कौन करे, और कैसे किया जाए। हालांकि प्रदेश के सबसे आला अफसर पिछले दो दिन से फरमा रहे हैं-बस एक सप्ताह और।
इधर अदालत सीवान के डीएम को पुचकार कर समझा रही है कि भइये, ढंग के कागजात तो लाओ गिरफ्तारी के। और गिरफ्तारी के बाद क्या होगा-यही न कि पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण यानी चारों कोनों से बयानों की बौछार शुरू हो जाएगी कि हाय-हाय, यह क्या कर डाला! एक जनसेवक के साथ यह अभद्र कार्रवाई! क्या अपराध किया है इस मासूम ने! और, अगर इत्तेफाक से जेल भेज दिये गए तो! प्रत्यक्ष तौर पर आतंक का जिले वाला दायरा सिकुड़ कर क्रिकेट के मैदान जितना रह जाएगा। परोक्ष में तो शहाबुद्दीन का आतंक शाश्वत है ही, हर उस जगह, जहां भारतीय मानव मौजूद है।
जेल में भी मौज-मस्ती या रुतबे में कोई कमी आनी नहीं। पप्पू यादव को तिहाड़ में वालीबॉल खेलते नहीं देख रहे आप लोग! अमरमणि त्रिपाठी की मुस्कान जेल में और लवली हो गयी थी कि नहीं! इन लोगों को जेल की कोठरी में नहीं रखा जाता। जिस तरह हर दुर्गापूजा पर बड़े-बड़े मंडप सजा कर मूर्तियां रखी जाती हैं और अगले कुछ दिन पूजा का शोर रहता है, बस, उसी तरह अंदर धंसते ही उन्हें जेल के शानदार मंडप में रख दिया जाता है और वे राष्ट्र की धरोहर कहलाने लगते हैं। उन्हें कुछ हो गया तो भैंस की तरह राष्ट्र भी गया न पानी में!
राष्ट्र की धरोहर नहीं थी रूपा, इसलिए उसके 2555 दिन-रात का, उसके बच्ची से नवयुवती हो जाने का हिसाब-किताब कोई मूढ़ ही करेगा........ और वैसा मूढ़ भी इस आजाद देश में अब दुर्लभ है।
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