रविवार, 26 दिसंबर 2010

गौतम गोस्वामी! सरदार का कहा भूल गए?

राजीव मित्तल
बहुत दिन नहीं हुए जब गौतम गोस्वामी ध्रुव तारे सा चमक रहे थे, पर उस चमक के पीछे जेनरेटर कौन सा काम कर रहा था, इसकी जानकारी यहां-वहां से मिलने लगी थी। तब एमबीबीएस की डिग्री वाले गौतम अनपढ़ वाल्मीकि डाकू की तरह मुंह से मरा-मरा की तर्ज पर लूला-लूला नहीं निकाल रहे थे, लालू-लालू का ही जाप कर रहे थे, तो भी वह वाल्मीकि की तरह ऋषि बन रामायण नहीं लिख सके, इश्तहारी-ईनामी अपराधी बन कर रह गए, जिसे खोजने के लिए देश भर में छापे डाले जा रहे हैं। थोड़ा पीछे लौटें- अंग्रेजों से विरासत में मिली नौकरशाही का भविष्य सरदार पटेल बहुत पहले भांप गए थे कि अगर इसका भारतीयकरण न हुआ तो यह मशीनरी जनता के लिए गुलाब का फूल नहीं वरन सत्ताधारियों के लिए पेंचकस बन जाएगी। तभी तो उन्होंने आजादी के शुरुआती दिनों में ही चेता दिया था कि जो नौकरशाह मंμिायों के मुसाहिब बनना चाहते हैं वे इस पेशे में कदम न धरें। सरदार के कहे इन शब्दों और गौतम गोस्वामी के जिस अंदाज ने अपने आका को खुश करने के लिए रात दस बजे लालकृष्ण आडवाणी का भाषण रुकवा कर उनकी सभा बंद करायी-दोनों में करीब 55 साल का फर्क आ चुका था। और छप्पनवे साल में सरदार पटेल के शब्द तो अब भी पन्नों में टंके हैं पर टाइम मैगजीन का वह आदर्श पुरुष आज भगोड़ा बन गया है। शायद वह गौतम गोस्वामी ही थे या उन जैसा कोई नया-नकोरा आईएएस अफसर, जिसने इस प्रदेश के 15 साला कर्णधार की कर्णधारी के शुरुआती दिनों में उसके एक फोन पर कोई गलत काम करने से स्पष्ट मना कर दिया था, तो कर्णधार के मुंह से निकला था-इस बदमाश को सबक सिखाना है। तभी एक समझदार नेता बोले-अभी बच्चा है, सब सीख जाएगा। वही बच्चा इतना कुछ सीख गया कि कई घोटाले उसके नाम चस्पां हो उसे करोड़पति बना गए। तो, गुलाम भारत में गांधी जी के सौजन्य से सिविल नाफरमानी रग-रग में समोये नेतागण तो आजाद भारत में सत्ता की कुर्सियों पर चढ़ बैठे और अपनी इन्कलाब-जिंदाबाद वाली सोच को विरासत में मिली नौकरशाह के हाथों में सौंप दिया, जो आज भी जनता से उतनी ही दूर है, जितना साठ साल पहले कोई आईसीएस हुआ करता था। गुलामी की यादें धूमिल पड़ते ही दोनों अब सात फेरे वाले गठबंधन में बंध गए हैं। जब तक जवानी की लहर में निष्ठा की चासनी घुली रहती है तो हर दिन होली हर रात दीवाली। तभी तो मुलायम जी को अपने राज्य के सबसे बड़े अफसर की कुर्सी पर या तो अखंड प्रताप सिंह भाते हैं या नीरा यादव-जो अपनी ही एसोसिएशन के सबसे ज्यादा भ्रष्ट अफसर माने गए। एक के यहां से सौ करोड़ का हिसाब निकल चुका है, दूसरे पर सीबीआई पता नहीं कब नजला गिरादे। और बिहार के सीवान और गोपालगंज के डीएम इसलिए बेदखल किए जाते हैं क्योंकि वे जायकेदार नहीं। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंμा के यह दो-चार उदाहरण हैं आल्हा तो जगह-जगह गूंज रहा है।

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