राजीव मित्तल
ताजा खबर है कि बिहार सरकार का चैन धुआं-धुआं हो रहा है क्योंकि उसके ये सारे दावे धरे के धरे रह गये कि पोलियो पर सरकारी शिकंजा कस गया है और अब वह इधर की ओर घूम कर भी नहीं देखेगा। पर, पता यह चला कि जहां कभी नहीं था वहां भी पैर पसार लिये उसने। विश्वबैंक के अथाह डॉलरों और कई सरकारी-गैर सरकारी योजनाओं के सौजन्य से पोलियो की मार से बचाने के लिये सुना है कि दो बूंदें बड़ा काम करती हैं। लेकिन अब यही दो बूंदें कई फतवाई विचारों से मात खा रही हैं और पोलियो की पौबारह है। कुल मिला कर पोलियो एक ऐसा खेला बन गया है, जिसके चारों ओर मजाकों और चुटकुलों की बहार है।एकाध माह पहले बिहार में विशेष अभियान चला था, जिसका मकसद हमेशा की तरह पोलियो को मात देने का था। राज्य या शायद पूरे देश में ऐसे अभियान साल की कुछ ऋतुओं में जरूर चलते हैं। अभियान का पहला दिन उत्सव सरीखा होता है।
मुख्यमंμाी, उनके मंμिामंडल के हर सदस्य से लेकर सरकारी महकमे के अफसरों और पंचायत के मुखिया तक की गोद में एक बच्चा होता है, जिसका उनसे कोई रिश्ता नहीं होता, पर पोलियो उन्मूलन की दो बंूदें दोनों के बीच भीना-भीना रिश्ता कायम कर देती हैं। वे अपनी-अपनी गोद के बच्चे के मुंह में बूंदें सरकाते हैं, बच्चे की मां ताली बजाती है और बच्चा किलकारी मारता है, वे मुस्कुराते हैं और अभियान का शुभारम्भ हो जाता है। इस अच्छे काम के लिये हर शहर-गांव में बच्चे रैली भी निकालते हैं। लेकिन रैली निकालने वाले बच्चों से कहीं ज्यादा उन बच्चों के माता या पिता उन महानुभाव को अपना आदर्श मानते हैं, जिन्होंने ऐसे ही एक अभियान में पूरे सरकारी महकमे को नचा मारा।
मामला कुछ यूं है कि किसी नेशनल हाईवे के नुक्कड़ पर कुछ कर्तव्यशील अभियानकर्मियों ने उनकी शान के खिलाफ जाकर उनके नाती या पोते के मुंह में जबरन वे दो बूंदें डालनी चाहीं, जिसके लिये 10-12 दिनी अभियान के दौरान उन्हें रोजाना 40 रुपये मिलते हैं। खैर, वे अभियानकर्मी डिसमिस कर दिये गये, लेकिन उससे पहले उन्हें एक बस में लाद कर उन महानुभाव के सरकारी निवास पर ले जाया गया, जहां उनका मार्चपास्ट हुआ। सबने सलामी दी, जो उन्होंने कबूल भी की। एसडीओ और बीडीओ सरीखे अफसर घटनास्थल की ओर रवाना हुए, तो डीएम ने तार भेज कर और मुख्यमंμाी ने टेलीफोन पर महानुभाव से माफी मांगी। नतीजतन अभियान का कबाड़ा निकल गया। और अब! मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी प्रखंड में पांच बच्चों की मां रो-रो कर बेहाल हुई जा रही है। पोलियो ने उसके एक बेटे की जान ले ली, दूसरा अपाहिज हो बिस्तर पर पड़ा है, तीसरे पर एक हफ्ते पहले ही असर आ गया है। बचे दो, लेकिन कब तक!
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