राजीव मित्तल
बोर्ड पर गम निष्पादन के आगे लिखे बार पर कागज चिपका कर लाल खड़िया से लिख दिया गया है कि आज जोगनियों का कार्यक्रम है। हॅाल से कुर्सियां हटा कर दरी बिछा दी गयी हैं। माइक के पीछे हारमोनियम और तानपूरा रखे हैं। श्रोतागण आ चुके हैं, इल्वल और वातापि को बस जोगनियों का इंतजार है। आखिर एक तांगा आ कर रुका और उसमें से गंगा, जमुना, नर्मदा, गंडक, कोसी और बागमती वगैरह उतरीं। कुछ जलोदर की मरीज लग रही थीं, तो कुछ अकाल पीड़ित। हॅाल में प्रवेश करते ही जलोदरवालियों ने छूटते ही गंगा और जमुना से कहा- थोड़ा दूर बैठो बदबू मार रही हो। आज के कार्यक्रम में रोना अनिवार्य नहीं था।
इल्वल और वातापि को डर था कि अगर इन सबके आंसू बहे तो उनका धंधा चौपट हो जायेगा। हॅाल को सुखाने में महीनोें लग जाएंगे। जब माइक बागमती और गंडक के आगे किया गया तो उन्होंने कोसी को भी पास घसीट सिर्फ इतना ही कहा कि हम तीनों का काम केवल विनाश करना है क्योंकि इस देश के नेता यही चाहते हैं। इस समय हमारे पेट में पानी बहुत बढ़ गया है, यहां से निकल कर डाक्टर के पास जाया जाएगा। ये बैठी हैं दोनों, इनकी बकबक सुन लो। गंगा जब माइक के पास आ कर बैठी तो तीनों आपस में फुसफुसायीं-लगता है कि सीधे कानपुर या बनारस से चली आ रही है, तभी तो सड़े मुर्दे सी..इतना सुनते ही किनारे बैठी बूढ़ी गंडक ने वहीं ओंकना शुरू कर दिया।
स्थिति संभालने के लिये वापाति ने तुरंत कैसेट लगाया-गंगा मैया तोरे पियरी चढ़इबो। कान में आवाज पड़ते ही गंगा चीत्कार कर उठी-नहीं, मुझे नहीं सुनना यह गाना। उसने अपनी चीथड़ा हो रही रेशमी साड़ी से नम हो आयीं आंखें पोंछीं और बोली- अच्छी भली मैं आकाश में वास करती थी, पर सगर के साठ हजार पुμाों को तारने के लिये उनके जकड़ पोते राजा भगीरथ ने तप कर मुझे धरती पे बुला लिया। खुद तो चला गया मस्ती मारने स्वर्ग को और मुझे यहां कंगला बनाने को छोड़ गया। यहां मेरा काम सिर्फ मुर्दों को ढोना रह गया है। यह जो मेरी बहना जमुना बैठी है, यह तो बेचारी चलने-फिरने से भी लाचार हो चली है, नहीं तो हिरनी सी कूदती-फांदती फिरे थी। किसी बजबजाते नाले और इसमें कोई फर्क नहीं रह गया है।
मेरे भी ऐसे ही दिन आ रहे हैं। जहां मेरा जन्म हुआ था, उस तक को तो कम्बख्तों ने कचरे से लाद दिया है। कितने नाजों से पली थी मैं। शिवजी तक जटाओं में लिये घूमते थे मुझे। कैसा बहका के मुझे इस धरती पर छोड़ा गया कि बड़ी पावन जगह है, देवता भी मुंह मारने यहीं आते हैं, जिंदगी भर चैन की बांसुरी बजाओगी। देख लो हमारा हाल, कीड़े तक पड़ने लगे हैं मुझमें। इस देश के लोग इतने दिलद्दरी हैं कि सुबह शाम मां गंगे-मां गंगे करते फिरेंगे पर कपड़े धोने वाला साबुन तक नहीं देते कि मैं अपना शरीर साफ कर लूं, उलटे तन-मन की सारी गंदगी मुझमें बहाते रहते हैं। तभी बाहर राम-नाम सत्त है कि आवाजें आने लगीं। सुनते ही गंगा भन्ना के बोली-लो, एक औेर मुर्दा मेरे पल्ले आ पड़ा।
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