बुधवार, 8 दिसंबर 2010

और शवासन से उठ खड़े हुए खैरखाह

राजीव मित्तल
बॉब, बांछें खिलना किसे कहते हैं? सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद जिस तरह नत्थुलालों की मूछों ने जुम्बिश ली और बदन ने अंगड़ाई, उसे बांछें खिलना कह सकते हैं चैनली। पर ऐसा होना नहीं चाहिये था! तो परेशान क्यों होती हो, महाभारत का एक किस्सा सुनो। शिखंडी की आड़ लेकर अर्जुन के चलाये तीरों ने भीष्म पितामह को इस कदर बींध कर रख दिया कि जब वो गिरे तो उनकी पीठ नहीं, तीर जमीन पर टिके। तीरों की शैय्या पर लेटे-लेटे एक दिन पितामह ने कराहते हुए कृष्ण से पूछा-वासुदेव मैं अपने पिछले जितने जीवन झांक सकता था, खंगाल लिये पर किसी में भी ऐसे बुरे कर्म नहीं दिखे, जिनकी सजा आज भुगतनी पड़ रही है। कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले-पितामह, और पीछे जाइये आपका एक जीवन ऐसा है जिसमें का किया आज आप भुगत रहे हैं। पितामह शांत हो गये। तो चैनली, उस फैसले के आते ही सारे दल और उनके नत्थुलाल वज्रासन लगा कर बैठ गये थे ताकि सांस तो ठीक से आये। इस फैसले ने इन सभी को ओह-आह करने से बचा लिया। पर कब तक! एक दिन ये सब फिलहाल रोके गये फैसले से बिंधे पड़े होंगे तो इनके सवाल का जवाब देने अब कृष्ण तो आयेंगे नहीं। और इनके पास सवाल होगा भी क्या कि किस जन्म का बदला है यह! कृष्ण होते भी तो बेचारे बांसुरी बजाने के सिवाय और कुछ न करते। मोटी खाल बर्फ तोड़ने वाले सुएं से छिदती है आत्मा से उठती गूंजों से नहीं। तभी तो अखबारों की लीड है कि सबने राहत की सांस ली। और इनके खैरखाह? उनकी तो सांसें तक उल्टी चलने लगी थीं, सबको उठा-उठा कर जमीन पर लिटा दिया गया था। अब सब डांडिया कर रहे हैं। एक नत्थुलाल का बयान आया है कि उसे बाहुबली कहे जाने पर ऐतराज है। वह जेल में है तो इसलिये कि गांधी जी ने जहां अपनी लड़ाई अधूरी छोड़ी थी वहां से उसने शुरुआत की है, जो सत्ता को रास नहीं आयी इसलिये उसको देख जेल के दरवाजे अपने आप खुल जाते हैं चाहे आने की मुद्रा हो या जाने की। एक सज्जन के पेट में अब काफी राहत है, पानी भी नहीं पचा पा रहे थे, कल से मूंग का दलिया लिया है। डकार और हवा दोनों पास हो जाने के बाद वे बोले कि यही तो, और हमें क्या चाहिये। हमारे लिये जेल कर्मभूमि है। पहले थोड़ा ज्ञान होता तो शादी ब्याह भी यहीं करते। कम से कम अब चुनाव तो लड़ने दिया करो भलेमानुसों। तो ताड़ीवानों को एम डी की डिग्री नवाजने वाले सज्जन ने फौरन इच्छा जाहिर की कि उनका बयान नोट किया जाये कि मेरी तरफ से फैसला सुनाने वालों के दो-दो बच्चों को संगीत विशारद की डिग्री फ्री, किसी पμाकार ने टोका किअगर बच्चा गूंगा निकला, तो डिग्री डॅान का सवालरूपी जवाब था-आवाज तो निकलती है न, चिन्ता नहीं। अभी खैरख्वाहों ने जुबान नहीं खोली है क्योंकि पता नहीं कब क्या हो जाये। कुछ सीटों पर तो कुदृष्टि पड़ ही गयी है कि जब उनके नत्थू जेल में बंद थे तो अपने इलाके में कैसे नजर आये। खैरख्वाहों के सरकारी कारिंदे तो फंस ही गये हैं। और वे खुद अपने क्षेμाों के कुओं में मुंह डाल कर बस यही आवाजें निकाल रहे हैं- पुनर्मतदान-पुनर्मतदान।

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