सोमवार, 20 दिसंबर 2010

एक धड़ पांच आवाजें

राजीव मित्तल
गम निष्पादन महफिल में परिवार नियोजन को देख अपना आपा खो बैठीं मैडम संताजी और बंताजी को बड़ी मुश्किल से काबू में लाया जा सका। इधर इल्वल चप्पल छोड़ के भागे परिवार नियोजन को तलाशने निकल गया क्योंकि इस कार्यक्रम के लिये वो उसे बड़ी काम की चीज लगा। गोष्ठी को आगे बढ़ाने के लिये वापाति ने माइक थामा ही था कि एक अजीबोगरीब शख्स ने हॅाल में कदम धरा। दो-तीन महिलाएं तो देखते ही गश खा कर चित्त हो गयीं।
वापाति उस शख्स को हैरानी से निहारते हुए सोचने लगा कि कलयुग में इतने सारे थोबड़ों वाला कैसे। पांच सिर वाले उस शख्स के दो चेहरों पर हंसी खेल रही थी, दो में से एक रो रहा था, दूसरा चुप कराने में लगा था और एक गा रहा था-तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर जाग जरा। वेशभूषा किसी पुलिसिये की थी। हर सिर पे पदवीनुसार टोपी और छाती पे पहचानपμा। उसी से पता चला कि आंसू बहा रहे सज्जन पुलिस महानिदेशक हैं, आंसू सिपाही पोंछ रहा है, खीसें काढ़े हुए थे दरोेगा और थानेदार, गुनगुना एसएसपी रहे थे।
वातापि चिल्लाया-अरे,अरे किसकी परमिशन से धंसे आ रहा है तू। दरोगा डकराया-अबे चोप्प, सर जी लगाऊं इसके एक हाथ! थानेदार गुर्राया-इस मीटिंग के लिये थाने से इजाजत ली थी? ऐसी-वैसी दो चार धाराएं लगा कर छह महीने के लिये अंदर कर दूंगा। तमीज से पेश आइये वर्मा जी, साहब साथ में हैं-एसएसपी ने थानेदार को आंखें तरेरीं। फिर उनका सिर डीजीपी की तरफ मुखातिब हुआ-सर, पहले आप दो शब्द कहें। पांच सरों वाला धड़ मंच की ओर चल दिया। डीजी के पपोटे लगातार रोने से सूजे हुए थे। उन्होंने रुमाल से नाक पोंछी और रुंधे गले से बोले-मुझे आज भी 15 साल पहले चम्बल की वो मुठभेड़ याद आती है तो रो लेता हूं। काश उस मुठभेड़ में या तो मैं गोली खा कर मर जाता या उस डाकू जरनैल सिंह को जान से मार देता। कम से कम यह दिन तो न देखना पड़ता। अब वो नेता है और मैं पहरुआ।
राजनीतिज्ञों ने डीजी को पनडब्बा बना कर रख दिया है। जब चाहा सरोंता निकाल सुपारी की तरह कच्च-कच्च करना करना शुरू कर देते हैं। बस इससे ज्यादा नहीं बोलूंगा, बाकी रिटायरमेंट के बाद और उनकी आंख से टप से दो आंसू और टपक गये। एसएसपी ने यह कह कर बोलने से मना कर दिया उनकी भावना साहब ने व्यक्त कर दी है और उन्हें रोना नहीं, क्रोध आ रहा है। दरोगा को आंख में डालने के लिये लाल मिर्च की बुकनी दी गयी तो उसने पूरी प्लेट अपने थैले में डाल ली और आंखें लाल करता हुआ वापाति एंड पार्टी को धमकी देने लगा-बाहर निकलो ससुरों, हड्डी-पसली एक कर दूंगा-जानते नहीं हो-हम चुन्नू भैया के साढ़ू हैं। ये पीपीपी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
थानेदार उस पर खोखियाया-अबे हमारे सामने इतना काहे को बोल रिया है-बीट बदल दूंगा तो बोलने को तरस जाओगे। उसने वातापि को इशारा कर बुलाया और पूछा-इन छोटी शीशियों में क्या है दिखाना जरा। अच्छा, ब्लू फिल्मों के कैसेट भी रखे हैं! लायसेंस है बार का? वापाति उसे तुरंत एक कोने में ले गया और कान में कुछ खुसफुसाया तो थानेदार ने कहा-ठीक है कम न हों, वहां अखबार के नीचे रख दो। वापाति ने सिपाही के चेहरे पर निगाह टिकाई-सर, आपके पास तो कहने को बहुत कुछ है, ये लीजिये आंखों में डाल लीजिये। अरे भैया, अब रोने में देर ही कितनी है-तुमने हमारे सरों के सामने हमें सर बोल दिया-अब तो सारी जिंदगी पुलिस लाइन में साहबों के यहां घास छीलते कटेगी और उसके गले से आउं-आउं जैसी साउंड बाहर आने लगी।

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