राजीव मित्तल
अब सब ठीक हो गया है। यानी बाढ़ पीड़ितों का दुख-दर्द मिलजुल कर परखा जाएगा। ये झड़प और तल्खियां तो राजनीति में चलती ही रहती हैं। चाहे सीटों का सवाल हो, कुर्सी का सवाल हो या फिर बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने का। नाराजगी का इजहार कर दिया, मन की सारी खटास जाती रही। संवादहीनता और संवेदनहीनता जैसे विषाणु डीडीटी के एक छिड़काव में धराशायी। वैसे भी बाढ़ अब कन्फ्यूस नहीं कर रही है। जहां-जहां उम्मीद थी आ गयी है। इसको छोड़ उसको धर वाला हाल नहीं रह गया। सभी नदियां मग्न हैं। अगर नेपाल पानी न छोड़े और मूसलाधार बारिश अब कुछ दिन न हो तो मां कसम यह बाढ़ोत्सव तो भली-भांति मन ही जाएगा।
उसके बाद फिर वही धान के लहलहाते खेत, उन खेतों में लोकगीत गाती महिलाएं, मधुबनी की पेंटिंग, सीतामढ़ी का जानकी विवाह, दशहरा-दीवाली, ईंद और फिर वो सोनपुर का मेला। वही पुराने दिन लौट आएंगे। चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं। एक पार्टी के आलाकमान ने तो अभी से अपने कार्यकर्ताओं को फरमान भेज दिया है कि देखो लोकसभा चुनाव में तो हम सभी गफलत में पड़े रह गए, पर अबकी बार कंधे से कंधा टकराना है। बाढ़ की सौगात सामने है क्या देखता है लक्ष्य पे निशाना साध। घबरा मत होम्योपैथी का सिद्धांत समझ, कि जब रोग पूरी तरह फैल जाए तो समझो रोगी चंगा होना शुरू। अब बाढ़ कितनी और आएगी? एन-एच 31 और 57 पर पानी कितना बढ़ेगा! एकाध फुट और। फिर चढे¸ पानी को तो वापस नदी में ही जाना है। जो रुक जाएगा, वो डुबोएगा नहीं। जिनकी जीवनी शक्ति कम होगी वो उस एकाध फुट पानी को भी नहीं झेल पाएंगे। क्योंकि रुके पानी में सिंघाड़े या मखाने तो उगाए नहीं जा सकते। बीमारी फैलाता है कम्बख्त।
जिला प्रशासनों और नगरनिगमों के जो हाल हैं उसके चलते यह पानी अगली बरसात तक काम देगा, जनता के पीने-पिलाने के काम आएगा। मुजफ्फरपुर-दरभंगा की सड़क का हाल देख ही लिया, ऐसी फटी पड़ी है जैसे भूकंप आया हो। और वैसे तो सारी सड़कें ही बगैर बाढ़ के चटपट कर रही हैं। महामारियों पर खास ध्यान देने की जरूरत है। अस्पतालों में एड्स की दवा डिस्प्रीन तो कालाजार की एनासिन ही बची है। वोटरलिस्ट को तो दिमाग में ही बैठाले। बहुतेरे चुनाव सामने पड़े हैं। अब हमने वोट बटोरने के इतने सारे क्लू दे दिये, ध्यान से खर्च करना। समझे! अबकी बारी हमारी बारी।
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