राजीव मित्तल
चैनली, ये सब एक-दूसरे पर बिफर क्यों रहे हैं? बॉब, 10 मई तक चलेगा ये सब क्योंकि यही परम्परा है, अलिखित, अघोषित। उसके बाद? उसके बाद जो जिसपे बिफरा, उसको फोन पे कहेगा, आओ न-बागों में बहार है, फूलों पे निखार है, दुश्मनाई की चिकनाई से बढ़ गये कोलस्ट्रॉल को किसी फार्म हाउस में बैठ कर दूर करें, मिल कर गाएं-नाचें। और जो नहीं बिफरा वो? वो अगले से यही कहेगा-मैं जानता था कि तुमने जो मुझे संसदीय गालियां दीं, दिल से नहीं दीं और जो असंसदीय कहा, उसका इसलिये मलाल नहीं कि ऐसे लोग दिल के साफ होते हैं। तभी बगल की शाख पे बैठी चील चिल्लाती हुई उड़ी-मिल गया, मिल गया। पर 10 मिनट बाद ही उदास सी उड़ती हुई आ गयी। क्या हुआ री, तेरी चोंच खाली क्यों है? सोचा था अपने मियां को और पडौ¸सियों को कर बुला उस लाश को नोचूंगी, पर वहां जा कर देखा तो इंसानों की भीड़ पहले से ही लगी है। यह तो अच्छी बात है, अब उसे सद्गति तो मिल जायेगी। चील भन्नायी-पर वहां तो झांय-झांय चल रही है कि इसे तूने मारा-तूने मारा। एक तरफ किसी अस्पताल के डाक्टर हैं तो दूसरी तरफ कुछ नेता और उनके पटाखे। जरा समझा के बता चिल्लो-बर्बरीक ने कहा। बात यह हुई कि एक गर्भवती बच्चा जनने अस्पताल में भर्ती हुई थी। किसमें-अपोलो में या किसी सरकारी में? बीच में मत बोलो-दोनों से निकला मरघट को ही जाता है फर्क ले जाने और अंतिम संस्कार करने का है बस। तो हुआ यूं कि बच्चा पैदा होने से पहले ही मर गया। डाक्टर को करना बस इतना था कि पेट चीर कर मरा बच्चा निकाल देता। लेकिन उस बेचारी के शरीर में खून की कमी होने से ऑपरेशन नहीं हो सका और सौ से कुछ कम घंटे तड़पने के बाद अपने अजन्मे बच्चे के पीछे चल दी। चैनली झल्ला कर बोली-तो इसमें नयी बात क्या है? अरे सुन तो-पेट में बच्चे के मर जाने और खुद उसके मरने के बीच बड़ा नाटक हुआ। चुनाव खत्म हो जाने से बोर हो रहे नेता अपने पिट्ठुओं से चंपी करा रहे थे कि उन्हें अस्पताल में भर्ती उस 25 साल की जच्चा की खराब हालत की खबर लगी तो शुरू हो गया पचास साल पुराना नेताई खेल। डाक्टर को फोन पे फोन जाने लगे-अरे गरीब की हाय न ले, बचा ले उसे। डाक्टर ने कहा- क्या अपना खून दे कर उसकी जान बचाऊं, आ जाओ सब, दो-दो बूंद भी दे दोगे तो ऑपरेशन हो जाएगा। तो अगले ने फोन पर कहा-अरे तो ब्लड बैंक की तिजोरी क्यों नहीं खोल देता, हमारी तरफ से दो बोतलों की सील तोड़ दे और चढ़ा दे उसे। अरे ऐसे कैसे तोड़ दूं सील, नियम-कायदा कुछ है कि नहीं, सरकारी नियम है कि खून दो और खून लो। अरे तो उसके घर वालों का निकाल ले भाई। ऐसे कैसे निकाल लूं? घर वालों का तो हिमोग्लोबीन काफी नीचे चला गया है, जिसका भी निकालूंगा, वही अस्पताल के बिस्तर पर पसर जायेगा। आप केवल दो लोगों को भेज दो, थोड़ा सा हीनिकालूंगा बाईगॅाड। देखो डाक्टर हम खून बहाते हैं, बोतलों में भरने के लिये नहीं है हमारा खून। और फिर तुमने वो किताब तो पढ़ी ही होगी कि सौ बूंद खून बनाने के लिये कितना बादाम और काजू घोंटना पड़ता है और एक हजार खून की बूंदों से एक बूंद वीर्य की बनती है। बेवकूफ तुम हमसे खून नहीं हमारे पौरुष की शान मांग रहे हो, शर्म नहीं आती। डाक्टर भी भड़क गया-तो भैये मरने दे न उसे, बच्चा तो चला ही गया। बढ़ती आबादी पर कुछ तो रोक लगेगी। बात तो ठीक कह रहे हो डाक्टर, पर मरी तो तुम्हारी खैर नहीं। दिल्ली तक से फोन आ रहे हैं, तुमको भी आया होगा। मरे या जिये मैं नियम नहीं तोड़ूंगा। बॅाब, अगर यही केस चुनाव से दो दिन पहले का होता तो ये सब अपना खून देने को लाइन लगा देते ताकि जच्चा के घर वालों के तो वोट पक्के हो ही जाएं। वैसे तू लाश पर चक्कर लगा कर ही क्यों आ गयी? अरे पेट में मरा बच्चा भी तो था न, मुझसे न नोचा गया।
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